पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६४४

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art निकलते देखा । शेरअलीखाँ घवडाकर उठ खड़ा हुआ और बड़ गौर से उसे देखकर बोला, हं क्या तुम कुँअर कल्याणसिह हो ! कल्याण-(सलाम करके) जी हा। गोरअली-तुम इस कमरे में कब आये और कब इस कोठरी में गये मुझे कुछ भी नहीं मालूम !! कल्याण-मैं बाहर से इस कमर में नहीं आया बल्कि इसी कोठरी में से आ रहा है। शेरअली-सो कसे? इस कोठरी में तो कोई दूसरा रास्ता नहीं है। कल्याण जी हाँ एक रास्ता है जिसे शायद आप नहीं जाल मगर पहिले में दर्वाजा बन्द कर लू। इतना कह कर कल्याणसिह दर्वाज की तरफ बढ़ गया और इस कमर के तीनों दर्वाजे बन्द करके शेअलीखों के पास लौट आया। शेरअली-दर्वाज क्यों बन्द कर दिए? क्या पुरते हो? कल्याण-जी हा यदि कोई देख लेगा ना मुश्किल होगी। शेरअली तो इससे मालूम होता है कि तुम राजा वीरेन्द्रसिह की मर्जी से नहीं छूट बल्कि किसी की मदद और चारी से निकल भागे हो क्योंकि चुनारगढ में तुम्हारे कैद होन का हाल में अच्छी तरह जानता हू। कल्याण-जी हा ऐसी ही बात है। शेरअली (वैठकर) अच्छा आओ मेरे पास बैठ जाओ और कहो कि नुम कैसे छूटे और यहाँ क्योंकर आ पहुचे? कल्याण-(वेठकर ) खुलासा हाल कहने का तो इस समय मौका नहीं है परन्तु इतना कहना जरूरी है कि मदद र लिए मुझे राजा शिवदत्त ने छुडाया है और अब में सहायता लने के लिए आपक पास आया हू। यदि आप मदद दो तो मैं आज ही राजा वीरेन्दसिह से अपने बाप का बदला ल लूंगा। शेरअली-(हस कर) यह तुम्हारी नादानी है। तुम अभी लडके हो एसे मामलों पर गौर नहीं कर सकत। राजा धोरेन्द्रसिंह के साथ दुश्मनी करना अपने पैर में आप कुल्हाड़ी मारना है, उनसे लड़कर कोई जीत नहीं सकता और न उनके ऐयारों के सामने किसी की चालाकी ही लग सकती है। कल्याण-आपका कहना ठीक है मगर इस समय हन लोगों ने राजा वीरेन्द्रसिह और उनके ऐयारों को हर तरह से मजबूर कर रखा है। शेरअली-सो कैसे? कल्याण-क्या आप नहीं जानते कि बीरेन्द्रसिह और उनके ऐयार किशोरी कामिनी इत्यादि को लकर तहखाने के अन्दर गए है। शेरअली-हा सो तो जानते है मगर इससे क्या? कल्याण-जिस समय वीरेन्दसिह वगैरह तहखाने में गए है उसके पहिले ही हम लोग अपनी छोटी सेना सहित तहयाने में पहुच चुके थे और गुप्त राह से यकायक इस किले में पहुच कर अपना दखल जमाना चाहते थे मगर ईश्वर ने उन लोगों को तहखाने ही में पहुचा दिया जिससे हम लोगों को बड़ा सुभीता हुआ । शिवदत्तसिंह ने तो सेना राहित दुश्मनों को घेर लिया है और में एक सुरग की राह से जिसका दूसरा मुहाना (साने वाली कोठरी की तरफ इशारा करके इस कोठरी में निकला है आपके पास मदद के लिए आया हूँ आशा है कि उधर शिवदत्तसिह ने दुश्मनों को काबू में कर लिया होगा या मार डाला होगा और इधर में आपकी मदद से किले में अपना अधिकार जमा लुगा । शेरअली-(कुछ सोच कर) में खूब जानता हूं कि इस तहखाने का और यहाँ के ग्धीले तथा कई रास्तों का हाल तुमसे ज्यादा जानने वाला अय और कोई नहीं है इसलिए तुम लोगों का तहखाने में राजा वीरेन्दसिड वगैरह को मार डालना तो यद्यपि मुश्किल है हा घेर लिया हो तो ताज्जुब की बात नहीं है मगर साथ ही इसके इस बात का भी ख्याल करना चाहिए कि यद्यपि राजा रीरेन्द्रसिंह वगैरह इस तहखाने का हाल वखूनी नहीं जानते परन्तु आज इन्द्रदेव उनके साथ है जिसे हम तुम अच्छी तरह जानते हैं। क्या तुम्हें उस दिन की बात याद नहीं जिस दिन तुम्हारे पिता ने हमारे सामन तुमसे कहा था कि यहाँ के तहखाने का हाल हमसे ज्यादा जानने वाला इस दुनिया में यदि कोई है तो केवल इन्द्रदेव ! कल्याण-(ताज्जुब से ) हा मुझे याद है मगर क्या इन्ददेव राजा वीरेन्द्रसिंह के साथ तहखाने में गए है और क्या वीरेन्द्रसिह ने उन्हें अपना दोस्त बना लिया। शेरअली-हा अस्तु यह आशा नहीं हो सकती कि बीरेन्द्रसिह वगैरह तुम लोगो के काबू में आ जायेगे दूसरी बात यह कि तुम अकेले या दो एक मददगारों को लेकर इस किले में कर ही क्या सकते हो ? कल्याण-मैं आपके पास अकेला नहीं आया हूँ बल्कि सौ सिपाही भी साथ लाया हू जिन्हें आप आशा देने के साथ ही 1 देवकीनन्दन खत्री समग्र