पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६४५

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। इसी कोठरी में से निकलते दख सकते है। क्या ऐसी हालत में जब की मालिकों या अफसरों में से यहा कोई भी न हो और यहा रहने वाली केवल पाच सात सौ की फौज बेफिक पडी हो हम और आप सौ बहादुरों को साथ लेकर कुछ नही कर सकते? इन्ददेव का इस समय वीरेन्दसिह वगैरह के साथ तहखाने में होना बेशक हमारे काम में विजडाल सकता है मगर मुझे इसकी भी विशेष चिन्ता नहीं है क्योंकि यदि दुश्मन लो। कादू में न आयेंगे तो हर तरफ से रास्ता बन्द हो जाने के कारण तहखाने के बाहर भी न निकल सकेंगे और भूखे-प्यास उसी में रहकर मर जायगे और इधर जब आप किले में अपना दखल जमा लेगे शेरअली-(वात काटकर)ये सब बातें फिजूल है, मैं जानता हू कि तुम अपन को यहादुर और होनहार समझते हो मगर राजा वीरेन्द्रसिंह के प्रबल प्रताप के चमकते हुए सितारे की राशनी का अपने हाथ की ओट लगा पर नहीं रोक सकते और न उनकी सचाई सफाई और नेकियों को भूलकर इस किले का रहने वाला कोई तुम्हारा साथ नहीं दे सकता है। बुद्धिमानों को तो जाने दा, यहा का एक बच्चा भी राजा वीरन्द्रसिद का निकल जाना पसन्द नहीं करेगा। आह क्या ऐसा जबान का सच्चा रहमदिल और रेक राजा कोई दूसरा होगा? यह राजा वीरेन्दसिहही का काम था कि उसने मेरे कसूरों को माफ ही नहीं किया बल्कि इज्जत और आबरू के साथ मुझे अपना मेहमान बनाया। मेरी रग-रग में उनके एहसान का खून मरा है मेरा बालचाल उन्हें दुआ देता है मरे दिल में उनकी हिम्मत् मर्दानगी इन्साफ और रहमदिली का दरिया जोश मार रहा है। ऐसे बहादुर शेरदिल राजा के साथ शरअली कभी दगाबाजी या बेईमानी नहीं कर सकता बल्कि ऐसे की तायदारी अपनी इज्जत हुर्मत और नामधरी का बायस सनझता हूँ। तुम मेरे दोस्त के लडके हो गगर में यह जरूर कहूगा कि तुम्हारे वापन वीरेन्द्रसिंह के साथ दमाधाजी की । खैर जा कुछ हुआ सो हुआ अव तुम तो ऐसा न करी । मैतुम्हें पुरानी मोहब्बत और दोस्ती का वास्ता दिलाता हूं कि ऐसा मत करो। राजा वीरेन्द्रसिह दुश्मनी करने योग्य राजा नही बल्कि दर्शन करने योग्य है । मैं वादा करता हूं कि तुम्हारा भी कसूर माफ करा दंगा और अगर तुम को रोहतासगढ की लालच है तो इसे भी तुम राजा वीरेन्द्रसिह की ताबेदारी करके ल सकते हो वह बडा उदार दाता हे यह राज्य दे दना उनके सामने काई बात नहीं है। कल्याण-अफसोस मुझ इन शब्दों के सुनने की कदापि आशा न थी जा इस समय आपके मुंह से निकल रहे हैं। मुझे इस बात का ध्यान भी न था कि आज आपको हिम्मत और मर्दानगी से इस तरह खाली देखूगा। मैं किसी क कहने पर भी विश्वास नहीं कर सकता था कि आपकी रग में बुजदिली का खून पाऊँगा। मुझे स्वप्न में भी इस बात का विश्वास न हो सकता था कि आज आपको उसी राजा वीरेन्द्रसिंह की खुशामद करते पाऊँगा जिसके लडके ने आपकी लडकी को हर तरह स बेइज्जत किया। शेरअली-ओफ तुम्हारी जलीकटी गते मेर दिल को हिलाकर मुझे बेईमान दगावाच्या गिश्वासघाती की पदवी नहीं दिला सकती। उस गौहर की याद मेरे दिल की सच्ची तथा इन्साफ पसन्द आँखों को फोड करनेकों की दुनिया में मुझको अन्धा नहीं बना सकती जो वुजुर्गों की इज्जत को मिट्टी में मिला मग बदनामी का झडा बन जहरीली हवा में उडती हुई आसमान की तरफ घटती ही जाती थी और जिसका गिरफ्तार होकर सजा पाना बल्कि इस दुनिया से उठ जाना मुझे परन्द है। किसी नालायक के लिए लायक के साथ बुराई करना किसी अधर्मी के लिए धर्मी का खून करना, किसी येईमान के लिए ईमान का सत्यनाश करना और किसी अविश्वासी के लिए विश्वासघात करना शेरअलीखॉ का काम नहीं है। मैं समझता था कि तुम्हारे दिल का प्याला सच्ची बहादुरी की शराब से भरा हुआ होगा और तुम दुनिया में नागवरी पैदा कर सकोगे इसलिए मैं तुम्हारी सिफारिश करने वाला था, मगर अब निश्चय हो गया कि तुम्हारी किस्मत का जहाज शिवदत्त क तूफान में पड़ कर एक भारी पहाड से टक्कर खाया चाहता है अस्तु नुम यहा से चले जाओ और मुझस किसी तरह की उम्मीद मत रक्खो अगर मै तुम्हारे बाप का दोस्त न होता और तुम मेरे दोस्त के लडके न होते तो कल्याण-अफसोस मै इस समय आपकी यह लम्ची चौड़ी वक्तृता नहीं सुन सकता क्योंकि समय कम है और काम बहुत करना है, बस आप इतना ही वताइए कि मैं आपसे किसी तरह की आशा रक्खू या नहीं ? शेरअली-नहीं बल्कि इस बात की मी आशा मत रक्खो कि तुम्हे राजा वीरेन्द्रसिड के साथ दुरमनी करते देख कर चुपचाप बैठा रहूगा। कल्याण-( क्रोध में आकर ) क्या आप मेरी मदद न करेंगे तो चुपचाप भी न बैठे रहेंगे? शेरअली-हरगिज नहीं। कल्याण-तो आप मेरे साथ दुश्मनी करेंगे? शेरअली-अगर ऐसा करें तो हर्ज ही क्या है ? जिसको लोग इज्जत करत हो या जिसे दुनिया मोहब्बत की निगाह से चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १४