पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६४८

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दि महाराज सूर्यकान्त और उनके गुरु सोमदत्त जिन्होंने इस तिलिस्म का बनाया और इसके कई हिस्से किये। महाराज क दो लड़के थे। एक का नाम धीरसिह,दूसरे का नाम जयदेवसिह। जब इस हिस्से की उम्र समाप्त होने पर आवेगी तब धीरसिह के खानदान में गोपालसिंह और जयदेवसिंह के खानदान में इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह होंगे और नाते में वे तीनों भाई होंगे। इसलिए इसके दो हिस्से किये गए जिनमें म आधे का मालिक गोपालसिह होगा और आधे क मालिक इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह होंगे लेकिन यदि उन तीनों में मेल न होगा तो इस तिलिस्म से सिवाय हानि के किसा का भी फायदा न होगा अतएव चाहिए कि वे तीनों भाई आपुस में मेल रक्खें और इस तिलिस्म से फायदा उठावें इन तीनों के हाथ से इस तिलिस्म के कुल वारह दों में से सिर्फ तीन टूटेंगे और वाफी के नौ दों के मालिक उन्हीं खानदान में कोई दूसरे होंगे। इसी तिलिस्म में से कुअरइन्दजीतसिंह और आनन्दसिह को एक ग्रन्थ प्राप्त होगा जिसकी बदौलत वे दोनों भाई चर्णाद्रि (चुनारगढ) के तिलिस्म को तोड़ेंगे इसके बाद कुछ और भी लिखा हुआ था मगर अक्षर इतने बारीक थे कि पढ़ा नहीं जाता था। यद्यपि उसक पढन का शौक आनन्दसिह को बहुत हुआ मगर लाचार होकर रह गए। उस तस्वीर के बाईं तरफ जो तस्वीर थी उसके नीच केवल धीरसिह लिखा हुआ था और दाहिनी तरफ वाली तस्वीर के नीचे जयदेवसिह लिखा हुआ था। उन दोनों की तस्वीरें नौजवानी के समय की थीं। उसके बाद क्रमश और भी तस्वीरें थीं और सभी के नीच नाम लिखा हुआ था। कुंअर आनन्दसिट् वाजे की सुरीली आवाज सुनते जाते थे और तस्वीरों को भी देखते जाते थे। जय इन तस्वीरों को देख चुके तो अन्त में राजा गोपालसिह अपनी और अपने भाई की तस्वीर भी दखी और इस काम में उन्हें कई घटे लग गए। इस कमरे में जिस दर्याजे से कुँअर आनन्दसिह गये थे उसी के ठीक सामने एक दर्वाजा और था जो बन्द था और उसकी जजीर में ताला लगा हुआ था। जब वे घूमते हुए उस दर्वाजे के पास गए तब मालूम हुआ कि इसकी दूसरी तरफ से कोई आदमी उस दर्याजे को ठोकर दे रहा है या खोलना चाहता है। कुमार को इन्द्रजीतसिह का ख्याल हुआ और सोचने लगे कि ताज्जुब नहीं कि किसी राह से घूमते-फिरते भाई साहब यहॉ तक आ गए हों। यह ख्याल उनके दिल में बैठ गया और उन्होंन तिलिस्मी खजर से उस दर्वाजे का जजीर काट डाली। दर्वाजा खुल गया और एक औरत कमर के अन्दर आती हुई दिखाई दी जिसके हाथ में एक लालटन थी और उसमें तीन मोमबत्तियों जल रही थीं। यह नौजवान और हसीन औरत इस लायक थी कि अपनी सुधराई खूबसूरती नजाकत,सादगी और बाकपन की बदौलत जिसका दिल चाहे मुट्ठी में कर ले। यद्यपि उसकी उम्र सत्रह अनारह वर्ष से कम न होगी मगर बुद्धिमानों और विद्वानों की बारीक निगाह जाच कर सकती थी कि इसने अभी तक मदनमहीप की पचरगी वाटिका म पैर नहीं रक्खा और इसकी रसीली कली को समोर के सत्संग से गुदगुदा कर खिल जाने का अवसर नहीं मिला इसके सतोच की अनमोल गठरी पर किसी ने लालच में पड़ कर मालिकाना दखल जमाने की नीयत से हाथ नहीं डाज्ञा और न इसने अपनी अनमोल अवस्था का किसी के हाथ सट्टा-ठीका या बीमा किया,इसके रूम के खजाने की चौकसी करने वाली बड़ी बड़ी आखों के निचले हिस्से में अभी तक ऊदी डोरी पडने नहीं पाई थी और न उसकी गदन में स्वर-घटिकाका उभार ही दिखाई देता था। इस गारी नायिका को देख कर कुँअर आनन्दसिह भौचक्के से रह गए और ललचौहानेगाह से इसे देखने लगे। इस औरत ने भी इन्ह एकदम तो नजर भर कर देखा मगर साथ ही गर्दन नीची कर ली और पीछे की तरफ हटने लगी तथा धीरे-धीरे कुछ दूर जाकर किसी दीवार या पर्वाजे के ओट में होगई जिससे उसजगह फिर अधेरा हो गया। आनन्दसिह आश्चर्य लालच और उत्कठा कफर में पड़ रहे इसलिए खजर की रोशनी को सहायता से दक्षिा लोंघ कर वे भी उसी तरफ गए जिधर वह नाजनीन गई थी। अब जिस कमरे में कुँअर आनन्दसिह ने पैर रक्या वह बनिस्बत तस्वीरों वाले कमरे के कुछ बड़ा था और उसके दूसरे सिरे पर भी वैसा ही एक दूसरा दर्वाजा था जैसा तस्वीर वाले कमरे में था। कुँअर साध्य विना इधर-उधर देखे उस दर्वाजे तक चल गये मगर जब उस पर हाथ रखा तो बन्द पाया। उस दर्वाजे मे कोई जजीर या ताला दिखाई न दिया जिसे खोल या तोड कर दूसरी तरफ जाते। इससे मालूम हुआ कि इस दर्वाजे का खोलना याबद करना उस दूसरी तरफ पाले के आधीन है। बडी देर तक आनन्दसिह उस दर्वाजे के पास खडे होकर सोचत रहे मगर इसके वाद जब पीछे की तरफ हटने लगे तो उस दर्वाजे के योलने की आहट सुनाई दी। आनन्दसिह रूके और गौर से देखने लगे। इतने ही में एक आवाज इस ढग की आइ जिसने आन्दसिंह को विश्वास दिला दिया कि उस तरफ की जजीर किसी ने तलवार या खजर से काटा है। थोड़ी ही देर बाद दर्याजा खुला और कुँअर इन्द्रजीतसिह दिखाई पडे। आनन्दसिह को उस औरत के देखने की लालमा हद से ज्यादे थी और कुछ कुछ विश्वास हो गया था कि अवकी दफे पुन उसी औरत को देखेंगे मगर उसके बदले में अपने वर्स भाई को देखा और देखते ही खुश होकर बोले 'मैने तो समझा था कि आपसे जल्द मुलाकात न होगी परन्तु ईश्वर ने बडी कृपा देवकीनन्दन खत्री समग्र