पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६५

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जसवन्त यहाँ हमारे खेमे के पहर पर अपन जवान भेजे हैं ? सिपाही-जी हाँ। जसवन्त-कुछ सोच कर) अच्छा तुम लोग पहरा छोड दो मगर इस खेमे के पास ही रहो। सिपाडी-बहुत खूब। जसवन्त फिर खेमे के अन्दर गया, कालिन्दी ने पूछा, 'क्या बात है?' जसवन्त-एक नया गुल खिला है। कालिन्दी-वह क्या? जसवन्त यालसिह ने अपने अरदली के सिपाही यहाँ हमारे पहरे पर मुकर्रर किये है। कालिन्दी--इसमें जरूर कोई भेद है तुम कुछ उज मत करो। जसवन्त-नहीं नहीं उज़ क्यों करने लगा क्या मैं इतना बेवकूफ हू ? उसस जरा भी इस बारे में कुछ कहूगा तो चौकन्ना हो जायेगा और उलटा बेईमान बनायेगा मुझे तो इस समय अपना काम निकालना है। आधी रात के समय कालिन्दी ने मर्दानी पोशाक पहरी और जसवन्तसिह के साथ खेमे के बाहर निकली। दोनों आदमी निहायत उम्दे अरची घोडों पर सवार हुए ओर दक्खिन का कोना लिये हुए पश्चिम की ओर चल पडे। कालिन्दी ने जसवन्तमिह से कहा आपको सुरग का मुहाना दियाने ले तो चलती हू मगर वहाँ का रास्ता बहुत ही बीहड और पेंचदार है जरा गौर से चारो तरफ देखते हुए चलियेगा । जसवन्त-काई हर्ज नहीं चली चलो, मैं इस काम में बहुत होशियार हू कालिन्दी-इस भरोसे न रहियेगा मैं फिर कहती है कि अपने चारो तरफ की निशानियों पर खूब गौर से निगाह करत हुए चलिये। जसवन्त-बहुत ठीक। दोनों आदमी लगभग तीन कोस के चले गए। आगे एक छोटा सा नाला मिला जिसमें पानी तो बहुत कम था मगर जल लेजी के साथ वह रहा था। दोनों आदमी पार हो किनारे किनारे जाने लगे और थोडी दूरतकघूमधूमौवे पर चल कर एक पुराने मयानक स्मशान पर पहुचे । पहर रात बाकी थी। चाँदनी अच्छी तरह फैली रहने के कारण इधर उधर की चीजें साफ मालूम पड रही थीं। चारो तरफ फैली पुरानी हड्डियों पर निगाह दौडाने से विश्वास होता था कि यह स्मशान बहुत पुराना है मगर आजकल काम में नहीं लाया जाता। पास ही में एक लम्बा चौडा कब्रिस्तान भी नजर पड़ा जो एक मजबूत सगीन चारदीवारी से घिरा हुआ था एक तरफ फाटक था मगर बिना किवाडे का। जसवन्तसिह को साथ लिये हुए कालिन्दी उस कब्रिस्तान में घुसी ओर धोडे पर से उत्तर कर बोली “बस हम लोग ठिकाने पहुच गए आप भी उतारेये | जसवन्तसिह भी घोडे से उतर पड़ा और दोनों आदमी कब्रिस्तान में घूमने लगे। कालिन्दी-आपने इस कविस्तान को अच्छी तरह देखा? जसवन्त-हॉ बखूबी देख लिया। कालिन्दी-आप क्या समझते है कि इन कत्रों में मुर्दे गडे हैं ? जसवन्त-जरूर गडे होंगे मगर शाबाश तुम्हारा दिल भी बहुत ही कडा है, इस तरह वेधडक ऐसे भयानक स्थान में चले आना किसी ऐसी वैसी औरत का काम नहीं। कालिन्दी-(हॅस कर) जो काम औरत से न हो सके उसे मर्द क्या करेगा? जसवन्त-येशक अज तो मुझे यही कहना पड़ा। कालिन्दी-हॉ तो आप समझते है कि इन कत्रों में मुर्दे गडे हैं ? जसवन्त-क्या इसमें भी कोई शक है? कालिन्दी-इन कब्रों में से कोई भी कब्र ऐसी नहीं है जिसमें लाश गडी हो सिर्फ दिखाने के लिये ये कवें बनाई गई है इन सभी के नीचे कोठरियों बनी हुई है जिसमें समय पर हजारों आदमी छिपाये जा सकते हैं। जसवन्त--(ताज्जुब स) तो क्या उस सुरग का फाटक भी इन्हीं कब्रों में से कोई है? कालिन्दी-हॉ ऐसा ही है मैं उसे भी दिखाती हू। जसवन्त-क्या तुम कह सकती हो कि यह कब्रिस्तान कव का बना है ? कालिन्दी-नहीं मुझे ठीक मालूम नहीं मगर इतना जानती हू कि सैकडो वर्ष का पुराना है, कभी कभी इसकी मरम्मत भी की जाती है अच्छा अव आप आइये सुरग का दर्वाजा दिखा दूं। कुसुम कुमारी १०७३