पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दि dy - साकरा खति गलि घसमड तो चड छनेज काझ खञ या लठ नड कढ रोण औत रथ इद सध तिन लिप स्मफ कीब ताभ लीम किय सीर चल लब तीश फिष रस तीह *से कप्रा खप्तग कध रोड इच सछ बाज जेझ में अवेट सठ बड बाढ तेंण भत रीथ हैद जिघ नन कीप तुफ म्हेंव जभ रूम रथ तर हैल तास लीश लष मास याह 'कक रोख औग रध सुड नाच कछ रोज अझ गञ रट एठ कड हीढ दण फेत सुथ न द नेध सेन सप मफ झव में भन म आय वेर तोल दोव हश राष कस रह *के क भीख सुग नध सड कच तेछ हौज इझ सत्र कीट तठ कीड बढ़ औण रत ताथ लीद इध सीन कष मफ रेब में भहैमढूयढोर। इसके बाद वाने का योलना बन्द हो गया और फिर किसी तरह की आगज न आईअर इन्द्रजीतसिह जा कुछ लिख चुके थे उस पर गौर करो लगे। यद्यपि याने घेतिर पैर की मालूम हो रही थीं मगर थोड़ी ही देर में उनका मतलब इन्दजातसिह समझ गए जब आनन्दसिह को समझाया तो वे भी बहुत खुश हुए और बोले अब कोई हर्ज नहीं हम लोगों का कोई काम अटका न रहगा मगर वाह रे कारीगरी । इन्द्र-नि सदेह एसी ही गात है मगर जब तक हम लोग उस तालो को पा न लें इस कमरे ही बाहर न होना चाहिए कौन ठिकाना अगर किसी तरह दरवाजा बन्द हो गया और यहाँ न आ सके तो बड़ी मुश्किल होगी। आनन्द-मैं भी यही मुनासिब समझता हू । इन्द-अच्छा नव इस तरफ आओ। इतना कह कर कुँअर इन्द्रजीतमिह उस बडी तस्वीर की तरफ बढ़ और आनदसिह उनके पीछे चल । उस आवाज का मतलब जो बाजे में से सुई दी थी इस जगह लिखन की कोई आवश्यकता नहीं जान पडती क्योंकि हमारे पाठक यदि उन शब्दों पर जरा भी गौर करेंग तो मतलव समझ जॉयो कोइ कठिन बात नहीं है। पांचवां बयान कल्याणसिह काली बजाने के साथ ही बहुत से आदमी हाथों में नगी तलवारें लिए हुए उसी कोठरी में से निकल आगे जिसमें से कल्याणसिह निकला था मगर शरअलीखा की मदद के लिए केवल एक वही नकाबपोश उस कमरे में था जो दरवाजा खोला के साथ ही उन्हें दिखाई दिया था। विशेष बातचीत का समय तो न मिला मगर नकाबपोश ने इतना शेर अलोखों से अवश्य कह दिया कि आप अपनी मदद के लिए अभी किसी को भी न बुलाइए इन लोगों क लिए अकेला में ही बहुत है यदि मेरी बात पर आपको विश्वास न हो तो जल्दी से इस कमरे के बाहर हा जाइए । देवकीनन्दन खत्री समग्र ६४२