पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६५१

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ar - यद्यपि सैकड़ों आदमियों के मुकाबले म केवल एक नकाबपोश का इतना बडा हौसला दिखाना विश्वास करने योग्य " नथा मगर शेरअलीशा खुद भी जवॉभर्द और दिला आदमी था इस सवब से या शायद और किसी सबब से उसने नकाबपोश की बात पर विश्वास कर लिया और किसी को बुलाने के लिए उद्योग न करके अपन बिछावन के नीचे से तलवार निकाल कर लड़न के लिए स्वयम् भी तेयार गया। यह नकाबपाश असल में भूतनाथ या जा सयूसिंह के कह मुताविक शेरअलीखों के पास आया था। उसे विश्वास था कि शेरअलीखाँ काल्याणसिह को माद के लिए तैयार हो जायगा मगर जब उसन कमरे के बाहर से उन दोनों की बातें सुनी और शरअलीखों को नेक इमानदार और इन्साफपस द और सच्चा बहादुर पाया तो बहुत प्रसन्न हुआ और जी जान स उसकी मदद करने के लिए तैयार हा गया । हमार जाटक यह नो जानते ही हैं कि भूतनाथ के पास भी कमलिनी की दिया हुआ एक तिलिस्मी खजर है जिसे भूतनाथ पर कई तरह का श और मुकदमा कायम होने पर भी कमलिनी ने अपनी बात को याद करके अभी तक नहीं लिया था। आज उस खजर की बदौलत पूतनाथ ने इतना बडा हौसला किया और वेईमानों के हाय स शेरअलीखों को बचा लिया। जिस समय कल्याणसिह न भूतनाथ का मुकाबिला करना चाहा उस पमय भूतनाथ ने फुर्ती से अपने चेहरे की नकाब उलट दी और ललकार कर कहा आज बहुत दिनों पर तुम लोग भूरानाभाये सामने आये हो जरा समझ कर लडना। इतना कहकर भूतनाथ ने तिलिस्मी सजर से दुश्मनों पर हमला किया इर' नियत से कि किसी की जान भी न जाय सर गिरफ्तार कर लिए जाय । सबसे पहिल उसो खजर का एक साधारण हाथ कल्याणसिह पर लगाया जिसपे उसकी दाहिनी कलाई जिसमें नगी तलवार का कब्जा था कट कर जमीन पर गिर पड़ी साथ ही इसके तिलिस्मी खजर की तासीर ने उसके बदन में बिजली पैदा कर दी और वह बेहाश हाकर जमीन पर गिर पड़ा। जिस समय कल्याणसिह और उसके साथियों ने भूतनाथ का नाम सुना उसी समय उनकी हिम्मत का बँटवारा हा गया। आधी हिम्मत ता लाचारी के हिस्से में पड कर उनके पास रह गई और आधी हिम्मत उक उगह के साथ निकल कर वायुमण्डल की तरफ पधार गई। भूतनाथ चाहे परले सिरे का बहादुर हो या न हो मगर उसको ने उसका नाम यहादुरी और ऐयारा की दुनिया में बडे रोब और दाव के साथ मशहूर कर रक्खा था। चाहे कैसा ही यहादुर और दिलेर आदमो क्यो न हो मगर “रपन मुकाबिले में भूतनाथ का नाम सुनते ही उसकी हिम्मत टूट जाती थी।यहाँ भी वहीं मामला हुआ और दुश्मनों की पातहिम्मती ने उनकी किस्मत का फैसला भी शीघ्र ही कर दिया। और सब जिस समय कल्याणसिहाहाश हाकर जमीन पर गिरा उसी समय एक सिपाही ने भूतनाथ पर तलवार का वार किया। भूतनाथ ने उर्स तिलिस्मी खजर पर राका और इसके बाद खजर उसके बदन से छुला दिया जिसका नतीजा यह निकला कि दुश्मन की तलवार दो टुकडे हो गई और वह वहाश होकर जमीन पर गिर पड़ा। इसी बीच मे बहादुर शेरअलीखा न दो सिपाहियों को जान से मार गिराया जिन्हान उस पर हमला किया था। निसन्देह कल्याणरिह क साथी इतने ज्याद थकि शेरअली । को मार डालत या गिरफ्तार कर लेते मगर भूतनाथ की मुस्तैदी न ऐसा होने न दिया । उस कमरे में खुल कर लड़ने की जगह न थी और इस सबब स भी भूतनाथ को फायदा भी पहुंचा। जितनी दर में शेरअलीखॉ ने हिम्मत और मर्दानगीसे चार अदमियों का काम किया उतनी देर में भूत हाथ की चालाकी और फुर्ती के बदौलत भूतनाथ का इस बात का भी विश्वास हो गया कि शेरअलीखा जो कई जख्म खा चुका था ज्याद देर तक इन लागों के मुकाबले में ठहरन सकेगा अतएव उसन सोचा कि जहा तक जल्द हो सके इस लडाई का फैसला कर ही देना चाहिये ताज्जुब नहीं कि अपो साथियों को गिरते दर दुश्मनों का जाश बढ जाय मगर उधर नो मामला ही दूसरा हो गया। अपन साथियों को बिना जख्म खाये गिरत ओर वेहाश हात दख दुश्मनों को बडा ही ताज्जुब हुआ और उहोंने सोचा कि भूत ाथ केवल ऐयार बहादुर ओर लडाका ही नहीं है बल्कि किसी देवता का प्रवल इप्ट भी रखता है जिससे ऐसा हो रहा है। इस खयाल के आने के साथ ही उन लागों ने भागन का इरादा किया मगर ताज्जुब की बात थी कि वह रास्ता,जिधर से वे लोग आय थे एक दम बन्द हो गया था इस बब स पीठ दिराकर भागने वालों की जान पर भी आफत आई। र तो शेरअलौखा की तलवार ने कई सिपाहियों का फैसला किया और उधर भूतनाथ न तिलिस्मी खजर का कब्जा दाया जिससे बिजली की तरह चमक पैदा हुई और भागनेवाला की आख एकदा वन्द हो गई। फिर क्या था भूतनाथ ने थोडी ही देर में तिलिस्नी खजर की बदौलत बाकी यच हुओं को भी बेहोश कर दिया और उस समय गिनती करने पर मालूम हुआ कि दुश्मा सिर्फ पैतालीस आदमी थे कल्याणसिह ने यह बात झूठ कही थी कि मेरे साथ सौ सिपाही इस मकान में मौजूद है या आया ही चाहत है। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १४