पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६५४

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-- १ अ- २ १ 19 ३ 19 २ ओ २ ५ 4 0 २ ३ ओ ओ ३ ८ ४. ५ 9 इ 4 १ ई ओ अ ७ O AN ३ ३ c 4 ५ ६ ६ १ २ २ अं 0 २ O ३ ३ 0 १ 9 आ २ १ १ Ö ५ ए 0 ३ 427 ए ६ ५ ६ १ २ 4 थोडी देर तक तो इस लेख का मतलब समझ में न आया लेकिन बहुत सोचने पर आखिर दोनों कुमार उसका मतलब समझ गए *और प्रसन्न होकर आनन्दसिह बोले- आनन्द-देखिये तिलिस्मी के सम्बन्ध में कितनी कठिनाइयों रक्खी हुई है। इन्द्र-यदि ऐसा न हो तो हर एक आदमी तिलिस्म के भेद को समझ जाय ! आनन्द-अच्छा तो अब क्या करना चाहिए? इन्दजीत-सबसे पहिले बाजे की ताली खोजनी चाहिए इसके बाद बाजे की आज्ञानुसार काम करना होगा। दोनों भाई बाजे वाले चबूतरे के पास गये और घूम घूमकर अच्छी तरह देखने लगे। उसी समय पीछे की तरफ से आवाज आई "हम भी आ पहुचे। दोनों भाइयों ने ताज्जुब के साथ घूमकर देखा तो राजा गोपालसिह पर निगाह पडी। यद्यपि कुअर इन्दजीतसिह और आनन्दसिह को राजा गोपालसिह के साथ पहिल ही मोहब्बत ज्यादे हो गई थी मर जब से यह मालूम हुआ कि रिश्ते में 4 इनके भाई है तव से मुहब्बत ज्यादे हो गई थी और इसीलिए इस समय उन्हें देखते ही इन्द्रजीतसिह दौडकर उनके गले से लिपट गये तथा उन्होंने भी बड़े प्रेम से दबाया। इसके बाद आनन्दसिह अपने भाई की तरह गले मिले और जब अलग हुए तो गोपालसिह ने कहा मालूम होता है कि महाराज सूर्यकान्त की तस्वीर के नीचे जो कुछ लिखा है उसे आप दोनों भाई पढ चुके हैं । इन्द्र-जी हा और यह मालूम करके हमें बड़ी खुशी हुई कि आप हमारे भाई है ! मगर मै समझता हूं कि आप इस बात को पहिले ही स जानते थे। गापाल -वेशक इस बात को मै बहुत दिनों से जानता हू क्योंकि इस जगह कई दफे आ चुका हूं लेकिन इसके अतिरिक्त तिलिस्म सम्बन्धी एक ग्रन्थ भी मेरे पास है जिसमें भी यह बात लिखी हुई है। आनन्द-तो इतने दिनों तक आपने हम लोगों से कहा क्यों नहीं? गोपाल-उस किताब में जो मेरे पास है ऐसा करने की मनाही थी मगर अब मैं कोई बात आप लोगों से नहीं छिपा सलता और न आपही मुझसे छिपा सकते है। इन्द-क्या आप इसी राह स आते-जाते है और आज भी इसी राह से हम लोगों को छोड़ कर निकल गये थे? गोपाल नहीं नहीं मेरे आने-जाने का रास्ता दूसरा ही है। उस कूए में आपने कई दाजे देखे होंगे उनमें जो सबसे छोटा दर्वाजा है, उसी राह से आता-जाता हूँ, यहा दूसरे ही काम के लिए कभी-कभी आना पड़ता है। इद्र-यहा आने की आपको क्या जरूरत पडा करती है। गोपाल-इधर तो मुद्दत से मैं आफत में फसा हुआ था आप ही ने मेरी जान बचाई है इसलिए दो दफे से ज्यादे आने की नौबत नहीं आई हा इसके पहिले महीने में एक दफे अवश्य आता और इन कमरों की सफाई अपने हाथ से करनी पड़ती थी। जो किताब मेरे पास है और जिसका जिक्र मैने अभी किया उसके पढने से इस तिलिस्म का कुछ हाल

  • पाठकों के सुभीते के लिए इन दोनों मजमूनों का आशय इस भाग के अन्तिम पृष्ठ पर दे दिया गया है पर उन्हें

अपनो चेष्टा से मतलब समझने की कोशिश अवश्य करनी चाहिए। देवकीनन्दन खत्री समग्र ६४६