पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६५८

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. 'धोने बाद दा-तीन चुल्लू जल पीकर हरारत मिटाई। गोपाल-अब आप लोग इस बाग में घफिक्री के साथ अपना काम करें मैदान जाय और स्नान सध्या पूजा से छुट्टी पाकर याग की सैर करें तब तक में खास बाग में जाकर कुछ यान का सामान और तिलिरमी फिताय जो मरे पास है ले आता है। इस बाग में मेवे के पडसी यातायत से है यदि इच्छा हो तो आप उनके फल खाने के काम में ला सकते है। इद्र-बहुत अच्छी बात है आप जाइये मगर जहा तक हो सक जल्द आइएगा! आनन्द--क्या हम लोग आपक साथ बाग में नहीं चल सकते? गोपाल-क्यों नहीं चल सकतमगर में इस समय आप लोगों को तिलिरम के बाहर लजा पसन्द ही चारता और तिलिस्मी किताब में भी एसा करने की मनाही है। इन्द्र-येर काई चिन्ता ही आप जाइए और जल्द लौटधार आइए। जब तिलिस्मी किताय जा आपक पास है हम लाग पढ़ लेंग और आप भी इस रिक्ताय को जामेर पास है पढ लेंगे तब जैसी राय होगी किया जायेगा। गोपाल-ठीक है अच्छा ता अय में जाता हूँ। इतना कह कर राजा गाणलसिह एक तरफ चले गये और फेअर इन्द्रजीतसिह तथा आगन्दसिह जरूरी कामों से छुट्टी पान की फिक्र म लगे। सातवां बयान रात पहर भर राज्यादे जा चुकी है पददेव उदय हो चुके हैं मगर अभी इतन ऊच नहीं उठे है कि बाग के पूरे हिस्से पर चादनी फैली हुई दिखाई देती हा चाग के उस हिस्से पर चादनी का फर्श जकर विछ धुका था जिधर कुअर इन्दजीलसिह और आनन्दसिह एक चट्टान पर बैठे हुए बाते कर रहे थे। ये दोनों भाई अपने जरूरी कामों से छुट्टी पा चुके थ और सन्ध्या-बदन करके दो चार फलो स आत्मा को सन्तोष देकर आराम से बैठे बातें करते हुए राजा गापालसिह के आन का इन्तजार कर रहे थे। यकायक बाग के उस कान में जिधर चादनी न होन तथा पड़ों के झुरमुट के कारण अर्धरा या दिय की चमक दिखाई पड़ी। दोनों भाई चौकन्ने होकर उस तरफ दखने लगे और दोनों को गुमान हुआ कि राजा गोपालसिह आते होग मगर उनका शक थाड़ी ही देर बाद जाता रहा जर एक औरत को हाथ में लालटन लिए अपनी तरफ आते देखा। इन्द्रजीत-यह औरत इस बाग में क्योंकर आ पहुँची? आनन्द-ताज्जुब की बात है। मगर में समझता हू कि इसे हम दोनों भाइयों के यहां होने की खबर नहीं है अगर होती तो इस तरह चेफिक्री के साथ कदम बढाती हुई न आती। इन्द-मैं भी यही समझता हू अच्छा हम दोनों का छिपकर देखना चाहिए यह कहाँ जाती और क्या करती है । आनन्द-मेरी भी यही राय है। दोनो भाई यहा से उठे और धीरेधीरे चलकर पेड़ की आड़ में छिप रहे जिसे चारों तरफ सलताओं ने अच्छी तरह घेर रक्या था और जहा से उन दोनों की निगाह धाग के हर एक हिस्से और कोने में बखूबी पहुच सकती थी। जब वह औरत धुमती हुई उस पेड़ के पास से होकर शिकली तब आनन्दसिह धीरे से कहा यह वही औरत है। इन्द्रजीत-को12 आनन्द-जिस तिलिस्म के अन्दर चाज चाल कमर में में देखा था और जिसका हाल आपसे तथा गोपाल भाई से कहा था। 'इन्द- | अगर परिसर में ऐसा है तो फिर इस गिरफ्तार करना चाहिए। आन्द-जरुर गिरफ्तार पारना चाहिए। दाना भाई सलाह करक उस प3 के आ, में से निकल और उस औरत को घेरकर गिरफ्तार करने का उद्योग कर लगा थोडी दर याद नजदीक हारजीतसिंह भी देखकर निश्चय कर लिया कि हाथ में लालटेन लिए ran वही औरत जिन लिस्म में का लरकार हुए आदमी के साथ-साथ निर्जीव खड देखा था। उस औरत को मालूम ६ गया कि दा आदमी उस गिरफ्तार किया सारते । अतएव यह चैतन्य हो गई और चमेली की टरियां म घूम फिर कर की गायब 11 गई। दा माइयो । बहुत उा। और पीछा किया मगर नतीजा कुछ देवकीनन्दन खत्री समग्र