पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६५९

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भी न निकला वह औरत ऐसा गायब हुई कि काइ निशान भी न छोड गई न मालूम वह चमेली की टिटयों में लीन हो गई या जमीन के अन्दर समा गई। दोनों भाई लज्जा के साथ ही साथ निराश होकर अपनी जगह लौट आये और उसी समय राजा गोपालसिह को भी एक हाथ में चमर और दूसरे हाथ में तेज रोशनी की अद्भूत लालटेन लिए हुए आते देखा। गोपालसिह दोनों भाइयों के पास आए और लाल्टन तथा चगेर जिसमें खाने की चीजें थी जमीन पर रखकर इस तरह बैठ गये जैसे बहत दूर का चला आता हुआ मुसाफिर परेशान और बदहवासी की हालत में आगे सफर करने से निराश हा कर पृथ्वी की शरण लेता है या कोई धनी अपनी भारी रकम यो दन के बाद चोरों की तलाश से निराश और हताश होकर बैठ जाता है। इस समय राजा गोपालसिह के चेहरे का रंग उडा हुआ था और वे बहुत ही परशान और बदहगस मालूम होत थे। कुँअर इन्दीतसिह और आनन्दसिह को बडा आश्चर्य हुआ और उन्होंने घबरा कर पूछ। कहिए कुशल ता है? गोपाल-(घबराहट के साथ ) कुशल नहीं है। इन्दजीत-सा क्या? गोपाल-मालूम होता है कि हमार घर में किसी जबर्दस्त दुश्मन ने पैर रक्खा है और हमार यहाँ से वह चीर ले गया जिसके भरोसे पर हम अपन को तिलिस्म का राजा समझते थे और तिलिस्म ताडने के समय आपकी मदा देने का होगला रखत थे। आनन्द--वह कौन सी चीज थी? गोपाल-वही तिलिस्मी किताब जिसका जिक आप लोगों से कर चुके हैं और जिसे लाने के लिए हम इस समय गए इन्दजीत-(रज के साथ ) अफसोस | क्या आप उस छिपा कर नहीं रखते थे? गोपाल-छिपा कर ता ऐसा रखते थे कि हमे वर्षों तक कैदखाने में सडाने और मुर्दा बनाने पर भी मुन्दर जिसने अपन को मायारानी ना रक्खा था उसे पा न सकी? इन्द-तो आज वह एकाएक गायब कैसे हो गई? n गोपाल-न मालूम क्योंकर गायब हो गई मगर इतना जरूर कह सकते है कि जिसने यह किताब चुराई है वह तिलिस्म के भदों के कुछ जानकार अवश्य हो गया है । इसे आप लाग साधारण वात न समझिए 'इस चोरी से हमारा उत्साह भग हो गया और हिम्मत जाती रही हम आप लोगों को इस तिलिस्म में किसी तरह की मदद दने लायक न रहे और हमें अपनी जान जान का भी खौफ हा गया। इतना ही नहीं सबसे ज्यादे तरदुद की बात तो यह है कि वह चोर आश्चर्य नहीं कि आप लोगों को भी दुखद। इन्द्रजीत यह तो बहुत बुरा हुआ। गोपाल- बेशक बुरा हुआ। हो यह तो बताइये इस बाग में लालटेन लिए कौन घूम रहा था? आनन्द-वही औरत जिसे मैने तिलिस्म के अन्दर बाजे वाले कमरे में दखा था और जो फॉसी लटकते हुए मनुष्य के पास निर्जी अवस्था में खड़ी थी। (इन्दजीत की तरफ इशारा करके) आप भाईजीस पूछ लीजिए मै सच्चा या या नहीं। इन्द-यणक उसी रग-रूप और चाल-दाल की औरत थी। गोपाल-यडे आश्चर्य की बात है | कुछ अक्ल काम नहीं करती ॥ इन्द्र-इम दोनों ने उसे गिरफ्तार करने के लिए बहुत उद्योग किया मगर कुछ बनना पड़ा। इन्ही चमेली की टटिटयः में वह खुशबू की तरह हवा के साथ मिल गई कुछ मालूम न हुआ कि कहा चली गई ! गोपाल-(घबड़ाकर) इन्हीं चमेली को टटिटयों में ? वहा से ता देवमन्दिर में जान का रास्ता है जो बाग के चौथ इन्द-(चौक कर) देखिए दखिए वह फिर कली। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १४