पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६६१

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दि उसी समय मनोरमा को लिए हुए भूतनाथ भी वहाँ आ पहुंचा और अपने सपूत लडके को देखकर बहुत खुश हुआ। भूतनाथ ने मनोरमा को तो अपने आदमियों के हवाले किया और नानक का हाथ पकड के एक किनारे ले जाने के बाद जो कुछ उस पर बीता था सब व्योरेवार कह सुनाया। . नानक-(अफसास के साथ मुह बनाकर) अफसास 1 आपने इन बातों की मुझे कुछ भी खबर न दी । अगर गोपीकृष्ण आपकी परेशानी का कुछ हाल मुझसे न कहते तो मुझे गुमान न होता । भूत-खैर जो कुछ होना था वह हो गया अब तुम मनोरमा को लकर वहीं जाओ जहाँ तुम्हारी मॉ रहती है और जिस तरह हो सके मनोरमा से पूछ कर बलभदसिह का पता लगाओ मगर एक आदमी को साथ जरूर लिए जाओ क्योंकि आजकल तुम्हारी मॉ जिस ठिकाने रहती है यद्यपि वहाँ का हाल तुमसे हमने कह दिया मगर रास्ता इतना खराव है कि मिना आदमी साथ ले गए तुम्हें कुछ भी पता न लगेगा। नानक जो आज्ञा तो क्या इस समय आप सीधे रोहतासगढ़ जायेंगे ? भूत-हाँ जरूर जायेंगे क्योंकि ऐसे समय में शेरअलीखॉ से मिलना आवश्यक है मगर जबतक हम न आवें तुम अपनी मॉ के पास रहना और जिस तरह हो सके बलभदसिह का पता लगाना। इसके बाद नानक को लिए हुए भूतनाथ फिर अपने आदमियों के पास चला आया और एक आदमी का धन्नूसिह का पता चला कर (जिसे कैद करके कहीं रख आया था) कहा कि तुम धन्नूसिह को वहाँ से लाकर हमारे घर पहुंचा दा और फिर इसी ठिकाने आकर रहो। इन कामों से छुट्टी पाने के बाद भूतनाथ रोहतासगढ शेर अलीखॉ के पास गया और वहाँ जो कुछ हुआ सो हमारे प्रेमी पाठक पढ़ चुके हैं। नौवां बयान दोपहर का समय है ।हवा खूब तेज चल रही है । मैदान में चारों तरफ बगुले उडते दिखाई दे रहे है। ऐसे समय में एक बहुत फैले हुए और गुंजान आम के पेड़ के नीचे नानक और भूतनाथ का सिपाही जिसने अपना नाम दाउ बावा रक्खा हुआ था वैठे हुए सफर की हरारत मिटा रहे है। पास ही में गनोरमा भी बैठी है जिसके हाथ पेर कमर से वधे हुए हैं। थाडी ही दूर पर एक घोडी चर रही थी जिसकी लम्बी बागडोर एक डाल के साथ बधी हुई थी और जिस परमनोरमा को लाद के व लोग लाये थे। इस समय सफर की हरारत मिटाने और घूप का समय टाल देने के लिए वे लोग इस पेड़ के नीचे बैठे हुए बात कर रहे है। नानक-(मनोरमा से ) मुझे तुम्हारी सूरत शक्ल पर रहम आता हे तुम नाहक ही एक बदकार और नकली मायारानी के लिए अपनी जान दे रही हो। मनोरमा-(लम्बी सास लेकर ) बात तो ठीक है मगर अब जान बचने की कोई उम्मीद भी नहीं है। सच कहती हूँ कि इस जिन्दगी का मजा मैने कुछ भी नहीं पाया। मेरे पास करोड़ों रुपये की जमा मौजूद है मगर वह इस समय मेरे किसी अर्थ की नहीं न मालूम उस पर किसका कब्जा होगा और उसे पाकर कौन आदमी अपने की भाग्यवान मानेगा या शायद लावारिसी माल समझ राजा ही नानक--तुम रोती क्यों हो ऑखें पॉछो तुम्हारा रोना मुझे अच्छा नहीं मालूम हाता! सच कहता हूँ कि तुम्हारी जान बच सकती है और तुम अपनी दौलत का आनन्द अच्छी तरह भोग सकती हो यदि बलभद्रसिह और इन्दिरा का पता बता दो। मनोरमा-मै बलभद्रसिह और इन्दिरा का पता भी बता सकती है और अपनी कुल दौलत भी तुमको दे सकती हू यदि मेरी जान बच जाय और तुम एक सलूक मेरे साथ करो। नानक-वह कौन सा सलूक है जो तुम्हारे साथ करना होगा ? हाय मुझे तुम्हारी सूरत पर दया आती है। मैं नहीं चाहता कि एक ऐसी खूबसूरत परी दुनिया से उठ जाय । मनोरमा- यह बात बहुत गुप्त है इसलिए मैं नहीं चाहती कि इसे सिवाय तुम्हारे काई और सुने ! दाऊयाक्लो हम आप ही अलग हो जाते है तुम लोग अपना मज में बातें करो हमें इन सव बखेडों से कोई मतलब नहीं हमें तो मालिक का काम होने से मत्तलब है तब तक दा एक चिलम गाजा उड़ा के सफर की थकावट मिटाते है। इतना कहकर दाऊ बावा जो वास्तव में एक मस्त आदमी था उठकर कुछ दूर चला गया और अपने सफरी बटुए चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १४