पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६६३

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ने उसे और भी अन्धा बना दिया और जिस समय मनोरमा ने जहरीली अंगूठी नानक की उगली में पहिराकर उसके गुण की प्रशसा की उस समय तो नानक कानिश्चय हो गया कि बस अब यह हमारी हो चुकी। उसने सोचा कि इसे अपनाने में अगर भूतनाथ रज भी हो जाय तो काई परवाह की बात नहीं है और रज हाने का सबब ही क्या है बल्कि उसे तो खुश होना चाहिए क्योकि मेरे ही सबब से उसकी जान बचेगी। नानक न मी मनोरमा के गले में हाथ डाल के उसस कुछ ज्यादे ही प्रम का बताब किया जो मनोरमा ने नानक क साथ जिया था और तब कहा अच्छा सा अब मै भी तुम्हारा हो चुका तुम भी जहा तक जल्द हा सके अपना वादा पूरा करो। मनोरमा-भे तैयार हू अपने साथी लण्ठाधिराज को विदा करो और मेर साथ जमानिया के निलिस्मी बाग की तरफ चलो। ननक-यह क्या है? म्नारमा-बलभद्रसिह ओर इन्दिरा उसी में कैद हे पहिले उन्हीं का छुडाकर तुम्हार वाप को खुश करना नै उचित समझते हूँ। ननक-हा यह राय बहुत अच्छी है मैं अभी अपन साथी को समझा बुझा कर विदा करता हु । इतना कह कर नानक अपन साथी के पास चला गया जो गाजे का दम लगा रहा था। मनोरमा का हाल नमक मिर्च लगाकर उससे कहा और समझा बुझाकर उसी अडडे पर जहा से आया था-वले जान के लिए राजी किया बल्कि उसे विदा करक पुन मनोरमा के पास चला गया। मनोरमा-तुम्हारा साथी ता सहज री में चला गया। नानक-आरियर यह मेरे बाप का नोकर ही तो है अस्तु जा कुछ मैं कहूगा उसे मानना ही पडेगा। हातो अब तुम भी चलने केलिए तैयार हो जाओ। मनोरमा--( खड़ी होकर ) मैं तैयार हू, आओ। नानक-एसे नहीं मेर बटुए में कुछ खाने की चीजें मौजूद हैं लोटा-डोरी भी तैयार है वह दखो सामने कूआ भी है रस्तु कुछ खापी कर आत्मा का हरा कर लना चाहिए जिसमें सफर की तकलीफ मालूम न पडे ।, मनोरमा-जो आज्ञा! नानक ने बटुए मे से कुछ खाने को निकाला और कुए मे से जल खीचकर मनोरमा के सामने रक्षा। मनो-पहिले तुम खा लो फिर तुम्हारा जूठा जा बचेगा उसे मैं खालूगी। नानक नहीं नहीं ऐसा क्या तुम भी खाओ और मैं भी खाऊ । मनो-एसा कदापि नहीं होगा अब मै तुम्हारी स्त्री हो चुकी और सच्चे दिल से हो चुकी फिर जैसा मरा धर्म है वैसा ही करूगी। नानक ने बहुत कहा मगर मनोरमा न कुछ भी न सुना ! आखिर नानक को पहिले खाना पड़ा। थोड़ा सा खाकर नानकन पो कुछ छोड दिया,मनोरमा उसी का खाकर चलने का तैयार हो गई। नानक घोड़ा कसा और दोनों आदमी उसी पर सवार होकर जगल ही जगल पूरय की तरफ चल निकल। इस समय जिस राह से मनोरमा कहती थी नानक उसी राह से जाता थाशाम होते-होते ये दानों उसी खडहर के पास पहुंचे जिसमें हम पहिले भूतनाथ और शेरसिह का हाल लिख आए है जहा राजा वीरन्दसिह को शिवदतने घेर लिया श जहा से शिवदत्त को नहाने चकमा देकर फसाया था या जिसका हाल ऊपर कई दफे लिया जा चुका है। मनो अब यहाँ ठहर जाना चाहिय। नानक-क्यों? मनोयड ता आपको मालूम हा ही चुका हागा कि इस खण्डहर में से एक सुरंग जमानिया के तिलिस्मी बाग तक गई नानक-हा इसका हाल मुझे अच्छी तरह मालूम हो चुका है। इसी सुरग की राह स मायारानी या उनके मददगारों पहुँच कर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह क साथ और नी का आदमियों को गिरफ्तार कर लिया था। मना तो अब मै चाहती हूं कि उसी राह से जमानिया वाल तिलिस्मो नाग के दूसर दर्जे में पहुंचे और दोनों कैदियों का इस तरह निकाल बाहर पल कि किसी को किसी तरह का गुमान न हान पाय । मैं इस सुरंग का हाल अच्छी तरह चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १४