पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६६४

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६ N ? जानती हू इस राह से कई दफे आई और गई हूँ। इतना नहीं बल्कि इस सुरग की राह से जाने में और भी एक बात का सुबीता है। नानक-वह क्या? मनो-इस सुरंग में बहुत सी चीजें ऐसी है जिन्हें हम लोग हजारों रुपये खर्चने और वर्षों परेशान होन पर भी नहीं पा सकते और वे चीजें हम लोगों के बड़े काम की है जैसे ऐयारी के काम में आने लायक तरह-तरह की रोगनी पोशाकें जोन ता पानी में भीगें और न आग में जलें एक से एक बढ के मजबूत और हलके कमन्द पचासों तरह के नकाब तरह तरह की दवाइयाँ पचासों किस्म के अनमोल इन जो अव मयस्सर नहीं हो सकते इसके अतिरिक्त ऐश व आराम की भी संकडों चीजें तुमको दिखाई देंगी जिन्हें अपने साथ लेते चलेंगे (धीरे से) और मायारानी का एक जवाहिरखाना में इस सुरग में है। नानक-वाह वाह तब तो जरूर इसी सुरंग की राह चलना चाहिये इससे बढकर एक पन्य दो काज हो है नहीं सकता । मनो-और इन सब चीजों की बदौलत हम लोग अपनी सूरत भी अच्छी तरह यदल लेंगे और दो चार हर्वे भी लेलेंगे। नानक-ठीक है मैं इस राह से जाने के फायदों को अच्छी तरह समझ गया मगर हरयों की हमें कुछ भी जरूरी नहीं है क्योंकि कमलिनी का दिया हुआ एक खजर ही मेरे पास ऐसा है जिसके सामने हजारों लाखों बल्कि करोडों हरवेझख भार ।। मनो-( आश्चर्य से) सो क्या ? वह कैसा खजर है और कहा है ? नानक-(खजर दिखा कर ) यह मेरे पास मौजूद है जिस समय तुम इसके गुण सुनोगी तो आश्चर्य करो। इतना कहकर नानक घोडे के नीचे उतर पड़ा और सहारा देकर मनोरमा को भी नीचे उतारा। मनोरमा ने एकड़ के नीचे बैठ जाने की इच्छा प्रकट की और कहा कि घोड़े को छोड़ देना चाहिए क्योंकि इसकी अब हम लोगों को जरुत नहीं रही। नानक ने मनोरमा की बात मजूर की अर्थात् घोड़े को छोड़ दिया और कुछ देर तक आराम लेने की नीयत से दनों आदमी एक पेड़ के नीचे बैठ गये। मनोरमा ने तिलिस्मी खजर का गुण धूणा और नानक ने शेखी के साथबखान कला शुरू किया और अन्त में खजर का कब्जा दवा कर रिजली की रोशनी भी पैदा कर मनोरमा को दिखाया। चमक मनोरमा की आखें चौंधिया गई और उसने दोनों हाथों से अपना मुह दाप लिया। जब वह चमक बन्द हो गई तो नानक कहने से मनोरमा ने आखें खोली और खजर की तारीफ करने लगी। थोड़ी देर तक आराम करने बाद दोनों आदमीखण्डहर के अन्दर गये और उसी मामूली रास्ते से जिसका हाल कई दफे लिखा जा चुका है। उसी तहखाने के अन्दर गये जिसमें शेरसिह रहा करते थे या जिसमे से इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह गायब हुए थे। यह तो पाठकों को मालूम ही है कि राजा बीरेन्दसिह की सवारी आने के कारण इसखण्डर की अवस्था बहुत कुछ बदल गई थी और अभी तक बदली हुई है मगर इस तहखाने की हालत में किसी तरह का फर्क नहीं । पडा था। हमारे पाठक भूले न होंगे कि इस तहखाने में उतरने के लिए जो सीदिया थी उनके नीचे एक छोटी सी कोठरी थी जिसमें शरेसिह अपना असवाय रक्खा करते थे और जिसमें से आनन्द कमला और तारासिह गायब हुए थे। मनोरमा की आज्ञानुसार नानक ने अपने ऐयारी के बटुए मैसे मोमबत्ती निकालकर जलाई और मनोरमा के पीछे-पीछे उसी कोठरी में गया। यह कोठरी बहुत ही छोटी थी और इसके चारों तरफ की दीवार बहुत साफ और सगीन धी। मनोरमा ने एकतरफ की दीवार पर हाथ रख के कोई खटका या किसी पत्थर को दवाया जिसका हाल नानक को कुछ भी मालूम न हुआ मगर एक पत्थर की चट्टान भीतर की तरफ हद कर बगल में हो गई और अन्दर जाने के लिए रास्ता निकल आया। मनोरमा के पीछे-पीछे नानक उस कोठरी के अन्दर चला गया और इसके साथ ही वह पत्थर की सिल्ली बिना हाथ लगाये अपने ठिकाने चली गई तथा दर्वाजा बन्द हो गया। मनोरमा से नानक ने उस दर्वाजे को खोलने और बन्द करने की तीव पूछी और मनोरमा ने उसका भेद बता दिया बल्कि उस दर्वाजे को एकदफे खोल के और बन्द करके भी दिखा दिया। इसके बाद दोनों आगे की तरफ बढे। इस समय जिस जगह ये दानों वह एक लम्बा-चौडा कमरा था मगर उसमें किसी तरफ जाने के लिए कोई दर्वाजा दिखाई नहीं देता था, हा एक तरफ दीवार में एक बहुत बड़ी आलमारी जरूर बनी हुई थी और उसका पल्ला किसी खटके के दबाने से खुला करता था। मनोरमा ने उसके खोलने की तर्कीम भी नानक को बताई और नानक ही के हाथ से उसका पल्ला भी खुलवाया। पल्ला खुलने पर मालूम हुआ कि यह भी एक देवकीनन्दन खत्री समग्र