पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६६८

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दानों भाइयों की राय हुई कि इस बाजे में जो भी कुछ बाते भरी हुई है उन्हें एक दफे अच्छी तरह सुन कर याद कर लेना चाहिए, फिर सा होगा देखा जायगा आखिर ऐसा ही किया। बाजे की ताली उनके हाथ लग ही चुकी थी और साली लगाने के तरकीर उस तख्ती पर लिखी हुइ थी जो ताली के साथ मिली थी अस्तु इन्द्रजीतसिह ने बार्ज मे लाली लगाई और दोनों भाई उसकी आवाज गौर से सुनने लगे। जब बाजे का बोलना बन्द हुआ तो इन्दजीतसिह ने आनन्दसिह से कहा में वाज में ताली लगाता हु और तिलिस्मी खजर से रोशनी भी करता हू और तुम इस बाजे में से जो कुछ आवाज निकले सक्षेप रीति से लिखते चले जाओ। आनन्दसिह ने इसे कबूल किया और उसी किताब में जिसमें पहिले इन्द्रजीतसिह इस बाजे की कुछ आवाज लिख चुके थे,लिखने लगे। पहिले वह आवाज लिख गये जो अभी बाजे में से निकली थी इसके बाद इन्दजीतसिह ने इस बाजे का एक खटका दबाया और फिर ताली देकर आवाज सुनने तथा आनन्दसिह लिखने लगे। इस वार्ज में जितनी आवाजें भरी हुई थी उनका सुनना और लिखना दो चार घण्टे का काम न था बल्कि कई दिन का काम था क्योंकि बाजा बहुत धीरे-धीरे चल कर आवाज देता था - और जो बात कुमार के समझ में न आती थीं उसे दोहरा कर सुनना पड़ता था अस्तु आज चार घण्टे तक दोनों कुमार उस बाजे की आवाज सुनने और लिखने में लगे रहे इसके बाद फिर उसी बाग में चले आये जिसका जिक्र ऊपर आ चुका है। याकी का दिन और रात उसी वारा में बिताया और दूसरे दिन सबेरे जरूरी कामों स छुट्टी पाकर फिर तहखाने में घुसे तथा वाजे वाले कमरे में आकर फिर बाजे की आवाज सुनने और लिखने के काम में लगे। इसी तरह दोनों कुमारों को बाजे की आवाज सुनने और लिखने के काम में कई दिन लग गए और इस बीच में दोनों कुमारों ने तीन दफे उस औरत को देखा जिसका हाल पहिले लिखा जा चुका है और जिसकी लिखी एक चीठी राजा गोपालसिह के हाथ लगी थी। उस औरत के विषय में जो बातें लिखने योग्य हुई उन्हें हम यहाँ पर लिखते है। राजा गोपालसिह क जाने के बाद पहिली दफै जब वह औरत दिखाई दी उस समय दोनों भाई नहर के किनारे बैठे बातचीत कर रह थे। समय सध्या का था और बाग की हर एक चीज साफ-साफ दिखाई दे रही थी। यकायक वह औरत उसी चमेली की झाडी में से निकलती दिखाई दी! वह दोनों कुमारों की तरफ तो नहीं आई मगर उन्हें दिखाकर कपडे का टुकडा जमीन पर रखने के बाद पुन चमेली की झाडी में घुसकर गायब हो गई। इन्द्रजीतसिह की आज्ञा पाकर आनन्दसिह वहा गये और उस टुकड़े का उठा लाए उस पर किसी तरह के रगसे यह लिखा हुआ था 'सत्पुरुषों के आगमन से दीन-दुखिया प्रसन्न होते हैं और सोचते हैं कि अब हमारा भी कुछ-कुछ भला होगा मुझ दुखिया को भी इस तिलिस्म में सतपुरुषों की बाट जोहते और ईश्वर से प्रार्थना करते बहुत दिन बीत गये परन्तु अब आप लोगों के आने से भलाई की आशा जान पडन लगी है। यद्यपि मेरा दिल गवाही देता है कि आप लागों के हाथ से सिवाय मलाई के भेरी बुराई नही हो सकती लथापि इस कारण से कि बिना समझे दोस्त-दुश्मन का निश्चय कर लेना नीति क विरुद्ध है मैं आपकी सेवा में उपस्थित न हुई। अव आशा है कि आप अनुग्रह पूर्वक अपना परिचय देकर मेरा प्रम दूर करेंगे। -इन्दिरा। इस पत्र के पढन से दोनों कुमारों को बडा ताज्जुब हुआ और इन्दजीतसिह की आज्ञानुसार आनन्दसिह ने उसके पत्र का यह उत्तर लिखा हम लोगों की तरफ से किसी तरह का खुटका न रक्खो। हम लोग राजा बीरेन्द्रसिह के लडके है और इस तिलिस्म को तोडने के लिए यहा आये है। तुम देखटके अपना हाल हमसे कहो, हम लोग नि सन्देह तुम्हारा दुख दूर करेंगे। यह चीठी चमेली की झाडी में उसी जगह हिफाजत के साथ रख दी गई जहाँस उस औरत की चीठी मिली थी। दो दिन तक वह औरत दिखाई न दी मगर तीसरे दिन जब दोनों कुमार याज वाले तहखाने में से लौटे और उस चमेली की टटटी के पास गए ता ढूढन पर आनन्दसिह को अपनी लिखी हुई चीठी का जबाव मिला। यह जवाब कपडे पर लिखा हुआ था जिसे आनन्दसिह न पंढा मतलब यह था - यह जानकर मुझ बडी प्रसन्नता हुई कि आप राजा चीरन्द्रसिह के लड़के है जिन्हें मैं बहुत अच्छी तरह जानती हूँ इसलिए आपकी सेवा में बेखटको उपस्थित हो सकती हूँ मगर राजा गोपालसिह से डरती हूँ जो आपके पास आया करते है। -इन्दिस। , एक छोटे से चन्द्रकान्ता सन्तति भाग ११,