पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६६९

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cri पुन कुअर इन्द्रजीतसिह की तरफ से यह जवाब लिखा गया 'हम प्रतिज्ञा करते है कि राजा गोपालसिह भी तुम्हें किसी तरह का कष्ट न देंगे। यह चीठी भी उसी मामूली ठिकाने पर रख दी गई और फिर दो रोज तक इन्दिरा का कुछ हाल मालूम न हुआ। तीसरे दिन सध्या होने के पहिले जर कुछ कुछ दिन बाकी था और दोनों कुमार उसी वा में नहर के किनारे बैठे बातचीत कर रहे थ यकायक उसी चमेली की झाडी में सहाय में लालटन लिए निकलती हुई इन्दिरा दिखाई पड़ी। यह सीधे उस तरफ रवाना हुई जहाँ दोनों कुमार नहर के किनारे बैठ हुए थे जब उनके पास पहुची लालटेन जमीन पर रयकर प्रणाम किया ओर हाथ जाड कर सामने खड़ी हो गई। इसकी सूरत-शक्ल के बारे में हमें जो कुछ लिखना था ऊपर लिख चुके है यहा पर पुन लिखने की आवश्यकता नहीं है हा इतना जरूर कहेंगे कि इस समय इसकी पोशाक में फर्क शा। इन्द्रजीतसिह ने बड़े गौर से इसे देखा और कहा बैठ जाओ और निडर होकर अपना हाल कहो। इन्दिरा-(धैठ कर ) इसीलिए तो मैं सेवा में उपस्थित हुई है कि अपना आश्चर्यजनक हाल आपसे कहूँ। आप प्रतापी राजा बीरेन्द्रसिह के लडके है और इस योग्य है कि हमारा मुकदमा सुने इन्साफ करें दुष्टों को दण्डदें और हम लोगों को दुख के समुद्र से निकाल कर बाहर करें। इन्द-(आश्चय से ) हम लोग क्या तुम अकली नहीं हो । क्या तुम्हारे साथ कोई और भी इस तिलिस्म में दुख भोग रहा है? इन्दिरा-जी हाँ मेरी माँ भी इस तिलिस्म क अन्दर बुरी अवस्था में पडी है। मैं तो चलन फिरने याग्य भी हू परन्तु वह बेचारी तो हर तरह से लाचार है। आप मेरा किस्सा सुनेंगे ता आश्चर्य करेंगे और नि सन्देह आपको हम लोगों पर दया आवेगी। इन्द-हा हा हम सुनने के लिए तैयार है कहो और शीघ्र कहो। इन्दिरा अपना किस्सा शुरु किया ही चाहती थी कि उसकी निगाह यकायका राजा गोपालसिह पर जा पड़ी जो उसके सामन और दोनों कुमारों के पीछ की तरफ से हाथ में लालटेन लिए हुए आ रहे थे। वह चौक कर उठ खडी हुई ओर उसी समय कुँअर इन्दजीतसिह तथा आनन्दसिह ने भी घूम कर राजा गोपालसिह को देखा। जब राजा साहब दानों कुमारों के पास पहुंचे तो इन्दिरा ने प्रणाम किया और हाथ जाड कर खड़ी हो गई। कुँअर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह भी बड़े भाई का लिहाज करके खडे हा गय। इस समय राजा गोपालसिह का चेहरा खुशी के दमक रहा था और वे हर तरह से प्रसन्न मालूम होते थे। इन्द्र-(गापालसिह से) आपने तो कई दिन लगा दिए । गोपाल-हा एक ऐसा ही मालला आ पड़ा था कि जिसका पूरा पता लगाय बिना यहाँ आन सका पर आज मैं अपने पेट मे ऐसी खबरे भर के लाया हूँ कि जिन्हें सुन कर आप लोग बहुत प्रसन्न होंगे और साथ ही इसके आश्चर्य भी करेंग! मै सब हाल आपसे कहूँगा मगर (इन्दिरा की तरफ इशारा करक } इस लड़की का हाल सुन लने के बाद { अच्छी तरह दख कर ) नि सन्देह इसकी सूरत उस पुतली की ही तरह है। आनन्द-कहिए भाई जी अब तो मैं सच्चा ठहरान । गोपाल-वेशक तो क्या इसने अपना हाल आप लोगों से कहा? इन्द-जी यह अपना हाल कहा ही चाहती थी कि आप दिखाई पड़ गये। यह यकायक हम लोगों के पास नहीं आई बल्कि पत्र द्वारा इसन पहिले मुझसे प्रतिज्ञा करा ली कि हम लोग इसका दुख दूर करेंगे और आप (राजा गोपालसिह } भी इस पर खफान होंगे। गोपाल-(ताज्जुब से) मैं इस पर क्यों खफा होने लगा (इन्दिरा से ) क्यों जी तुम्हें मुझसे डर क्यों पैदा हुआ? इन्दिरा-इसलिए कि मेरा किस्सा आपके किस्से से बहुत सम्बन्ध रखता है और हा इतना भी मैं इसी समय कह देना उचित समझती हूँ कि मेरा चेहरा जिसे आप लोग देख रहे है असली नहीं बल्कि बनावटी है। यदि आज्ञा हा तो इसी नहर के जल से मैं मुह धो लू तब आश्चर्य नहीं कि आप मुझे पहिचान लें। गोपाल-(ताज्जुब से ) क्या मैं तुम्हें पहिचान लुगा ? इन्दिरा-यदि ऐसा हो ता आश्चर्य नहीं। गोपाल-अच्छा अपना मुह धो डालो। इतना कहकर राजा गोपालसिह लालटेन जमीन पर रख कर बैठ गए और कुअर इन्द्रजीतसिह तथा आनन्दसिह को भी बैठने के लिए कहा। जब इन्दिरा अपना चेहरा साफ करने के लिए नहर के किनारे चल कर कुछ आगे बढ़ गई तब इन नीनों में यों बातचीत होन लगी . चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १४