पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

०५२ मतलब साधने से चाज आने वाला नहीं मालती ने सच कहा था हाय मैंने बहुत बुरा किया !अब न तो इधर की रही और न उधर की !मगर भला रे दुष्ट, देख मै तुझसे कैसा बदला लेती हू Il सत्रहवां बयान जसवन्त घोडे पर सवार हो उस कब्रिस्तान से बेतहाशा भागा। जब तक वह अपने खेम में न पहुचा उसके हवास दुरुस्त न हुए। उसके पाजीपन ने उसके दिल को कितना डरपोक और बेकाम कर दिया था इसको वही जानता होगा सुबह होते होते वह अपने खने में पहुचा और बेदम होकर अपने पलम पर लेट रहा । उसके दिल में तरह तरह के खयालात पैदा होने लगे क्योंकि उसे विश्वास हो गया था कि जरूर कालिन्दी ने धोखा दिया और वह कब्रिस्तान किसी सुरग का रास्ता नहीं है। कायदे की बात है कि डरपाक और भूत प्रत के मानने वालों के दिल में जो जो बातें रात के वक्त पैदाहोते है वह दिन को कभी नहीं पैदा होतीं। वे जितना रात को डरते हैं उतना दिन को नहीं। वही हालत जसवन्त की भी थी। इस समय उसके दिल में यह बात नहीं जम रही थी कि उस कब्रिस्तान में मुर्दे घोल रहे थे या भूत प्रेत उसकी जान लिया चाहते थे हॉ यह गुमान जरूर होता था कि कालिन्दी मेरी मुहब्बत में अपने घर से नहीं आई बल्कि मुझे धोखा देकर मेरी जान की शाहक बन कर आई थी और अपनी मालिक कुसुमकुमारी का काम खूबसूरती से करके खैरखाह बना चाहती थी, अच्छा ही हुआ जो मै वहाँ से भाग आया नहीं तो जान जाने में क्या कसर थी, खैर अब वह हरामजादी मिलेगी तब मैं समझेंगा। ऐसी ऐसी बहुत सी बातें पडा पडा जसवन्त सोच रहा था और सूर्य निकल आने परभी अपने खयालों में डूबा हुआ था कि एक चोवदार ने जो जानता था कि इस समय इस खेम के अकेला जसवन्तसिह है वहाँ पहुँच कर उसे होशियार कर दिया और सुना दिया कि बालेसिह खुद आपसे मिलने के लिये यहाँ चले आ रहे है। जसवन्त घबडा कर उठ बैठा और बालेसिह के इस्तकबाल (अगवानी) के लिये झट खेमे के बाहर निकल आया, तब तक बालेसिह भी पहुच युका था। साहब सलामत के बाद दोनों खेमे के अन्दर गए और बातचीत करने लगे। बालेसिह-कहिये क्या हाल है ? मैंने सुना रात आप दोनों उस सुरग का पता लगाने गए थे फिर अकेले क्यों लौर्ट और कालिन्दी कहाँ गई? जसवन्त-कुछ न पूछिये उसने तो मुझे पूरा धोखा दिया !अभी आपकी खिदमत मेरी किस्मत में बदी हुई थी इसी लिये जान बच गई नहीं तो मरने में कोई कसर बाकी न थी। वाले सो क्या ? कालिन्दी तो तुम्हारे प्रेम में उलझ कर आई थी फिर उसने धोखा क्यों दिया? जसवन्त-वह मेरे प्रेम में उलझकर नहीं आई थी यल्कि मेरी मौत बनकर आई थी और मुझे मार कर अपने मालिक की खैरखाही उत्तम रीति से किया चाहती थी । वाले इसी से मैने इस काम में तुम्हारा साथ नहीं दिया दुश्मन के घर से आये हुए किसी के साथ यकायक इस तरह घुल मिल जाना बेवकूफी नहीं तो क्या है, तिस पस्तुम अपने को बडा चालाक लगाते हो । जसवन्त-बेशक मुझसे भूल हुई अब कभी ऐसा न करूँगा ।अगर कोई मर्द रहता तो मैं कभी धोखे में न आता मगर उस औरत की सूरत ने मुझे दीवाना बना दिया ! वाले-खैर जो हुआ सो हुआ यह बताओ कि वह तुम्हें कहाँ ले गई थी और किस तरह की दगाबाजी उसने तुम्हारे साथ की। जसवन्त ने कालिन्दी के साथ अपने जाने का हाल पूरा पूरा बालेसिह को कह सुनाया जिसे सुन बालेसिह देर तक सोचता रहा फिर भी वह किसी तरह यह निश्चय न कर सका कि कालिन्दी धोखा ही देने के लिये आई थी या सच्चे प्रेम ने उसकी मान मर्यादा का मुंह काला किया था । आखिर उसने जसवन्त से कहा- 'इस बारे में मेरा दिल अभी किसी तफगवाही नहीं देता। न तो मुझे कालिन्दी के झूठे होने का यकीन है और न यही कह सकता है कि वह सच्ची थी खैर जो हो आज तुम मुझे उस कविस्तान में ले चलो, देखो मै क्या तमाशा करता है। डरो मत मैं बहुत से आदमी अपने साथ ले कर चलूगा ! थोडी देर तक और बातचीत करने के बाद बालेसिह वहाँ से उठा और जसवन्त को साथ ले अपने खेमे में चला गया। कुसुम कुमारी १०७५