पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६७०

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- . इन्द-हा यह तो कहिए आप क्या यबर है? गोपाल-वह किस्सा बहुत बड़ा है पहिले इस पडकी का हाल सुन ले तय को हा इसन अपना प्रभ क्या बताया था? इन्द्र-इन्दिरा गोपाल-( चौक कर ) इन्दिरा । इन्द-जी हाँ। गापाल-(साचले हुए धीर से ) कोन सी इन्दिरा? 4 इन्दिरा ता नहीं मालूम पड़ती काइ दूसरी हागी मगर शायद यही हो हॉ ता कह चुकी है कि मेरी सूरत बनावटी है रिचर्य नहीं कि चेहरा साफ करने पर वही शिकले अगर वही हो तो बहुत अच्छा है। इन्द-खैर वह आती ही है सय हाल मालूम हो जायगा ताकि अपनी अनूठी यवरों में से दो एक सुनाइय। गोपाल-यहा से जाने के बाद मुझे रोहतासगढ़ का पूरा पूरा हाल लूम हुआ है क्योकि आजकल राजा वीरन्दसिंह तेजमिह देवीसिह भैरोसिह तारासिह किशोरी कामिनी लाडिली और रीस्त्री लक्ष्मीदेवी इत्यादि सब कोई यहाँ ही जुटे हुए हैं और एक अजीबोगरीब मुकदमा पश है। इन्द--(चौंक कर) लक्ष्मीदेवी क्या उनका पता लग गया ? गोपाल-हा लक्ष्मीदेवी यही तारा निकली जा कमलिनी क यहा उसकी र बी बन के रहती थी और जिसे आप जानते हैं। इन्द-(आश्चर्य से) वह लक्ष्मीदेवी थीं । गोपाल-हा वह लक्ष्मोदेवी ही थी जो बहुत दिनों से अपने को छिपाए हुए दुश्मनों स.दला लेने का मौका टूढ रही थी और समय पाकर अनूठे ढग स यकायक प्रकट हो गई। उसका फिस्सा भी बडा अनूर' है। आनन्द-ता क्या आप रोहतासगढ़ गय थे। गोपाल-नहीं। इतना सब हाल सुना पर भी आप लक्ष्मीदवी को दखने के लिए यहा क्या It ital गोपाल-वहा 1 जान का सबब भी बताउँगा इन्द-खेर यह बताइय कि लक्ष्मीदवी यकायक किस अनूट दम से प्रकट हा गई और राहतारगढ म का अजीबोगरीव मुकदमा पश है ? गोपाल-4 सब हाल आपस कहगा देशिय 46 इन्दिरा आ रहीरे पर कोई चिन्ता नहीं अगर यह वही इन्दिरा है जो में साच हुआ तो उसके सामने भी सब हाल बयटको कह दूगा। इतने ही में अपना पहरा साफ फरक इन्दिरा भी वहा आ पहुंची। चेहरा धोन और साफ करन स उसकी खूबसूरती में किसी तरह की कमी नहीं आई थी बल्कि वह पहिल से ज्याद स्यूयसूरत मालूम पड़ती थी हा अगर कुछ फर्क पड़ा था ता कवल इतना ही कि बनिस्बत पहिलक अब वह कम उम्र की मालूम पड़ती थी। इन्दिरा के पास आते ही और उसको सूरत दरात ही गोपालसिह झट उद यर्ड हुए और उसका हाथ पकड कर चाले है इन्दिरा वशक तूपही इन्दिरा है जिसक होन की - आशा करता था ययपि कई क्यों के बाद आज किस्मत नतरी सूरत दिखाइ है और जब मेन आखिरी मत तरी सूरत देयी थी तब तू मिरी लड़की थी मगर फिर भी आज मै तुझ पहिचाने बिना नहीं रह सकता। तू मुझसे डर मत और अपने दिल में किसी तरह का खुटका भी मत ला मुझे खूब मालूम हा गया है कि मर मामल में तू विल्कुल थेकसूर है। मैं तुझ धर्म की लड़की समझता और समझूगा मरे सामने बैठ जा और अपना अनूठा किस्सा कह । हा पहिल यह ता यता कि तेरी माँ कहाँ है ? कैद से छूटन पर मैंने उसकी बहुत खोज की मगर कुछ पता न लगा 1 नि सन्देह तेरा किस्सा बडा ही अनूठा होगा। इन्दिरा-(पैठने के बाद आसू स भरी हुई आखों का आचल सपोछती हुई)भरी मॉ बचारी मा इसी तिलिस्म में कैद + गोपाल-( ताज्जुब से ) इसी तिलिस्म में केद है । इन्दिरा-जी हा इसी तिलिस्म में कैद है। बड़ी कठिनाइयों स उसका पता लगाती हुईमै यहा तक पहुची। अगर मैं यहा तक पहुचकर उससे न मिलती तो निसन्देह वह अब तक मर गई होती। मगर न तो मैं उसे कैद से छुड़ा सकती हू और न स्वय इस तिलिस्म के बाहर ही निकल सकती है। दस-पन्द्रह दिन के लगभग हुए होंगे कि अकस्मात एक किताब मर हाथ लग गई जिसक पढने से इस तिलिस्म का कुछ-कुछ हाल मुझे मालूम हो गया है और मे यहा घूमने फिरने लायक भी हो गइह, मगर इस तिलिस्म के बाहर नहीं निकल सकती। क्या कहू उस किताय का मतलब पूरा-पूरा समझ में नहीं देवकीनन्दन खत्री समग्र ६६२