पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६७६

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1 थे। मेरे पिता ने हाथ-मुह धुलवाया तथा अपन पलग पर बैठा कर हाल-चाल पूछा और सुअर साहब ने इस तरह अपना हाल बयान किया - 'उस दिन मैंने तुमको बुलाने के लिए चोबदार भेजा. तुम्हारे यहा से लौट कर आये उसके पहिले ही मेरे एक खिदमतगार ने मुझे इत्तिला दी कि इन्द्रदेव ने आपको अपने घर अकेले ही बुलाया है 1 मै उसी समय उठ खड़ा हुआ और अकेले तुम्हारे मकान की तरफ रवाना हुआ। जब आध रास्ते में पहुँचा तो तुम्हारे यहा का अर्थात् दामोदरसिह का खिदमतगार जिसका नाम रामप्यारे है मिला और उसने कहा कि इन्द्रदेव गगा किनारे की तरफ गये है और आपको उसी जगह बुलाया है। मैं क्या जानता था कि एक अदना खिदमतगार मुझसे दगा करेगा। मैं येघड़क उसके साथ गगा के किनारे की तरफ रवाना हुआ। आधी रात से ज्यादे तो जा ही चुकी थी अतएव गगा किनारे बिल्कुल सन्नाटा छाया हुआ था। मैंने वहा पहुचकर जब किसी को न पाया तो उस नौकर से पृछा कि इन्द्रदेव कहा है ! उसने जवाब दिया कि ठहरिए आते होंगे। उस घाट पर केवल एक डोगी यधी हुई थी मै कुछ विचारता हुआ उस डोगी की तरफ देख रहा था कि यकायक दोनों तरफ से दस बारह आदमी चेहरे पर नकाब डाले हुए आ पहुँचे और उन सभों ने फुर्ती के साथ मुझे गिरफ्तार कर लिया। वे सब बडे मजबूत और ताकतवर थे और सब के सब एक साथ मुझसे लिपट गये, एक ने मेरे मुद्द पर एक मोटा सा कपडा डालकर ऐसा कस दिया कि न ता मै योल सकता था और न कुछ देख सकता था। बात की बात में मेरी भुरकें बाध दी गई और जबदस्ती उत्ती डॉगी पर बैठा दिया गया जो घाट के किनारे बधीई थी। डोगी किनारे से खोल दी गई और बड़ी तेजी से चलाई गई। मैनहीं कह सकता कि वे लोग कै आदमीथे और दो ही घण्टे में जब तक कि मैं उस र सवार था डोंगी को लेकर कितनी दूर ले गये। जब लगभग दो घण्टे के बीत गये तब होगी किनारे लगी और में उस पर से उतार कर एक घोड़े पर दाया गया मेरे दानों पैर नीचे की तरफ मजबूती के साथ बाँध दिये गये हाथ की रस्सी ढीली कर दी जिसमें में Cडे की काठी पकड सकूँ और घोड़ा तेजी के साथ एक तरफ को दौड़ाया गया। मैं दोनों हाथों से घोडे की काठी पकडे हुए था। यद्यपि मै देयने और बोलने से लाचार कर दिया गया था मगर अन्दाज से और घोडे की टापों की आवाज से मालूम हो गया कि मुझे कई सवार घेरे हुए जा रहे है और मेरे घोड़े की भी लगाम किसी सवार के हाथ में है। कभी तेजी से और नी धीरे-धीरे चलते-चलत दोपहर से ज्यादे बीत गए, पैरों में दर्द होने लगा और थकावट ऐसी जान पड़ो लगी कि मानों तमा यदन चूर चूर हो गया है। इसके बाद घोड़ रोके गये और मैनीधे उतार कर एक पेड़ के साथ कस के बोध दिया गया और उस समय मेरे मुह का कपला खोल दिया गया। मैने चारों तरफ निगाह दौडाई तो अपने को एक घने जगल में पाया। दस आदमी मोटे मुसडे और उनकी सवारी के दस घोड़े सामने खड़े थे। पास ही में पानी का एक चश्मा बह रहा था कई आदमी जोन खोलकर घोड़ों को ठड़ा करने और चराने की फिक्र में लगे और बाकी के शैतान हाथ में नगी तलवार लेकर मेरे चारों तरफ खडे हो गये। मै चुपचाप समों की तरफ देखता था और मुह से कुछ भी न बोलता था और न वे लोग ही मुझस कुछ बात करते थे। (लम्बी सॉस लेकर) यदि गर्मी का दिन होता तो शायद मेरी जान निकल जाती क्योंकि उन कम्धस्तो न मुझे पानी तक के लिए नहीं पूछा और स्वय खा पीकर ठीक हो गये अस्तु पहर भर के बाद फिर मेरी वही दुर्दशा की गई अर्थात देखने और बोलने से लाचार करके घोड़े पर उसी तरह थेठाया गया और फिर सफर शुरु हुआ। पुन दोपहर से ज्यादे देर तक सफर करना पड़ा और इसके बाद मैं घोड़े से नीचे उतारकर पैदल चलाया गया। मेरे पैर दर्द और तकलीफ से भेकार हो रहे थे मगर लाचारी ने फिर भी चौथाई कोस तक चलाया और इसके बाद चौरसट लाघने की नौबत आई तब मैने समझा कि अब किसी मकान में जा रहा हूँ।मुझे चार दफे चौखट लाधनी पड़ी जिसका बाद में एक खम्भे पो-याध दिया गया । तब मेरे मुह पर से कपड़ा हटाया गया । "चौदहा भाग समाप्त तिलिस्मी लेख वाजे से निकली आवाज का मतलब यह है । सारा तिलिस्म तोडने का खयाल न करा और इस तिलिस्म की ताली किसी चलती-फिरती से प्राप्त कर इस माजे में वे सब बातें भरी हैं जिनकी तुम्हें जरूरत है ताली लगाया करो और सुना करो। अगर एक ही दफ सुनने से समझ में न आये तो दोहरा करके भी सुन सकते हो। इसका तर्फीव और ताली इसी कमरे में है ढूँढो । (देखिए-पृष्ठ ६४२) महाराज सूर्यकान्त की तस्वीर के नीच लिख हुए वारीक अक्षरा पाले मजभून का अर्थी यह है - खूब समन्ना के तब आगे पैर रक्खो बाजे वाले चौतरे में खोजो तिलिस्मी खजर अपने देह से अलग मत करो नहीं तो.जान पर आ बनेगी।

(देखिए-पृष्ठ ६४५) देवकीनन्दन खत्री समग्र