पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६७८

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h , अच्छा तथा आप नहीं कर सकता तो प्रजा कीरमा कैसे कर सकूगा पड खेद की बात है कि अदन दर्जे के बदमाश लाग हम पर मुकदमा करें और हम उनका कुछ भी न कर सके हमारे हितैषी दामादरसिंह मार डाले गये और अब मेरे प्यारे पिता के मारने की फिक्र की जा रही है। गोपालसिह-नि सन्देह उस समय मुझे बडा ही रज हुआ था। आज जब मैं उन बातों को याद करता हूँ ता मालूम होता है कि उन लोगों को यदि मुन्दर की शादी मेरे साथ करना मन्जूर न होता तो नि सन्दे मुझ नी मार डालते और या फिर गिरफ्तार हीन करते। इन्दजीत-ठीक है ( इन्दिरा इन्दिरा-मेरे पिता ने जब यह सुना कि दामोदरसिह के रोकर रामप्यारे ने कुँअर साहब का धोखा दिया तो उन्हें निश्चय हो गया कि रामप्यारे भी जरूर उस कमेटी का मददगार है। ये कुँअर साहब की आज्ञानुसार तुरन्त उठ खडे हुए और रामप्यारे की खोज में फाटक पर आये मगर साज कर पर मालूम हुआ कि रामप्यार का पता नहीं लगता। लौटकर कुँअर साहब के पास गये और बोले जो साचा था वही हुआ। रामध्यार भाग गया आपका खिदमतगार भी जरूर भाग गया होगा। इसके बाद कुअर साहब और मर पिता देर तक बातचीत करत रहे। पिता ने कुँअर साहब का कुछ खिला-पिला कर ओर समझाबुझा कर शान्त किया और वादा किया कि मैं उस सभा तथा उसके समासदों का पता जरूर लगाऊगा। पहर भर रात वाकी होगी जय कुअर साहब अपन घर की रफ रवाना हुए। कई आदमियों को सग लिए हुए मेरे पिता भी उनके साथ गए। राजमहल के अन्दर पैर रयते ही कुअर सारव को पहिले अपन पिता अर्थात वड महाराज में मिलन की इच्छा हुई और वे मेरे पिता को साथ लिये हुए सीधे बडे महाराज क कमर म चल गए मगर अफसास उस समय बड महाराज का देहान्त हो चुका था और यह बात सबसे पहिले कुँअर साहब ही का मालूम हुई थी। उस समय वडे महाराज पलग के ऊपर इस तरट पड हुए थे जैसे काई घोर निद्रा मे हो मगर जब कुअर साहब ने उन्हें जमान क लिए हिलाया तब मालू। हुआ कि व महानिद्रा के आधीन हो चुके है। इन्दिरा के गुह से इतना हाल सुनत-सुनत राजा गोपालसि की ऑया में आसू नर आए और दोनों कुमारों क नत्र भो मूरो न रहे। राजा साहब ने एक लन्छी सास लकर कहा मेरी मा का देहान्त पहिल ही हा चुका या उस सम्य पिता कभी परलोक सिधारन से मुझे बड़ा हा कष्ट हुआ। (इदिरा स) अच्छा आग कही। इन्दिरा-बड़ महाराज के देहान्त की खबर जब चारों तरफ फैली तो महल और शहर में बजाटा कोलाहल मचा मगर इस बात का खयाल कुअर साहर और मेरे माता-पिता के अतिरिक्त और किसी का भी नथा कि बड महाराज की जान भी उसी गुप्त कुमेटी न ली है और न दोनो ने अपने दिल का हाल किसी से कहा ही। इसके दो हीन बाद कुअर साहब जमानिया की गददी पर बैठे और राजा कालाने लगे। इस बीच में मेर पिता ने उस कुमेटी का पता लगान के लिए बहुत उद्योग किया मगर कुछ पता न लगा। उन दिनों कई रजवाड़ो से तमपुर्सी के यत आ रह य । रणधीरसिंहजी ( किशोरी क नाना ) के रा स मातमपुती का यत लेकर उनके ऐयार गदाधरसिल *आय थे। गदाधरासह स और पिता से कुछ नातेदारी में है जिस में भी ठीक ठीक नहीं जानती और इस समय मातमपुर्सी की रसभ पूरी करन के बाद मेरे पिता की इच्छानुसार उन्होंने भी मर ननिहाल ही में उरा डाला जहा मेरे पिता रहते थे और इस नहाने से कई दिनों तक दिन राल दोनों आदमियों का साथ रहा। मेरे पिता ने यहां का हाल तथा उस गुप्त कमेटी में कॅअग साहब के पहुँचाये जान का मद कह क गदाधरसिंह से मदद मागी जिसके जवाब में गदाधरसिह ने कहा कि मैं मदद देने के लिय जी जान से तैयार हूँ परन्तु अपने मालिक की आज्ञा विना ज्यादे दिन तक यहॉ टहर नहीं सकता और यह कामदा चार दिन का नहीं। तुम राजा गोपालसिह से कहो कि वे मुझ पर मालिक से थाउ दिनों के लिए मॉग ले तब मुझे कुछ उद्याग करी का मोका मिलेगा। आखिर एसा ही हुआ अर्थात आफ्न (गोपालसिह की तरफ बताकर ) अपना एक सवार पत्र देकर रणवीरसिहजी के पास भेजा और उन्होंने गदाधरसिंह के नाम राजा साहब का काम कर दने के लिए आज्ञापर भज दिया।

  • इसो गदाधरसिह न जब नानक की मा स सयाग किया तो रघुवरसिह के नाम से अपना परिचय दिया था और

इसके बाद भूतनाथ के नाम से अपने को मशहूर किया । देवकीनन्दन खत्री समग्र ६७०