पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६८

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अट्ठारहवां बयान शाम का वक्त है, ठण्ढी ठण्डी हवा चल रही है महारानी कुसुमकुमारी के महल के पीछे वाला नजरबाग खूब रौनक पर है खिले हुए फूलों की खुशबू हवा से मिल जुल कर चारो तरफ फैल रही है. बाग के बीचोबीच में एक छोटा सा सगमर्मर का खूबसूरत चबूतरा है तिस पर महारानी कुसुमकुमारी रनवीरसिह और वीरसेन बैठे धीरे धीरे कुछ बातें कर रहे है, इनकी यातों को सुनने वाला कोई चौथा आदमी यहाँ मौजूद नहीं है महारानी की लौडियाँ कुछ दूर पर फैली हुई जरूर नजर आ रही है। रनबीर-उस समय मारे हॅसी के मेरा पेट फटा जाता था, यह वीरसेन भी बड़ा मसखरा है। बीरसेन (हँस कर) जसवन्त डर के मारे कैसा दुम दबा कर भागा कि बस कुछ न पूछिये, बडी मुश्किल से मैंने हॅसी रोकी! कुसुम-एक तो वह कब्रिस्तान बड़ाही भयानक है दूसरे रात के सन्नाटे में इस तरह भूत प्रेत बनकर आप लोगों ने उन्हें डराया ऐसी हालत में अपने को सम्हालना जरूर मुश्किल काम है । बीरसेन-दीवान साहब मुझ पर बडा बिगडे, कहने लगे तुम लोगों ने जसवन्त को छोडा तो छोडा मगर कालिन्दी को क्यों न उठा लाए. मै अपने हाथ से उसका सिर काट अपनी प्रतिज्ञा पूरी करता। रनबीर-कालिन्दी पर विशेष कोध के कारण उन्होंने ऐसा कहा ऐसा नहीं है कि दीवान साहब हम लोगों की इस कार्रवाई से नाखुश हो और इस बात को न समझ गए हों कि हम लोगों ने उस कविस्तान में जसवन्त और कालिन्दी को सिर्फ डरा ही कर छोड देने में क्या फायदा विचार था। मवेशक समझ गए होंगे वे बडे ही चतुर आदमी है। बीरसेन-इसमें तो कोई शक नहीं। कुसुम-जसवन्त और कालिन्दी में अब कभी नहीं बन सकती और कालिन्दी अपने किये पर जरूर पछताती होगी। रनबीर-(कुसुम की तरफ देखकर) खैर इन बातों को जाने दो, मैं एक दूसरी बात पूछता हू, सच सच कहना देखो झूठ न बोलना। कुसुम-मैं आपसे झूठ कदापि न बोलूंगी, इसे आप निश्चय जानिये । रनबीर-मेरे साथ तुम्हारा इस तरह का बर्ताव करना क्या तुम्हारे सरदारों और कारिन्दों को बुरा न लगता होगा? वह यह न कहते होंगे कि कुसुम बडी निर्लज्ज है ? कुसुम-किसी को बुरा न मालूम होता होगा, हा उन लोगों के बारे में मैं कुछ नहीं कह सकती जो नये मुलाजिम है। रनवीर-मैं कैसे विश्वास करू? बीरसेन--(रनबीर से) इसमें आप शक न कीजिये इतना तो मै भी कह सकता है कि हमारे यहाँ जितने पुराने मुलाजिम है और एक छिपे हुए भेद को जानते हैं वह आप दोनों को कभी बुरा नहीं कह सकते बल्कि वे लोग बडे ही खुश होंगे। रनबीर-भेद कैसा! कुसुम-भैया देखो अभी मौका नहीं है। कुसुम की बात सुन बीरसेन चुप हो रहा मगर रनबीरसिह अपनी बात का जवाब न पाने और कुसुम के मना करने से चौक पड़े और सोचने लगे कि वह कौन सा भेद है जिसके बारे में बीरसेन ने इशारा किया मगर कुसुम के टोकने से चुप हो रहा उसे खोल न सका। रनबीरसिह (कुसुम से) खैर तुम ही कहो वह क्या भेद है? कुसुम-कुछ भी नहीं इसने यों ही कह दिया। रनबीर-बेशक कोई भेद है जो तुम छिपाती हो, खैर जब मैं तुम्हारे यहाँ के भेदों को नहीं जान सकता तो इतनी खातिरदारी भी व्यर्थ है और मुझे किसी तरह की उम्मीद तुमसे रखना मुनासिब नहीं ! इतना कह कर रनवीरसिह चुप हो रहे और उनके चेहरे पर उदासी छा गई, जिसे देख कुसुमकुमारी का जी बेचैन हो गया और वह बीरसेन का मुह ताकने लगीं। बीरसेन ने कहा 'वहिन, अगर हमलोग आज ही इस भेद को खोल देतो किसी तरह का नुक्सान नहीं आखिर कभी न कभी तो यह भेद खुलेगा ही, फिर इनका दिल दुखाने की क्या जरूरत है।" कुसुम-खैर जो मुनासिब समझो, मुझे यह मजूर नहीं कि यह किसी तरह उदास हो । ७ देवकीनन्दन खत्री समग्र १०७६