पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६८४

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दि de का काता में नहीं जानती मगर बिचली तस्वीर मेरी है और उसके नीचे मेरा नाम लिखा हुआ है। जमानिया जा कर मरे पिता ने क्या क्या काम किया सौ में नहीं कह गकती परन्तु राह अवश्य सुनने में आया था कि उन्होंन पड़ी चालाकी और ऐयारी से उन कम्ही वालों का पता लगाया और राज्य महब न उन सभों को प्राणदण्ड दिया। गोपाल-नि सन्दह उन दुष्टों का पता लगाना इद्रदेव ही का काम था। जैसी-जैसी ऐयारिया इन्ददय ने की देसी कम एयारों को सूयेंगी। अफसारसमभाय बह कलमदानहास न आया ही ता सहज ही में सब दुष्टों का पता लग जाता और यही सवय था कि दुलों की मया में गरोगग है गसिह या सैपालसिंह का नाम न चदा और वास्तव में ये ही तीनों उत्त कुमेटी के मुखिया थे जो मेरे हाय स बच गये और तिर उद्दी की यदौलत में गारत हुआ। इन्द्रजीत-लज्जुर रही कि दारोग कलश में इन्द्रदेशन सुत्ती कर दी हो और गुरुभाई मुलाहिजा कर गये हो। गोपाल हो सकता है। आनन्द--(इन्दिरा से ) पण उस कलमदान के अन्दर का हाल तुम्हें नी मालम न था ? इन्दिरा-जी नहीं अगर मुझ मालूम होता तो ये तीना दुष्ट क्यों बचने याले ? हाँ मरी माँ उस कलमदान को चाल चुकी थी और उसे उसक अन्दर का हाल मालूम था मगर यह ता गिरफ्तार ही कर ली गई थी फिर उन भेदा को खोलता कौन? आनन्द-आखिर उस कलमदान के अन्दर का हाल तुम्ई कर मालूम हुआ? इन्दिरा-अभी थोड़े ही दिन हुए जब मैं कैदचाने में अपनी माँ के पास पहुँवा ला उसने उस कलमदान का भेद बताया था। आनन्द-मगर फिर उस कलमदान का पता न लगा। इन्दिरा-जी नहीं इसके बाद आज तक उभ फलमदार का हाल मुझे मालूम न हुआ मैं नहीं कह सक्तो कि उस कौन ले गया था ? वह क्या हुआ ? हो इस मभ्य राजा साध्य की जुबानी नुनने में आया कि पही कलगवान मानिनन गग वीरन्द्रसिह क दरवार में पेश किया था । गोपाल-उस कलमदान का हाल जानता हूँ। पंचता यह है कि सारा खडा कलमदान ही के समय से हुआ यदि वह कलमदान मुझे या इन्द्रदेव का उस समय मिल जाता ता लक्ष्मीदेवी की जगढ मुन्दर भरे घर न आत और मुन्दर तथा दारागा की बदौलत मेरी गिनती मुर्दा में न हाती और न भूतनाथ हा पर आज इतने जुटे लगाये जात। यान ने उस कलमदान को गदाधरसिह ही ने उन दुष्टों की सभा में से लूट लिया था जो आत भूत् नाम के नाम से मशहूर है। इसमें काई शक नहीं कि उसने इन्दिरा की जान बचाइ मगर कलमदान को छिपा लिया और उसका हाल किलो सेन! बड़े लोग सच कहा है कि विशेष लोभ आदमी को चौपट कर देता है। यही हाल भूतनाथ ६आ। पहल भूतनाम हुत नेक और इनान्दार था ओर आनफल ना २० अच्छी राह पर चल रहा है मगर बीच में घोड़े दिनों तक उसक ईमा में फर्क पड गया था जिसके लिए आज वह अफसास कर रहा है। आपटरा का और हाल सुन लीजिए फिर कलमदान का भेद मैं आपसे क्यान करेगा। इन्द्रजीत- जो आज्ञा । (इन्दिरा से ) अच्छा तुम अपना हाल कहो विवादास के यहा जाने ना कि- तुम पर क्या बीती? - इन्दिरा-मै बहुत दिनों तक उनके यहा आराम से अपने को छिपाए हुए बैठी रही और मेरे पिता कभी-कभी बहा जाकर मुझस मिल आया करते थे। यह मैं नहीं कह सकती कि पिता ने मुझ स्लभदसिह के सहा क्यों छोड रक्खा था। जब बहुत दिनों क आद लक्ष्मीदेवी की शादी का दिन आया और बलभदसिहजी लक्ष्मीदेवी को लेकर यहा आये तामी उनके त्गय आई। (गोपालसिह की तरफ इशारा करके) आपने जब मेरे आने की खबर सुनी तो मुलगे अपन यहा बुलवा भेजा अस्तु मै नक्ष्मीददी का जो दूसरी जगह टिकी हुई थी,छोड़ कर राजमहल में चली आई। राजमहल में चले आना हो मर लिए काल हा गया क्योंकि दारोगा ने मुझे देख लिया और अपन पिता तथा राजा साहब की तरह मैं भी दारोगा की तरह से बेफिक्र थी। इम शादी में मर पिता नोलूद न थे। मुझे इस बात का ताज्जुब हुआ मगर जब राजा साहब रा मैन पूण तो मालूम हुस कि वे बीमार है इसीलिए नही आय। जिस दिन में राजमहल में आई उसी दिन रात को लक्ष्मीदेवी की शादी थी। शादी हो जाने पर सवेरे जय मैन लक्ष्मीदेवी की सूरत देखी तो मेरा कलेजा धक से हो गया क्योंकि लक्ष्मीदवी के ददले भने किसी दूसरी औरत का घर में पाया। हाय उस समय मेरे दिल की जो हालत थी में बगान नहीं करती। मैं घबराई हुई बाहर की तरफ दौड़ी जिपरा राजा साहब की इस बात की खपर दू और इनसे इसा सबब पूछू। राजा साहय जिस कमरे में थे उसका रास्ता जनाने महल से मिला हुआ था अतएव मैं भीतर ही भीतर उस कमरे में चली गइ देवकीनन्दन खत्री समग्र