पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६८७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दिया। उसके बाद की मुझे कुछ भी खबर नहीं है। दारोगा ने क्या कह के कैद किया? अन्ना-मैं एक काम के लिए बाजार में गई थी। रास्ते में दारोगा का नौकर मिला। उसने कहा कि इन्दिरा दारोगा साहब के घर में आई है उसने मुझे तुमको बुलाने के लिए भेजा है और बहुत ताकीद की है कि खडे-खर्ड सुनती जाओ। मैं उसकी बात सच समझ उसी वक्त दारोगा के घर चली गई मगर उस हरामजादे ने मेरे साथ भी बेईमानी की बेहोशी की दवा मुझे जबर्दस्ती सुधाई। मैं नहीं कह सकती थी कि एक घण्टे तक बेहोश रही या एक दिन तक पर जब मैं यहाँ पहुची तब मैं होश में आई उस समय केवल दारोगा नगी तलवार लिए सामने खडा था। उसने मुझसे कहा देख तूवास्तव में इन्दिरा के पास पहुचाई गई है। यह लड़की अकेले कैदखाने में रहने योग्य नहीं है इसलिए तू भी इसके साथकैद की जाती है और तुझे हुक्म दिया जाता है कि हर तरह इसकी खातिर और तसल्ली करियो और जिस तरह हो इस खिलाइयो पिलाइयो । देख उस कोने में खाने-पीने का सब सामान रक्खा है। मै-मरी नानी का क्या हाल है ? अफसोस । मै तो उससे मिल भी न सकी और इस आफत में फंस गई । अन्ना-तेरी नानी का क्या हाल बताऊ, वह तो नाममात्र को जीती है अब उसका बचना कठिन है। अन्ना को जुवानी अपनी नानी का हाल सुन के मैं बहुत रोई-कलपी। अन्ना ने मुझे बहुत समझाया और धीरज देकर कहा कि-ईश्वर का ध्यान कर उसकी कृपा से हम लाग जकर इस कैद से छूट जायेंगे। मालूम होता है कि दारोगा तेरे जरिये से कोई काम निकालना चाहता है अगर ऐसा न होता ता वह तुझे मार डालता और तेरी हिफाजत के लिए मुझे यहाँ न लाता अस्तु जहाँ तक हो उसका काम पूरा न होन दना चाहिए। खैर-जब वह यहां आकर तुझसे कुछ कहे सुने तो तू मुझ पर टाल दिया कीजिया। फिर जो कुछ भी होगा मैं समझ लगी। अब तू कुछ खा पी ले फिर जो कुछ होगा देखा जायगर । अन्ना के समझान स मैखाना-खाने के लिए तैयार हो गई। खाने-पीन का सामान सब उस घर में मौजूद था मैंने भी खाया- पीया इसके बाद अन्ना के पूछने पर मेने अपना सब हाल शुरू से आखीर तक उसे कह सुनाया इतने में शाम हो गई। म कह चुकी है कि उस कमरे की छत में रोशनदान बना हुआ था जिसमें से रोशनी बखूबी आ रही थी इसी रोशनदान के सबब से हम लोगों को मालूम हो गया कि सध्या हो गई है। थोड़ी ही देर बाद दर्वाजा खालकर दा आदमी उस कमरे में आये एक ने चिराग जला दिया और दूसरे ने खाने-पीने का ताजा सामान रख दिया और बासी बचा हुआ उठा कर ले गया। उसके जाने के बाद फिर मुझसे और अन्ना से बातचीत होती रही और दो घण्टे के बाद मुझे नींद आ गई। इन्द्र-(गोपालसिह से ) इस जगह मुझे एक बात का सन्देह हो रहा है। मोपाल-वह क्या ? इन्द्र-इन्दिरा लक्ष्मीदेवी को पहिचानती थी इसलिए दारोगा ने उसे तो गिरफ्तार कर लिया मगर इन्द्रदेव का उसने क्या बन्दोवस्त किया क्योंकि लक्ष्मीदवी को तो इन्ददेव भी पहिचानते थे? गोपाल-इसका सबब शायद यह है कि ब्याह के समय इन्द्रदेव यहा मौजूद न थे और उसके बाद भी लक्ष्मीदेवी को देखने का उन्हें मौका न मिला। मालूम होता है कि दारोगा ने इन्द्रदेव से मिलने के बारे में नकली लक्ष्मीदेवी को कुछ समझा दिया था जिससे वर्षों तक मुन्दर ने इन्द्रदेव के सामने से अपने को बचाया और इन्द्रदेव ने भी इस बात की कुछ परवाह न की। अपनी स्त्री और लडकी के गम में इन्द्रदेव ऐसा डूबे कि वर्षों बीत जाने पर भी वह जल्दी घर से नहीं निकलते थे. इच्छा होने पर कभी-कभी मैं स्वय उनसे मिलन के लिए जाया करता था। कई वर्ष बीत जाने पर जब मैं कैद हो गया और सभों ने मुझ मरा हुआ जाना तय इन्द्रदेव के खोज करने पर लक्ष्मीदेवी का पता लगा और उसने लक्ष्मीदेवी को कैद से छुडाकर अपने पास रक्खा । इन्द्रदेव का भी मेरा मरना निश्चय हो गया था इसलिए मुन्दर के विषय में उन्होंने ज्यादे बखेडा उठाना व्यर्थ समझा और दुश्मनों से बदला लेने के लिए लक्ष्मीदेवी को तैयार किया। कैद से छूटने के बाद मैं खुद इन्ददेव से मिलने के लिए गुप्त रीति से गया था तब उन्होंने लक्ष्मीदेवी का हाल मुझसे कहा था। इन्द्र--इन्द्रदेव ने लक्ष्मीदेवी को कैद से क्योंकर छुडाया था और उस विषय में क्या किया सो मालूम न हुआ राजा गोपालसिह ने लक्ष्मीदेवी का कुल हाल जो हम ऊपर लिख आए है बयान किया और इसके बाद फिर इन्दिरा ने अपना किस्सा कहना शुरू किया। इन्दिरा-उसी दिन आधी रात के समय जब मै मोई हुई थी और अन्ना भी मेरे बगल में लेटी हुई थी यकायक इस तरह की आवाज आई जैसे किसी ने अपने सर पर से कोई गठरी उतार कर फेंकी हो। उस आवाज ने मुझे तो न जगाया मगर अन्ना झट उठ बैठी और इधर-उधर देखने लगी। मै ययान कर चुकी है कि इस कमरे में दो दर्वाजे थे। उनमें से एक दर्वाजा तो लोगों के आने जाने के लिए था और वह बाहर से बन्द रहता था मगर दूसरा खुला हुआ था जिसके अन्दर मै तो नहीं गई थी मगर अन्ना हो आई थी और कहती थी कि उसके अन्दर तीन कोटरिया है एक पायखाना है और दो कोठरिया खाली पड़ी है। अन्ना को शक हुआ कि उसी कोठरी के अन्दर स आवाज आई है। उसने सोचा कि शायद दारोगा का कोई आदमी यहा आकर उस कोठरी में गया हो। थोडी देर तक तो वह उसके अन्दर से किसी के निकलने की राह देखती रही मगर इसक बाद उठ खडी हुई। अन्ना थी तो औरत मगर उसका दिल बडा ही मजबूत था वह मौत चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १५ !