पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६८८

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CY से भी जल्दी डरन वाली न थी। उसने हाथ म चिराग उटा लिया और उस कोठरी के अन्दर गई। पर रखने के साथ ही उसकी निगाह एक गठरी पर पडी मगर इधर उधर देखा तो कोई आदगी नजर न आया। दूसरी कोटरी के अन्दर गई आर तीसरी कोठरीभ भी झाक के दखा मगर कोई आदमी नजर न आया तब उसन चिराग एक किनार यदिया और उस गठरी का खाला। इतन ही में भरी आख खुल गई और घर में अधेरा देखकर मुझे डर मालूम हुआ। मैन हाथ फैला कर अन्ना का उटाना चाहा मगर वह तो वहा थी ही नहीं। मे घबरा कर उठ बैठी। यकायक उस कोठरी की तरफ मेरी निगाह गई ओर उसक गीत घिरग की रोशनी दिखाई दी। मैं घबराकर जार-जोर से अना अन्ना पुकारने लगी। मेरी आवाज सुनत हो यह चिराग और गटरी लिए बाहर निकल आई और वाली ल पेटी में तुझ एक खुशखबरी सुनाती है। मैं खुश होकर वाली क्या है अन्ना 1 अयान यह कह कर गढरी मर आग रख दी कि दखइ२ मा मन बडे शॉक स्वर गटरी साला मगर उसमें अपनी प्यारी भा के कपड़ दख कर मुझसलाई आ गई टी कापड य जारी मा पाईन कर घर से निकाली यी गय उन दाग एवारा ने उत्त गिरफ्तार कर लिया था और य है। वाण्ड पहिर हुए फैदखान म मर साक्षसा सव दुश्मना न जबर्दस्ती उस मुझसे जुदा किया था। उन कपडो पर सून के छोट पडए थे और उन्ही कीटों का दस कर मुझ रुलाई आ गई असा ने कहा राती पया है में कट आ चुकी कि तर लिए खुशखबरी लाई है. इन कपों का मा देश बल्पि, इसमय चोठी तरी मा के हाथ की लिखी हुई हे उदय। मैं र उन कपड़ों का अशी तरह साला और उसके अन्दर स4 काली मालूम होता है ! हि माईल्दी म इन सभी का ना कर पाह? निकल सा३ . और जा हा मगर मा वा मा पा चुकी थी क्योंकि यह पालखी या बहुत कम पर्मलरा सनी शा पावट नाम लिखना जानता था मगर अपनी मा के अक्षार छी तरह परिधानती थी श्याकि वही मुझ पढा लिखना मिराती या अरपाठी यात पर मन अन्ना को इनकालय कह' और अन्ना 1 पद बार मुझ सुनाया। उस ह fvall भयारीबाग । तिना तुझ प्यार करती या नि सन्दा भी मुझे उतना ही चाटती थी मन अलास विधाता की जुद्रा दिया और मुझ तरी भाली सूरत दखन के लिय तर परतुकाई चिन्ता नहीं चद्याप मरीतातूनी माग रहा है मगर तू माहता में क स छूट जाती और साथ ही इसका तू भी कंदमान समाएर हाम र मुझस लगी, अब मरस और तरा दोनों का कैद से छूटना तर ही हाथ है और धूटने की तकीय केवल यही है कि पाराला साहय भीकु तुझ कर उस खाक कर दे। अगर एसा करन म इनकार करनी तो मेरी और तेरी दोनों की जन्न गुफ्त में जगी। तरी प्यारी मा- स्य दूसरा बयान अब हम रोहतासगढ किलो तहखान में दुश्मनों से घिरे हुए गला रीरेन्द्रसिह वगैरह का कुछ हाल लिखते हैं। जिस समय राजा वीरन्द्रनिह और तेजसिह इत्यादि न तहखान के ऊपरी हिस्से से आई यह आवाज सुनी कि हाशियार होशियार । देखा यह चाण्डाल वेचारी किशोरी का पकडे लिए जाता है इत्यादि ता सभी की तबीयत गहुत वेचैन हो गई। राजा वीरेन्द्रसिह तजसिह, इन्द्रदेव और देवीसिंह वगैरह घबडाकर चारों तरफ देखन और सोचने लगे कि अब क्या करना चाहिय! कमलिनी हाथ में तिलिस्मी खजर लिए हुए कैदयान वाल दवाजे के बीच ही में खड़ी थी। उसन इन्द्रदय से कहा--- मुझ भी उसी कातरी के अन्दर पहुचाइये जिसमें किशोरी को रस्सा या फिर मै उत्त छुड़ा लूगी। इन्द्रदेव-यशक 3स कोठरी के अन्दर तुम्हारे जान से किशारो को मदद पहुचगी मगर किसी ऐयार को भी अपने साथ लतीजाआ। देवीसिह-मुझ माय जाने के लिए कहिये। इन्द्रदेव--( बीरन्द्रसिह से) आप देवीसिंह जी का साथ जाने की आज्ञा दीजिये। वीरेन्द्र-(दवीसिह से जाइय। तेज-नहीं कमलिनी के साथ में खुद जाऊगा क्योंकि मरे पास भी राजा गापालसिह का दिया हुआ तिलिस्मी देवकीनन्दन खत्री समग ६८०