पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६८९

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खजर है। इन्द-राजा गोपालसिह ने आपको तिलिस्मी खजर कव दिया? तेज-जब कमलिनी की सहायता से भेन उन्हें मायारानी की कैद से छुडाया था तब उन्होंने उसी तिलिस्मी बाग के चौथे दर्ज में से एक तिलिस्मी खजर निकाल कर मुझ दिया था जिसे मै हिफाजत स रखता हू । कमलिनी के साथ देवीसिह के जान से कोई फायदा न होगा क्योंकि जब कमलिनी तिलिस्मी खजर स काम लेगी तो उसकी चमक से और लोगों की तरह देवीसिह की आखे बन्द हो जायगी इन्ददेव-(बात काट कर ) ठीक है ठीक है मैं समझ गया अच्छा ता आप ही जाइये दर न कीजिय। इतना कह कर इन्ददव बडी फुर्ती स कैदखान के अन्दर चला गया और उस कोठरी का दर्वाजा जिसमें किशोरी कामिनी लक्ष्मीदेवी,लाडिली और कमला का रख दिया था पुन उसी ढग से खोला जैसे पहिले खोला था। दर्वाजा खुलने के साथ ही तजसिह को माथ लिए हुए कमलिनी उस कोटरी के अन्दर घुस गई और वहा कामिनी,लक्ष्मीदेवी लाडिली और कमला को मौजूद पाया मगर किशारी का पता न था। कमलिनी ने उन औरतों का तुरन्त कोठरी के बाहर निकाल कर राजा बीरन्दसिह के पास चल जाने के लिए कहा और आप दूसरे काम का उद्योग करने लगी। बाकी औरतों के वाहर होते ही इन्द्रदेव ने जजीर छोड दी और कोठरी का दर्वाजा बन्द हो गया। कमलिनी ने अपने तिलिस्मी खजर की रोशनी में चारा तरफ गौर स देखा। बगल वाली दीवार में एक छाटा सा दर्वाजा खुला हुआ दिखाई दिया जिसमें ऊपर के हिस्से में जाने के लिए सीढिया थी। दोनों उस दांजे के अन्दर चले गये और सीढिया चढ कर छत के ऊपर जा पहुचे अव तेजसिह का मालूम हुआ कि इसी जगह से उस गुप्त मनुष्य के बोलने की आवाज आ रही थी। इस ऊपर वाल हिस्स की छत बहुत लम्बीन्चौडी थी और वहा कई बडबड दालान और उन दालानों में से कई तरफ निकल जाने के रास्ते थे। तेजसिह और कमलिनी ने देखा कि वहा पर बहुत सी लाशें पड़ी हुई है जिनमें से शायद दाही चार म दम हा और जमीन भी वहा की खून स तरबतर हो रही थी। अपने पैर को खून और लाशों से बचा कर किसी तरफ निकल जाना कठिन ही नहीं बल्कि असम्भव था अस्तु कमलिनी ने इस बात का कुछ भी खयाल न किया और लाशों पर पैर रखती हुई वरावर चली गई। आखिर एक दालान में पहुची रिसमें स दूसरी तरफ निकल जाने के लिये एक खुला हुआ दवाजा था। दर्वाजे के उस पार पैर रखते ही दोनों की निगाह कृष्णाजिन्न पर पड़ी जिसे दुश्मन चारो तरफ स घर हुए थ ओर वह तिलिस्मी तलवार स सभी का काट कर गिरा रहा था। यद्यपि वह तिलिस्मी फौलादी जाल की पोशाक पहिरे हुए था और इस सवय से उसके ऊपर दुश्मनों की तलवारें कुछ काम नहीं करती थीं तथापि ध्यान देने समालूम हाता या कि तलवार चलात-चलात उसका हाथ थक गया है और थोड़ी देर में हर्बो चलाने या लडने लायक न रहगा। इतना हाने पर भी दुश्मनों का उस पर तह पान की आशा न थी और मुकाबिला करने से डरते थे। जिस समय कमलिनी और तजसिह तिलिस्मी खजर चमकात हुए उसके पास जा पहुचे उस समय दुश्मनों का जी बिल्कुल ही टूट गया और व तलवारें जमीन पर फंक-फेक शरण शरणागत इत्यादि पुकारने लग। अगर दुश्मनों को यहा से निकल जाने का रास्ता मालूम हाता ओर वे लोग भाग कर अपनी जान बचा सकते तो कृष्णाजिन्न का मुकाविला कदापि न करते लेकिन जब उन्होंन देखा कि हम लाग रास्ता न जानने के कारण भाग कर जा ही नहीं सकत तब लावार होकर मरन-भारन के लिए तैयार हो गये थे मगर कृष्णाजिन्न ने भी उन लोगों को अच्छी तरह यमलाक का रास्ता दिखाया क्योंकि उसक हाथ में तिलिस्मी तलवार थी। जब तेजसिह और कमलिनी भी तिलिस्मी खजर चमकाते हुए वहा पहुच गय तब ता दुश्मनान एक दम ही तलवार हाथ से फेंक दी और त्राहि-त्राहि शरण-शरण पुकारन लग। उस समय कृष्णाजिन्न न भी हाथ राक लिया और तेजसिह तथा कमलिनी की तरफ देख कर कहा-बहुत अच्छा हुआ जा आप लाग आ गये । तेज-मालूम होता है कि आप ही न दुश्मनों के आने से हम लागों को सचेत किया था। कृष्णा-हाँ यह आवाज मेरी ही थी और मुझी से आप लोग बातचीत कर रहे थे। तेज-ता क्या आप हीन यह कहा था कि काई शैतान बेचारी किशोरी को पकडे लिए जाता है ? कृष्णा-हा यह मैन ही कहा था किशोरी को ले जाने वाला स्वयम उसका बाप शिवदत्त था और मेरे हाथ से मारा गया। कृष्णाजिन्न और भी कुछ कहा चाहता था कि कोई आवाज उसके तथा कमलिनी और तजसिह के कानों में पड़ी। आवाज यह थी- हरी हरी तुम लोग भागो और हमारे पीछे-पीछे चले आआ धन्नूसिह की मदद से हम लोग निकल जायेंगे। इस आवाज को सुन कर वे लोग भी पीछे की तरफ भाग गये जिन्होंने कृष्णाजिन्न और तेजसिह के चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १५ ६८१