पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६९२

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काम का कुछ भी ख्याल न रहा और मनारमा के साथ शादी की धुन सवार हो गई जिसका नतीजा यह निकला कि मनारमा न मानक को खूब जूतिया लगाई औ तिलिस्मी खजर भी ले लिया मैं बहुत खुश हाता यदि मनोरमा नानक का कान नाक भी काट लती। आपको और आपक एयारों को हाशियार करता हू और कहे देता हू कि औरत के गुलाम नानक बभान पर कोई भी कभी भरोसा न करे। आपजरुर अपने एक ऐयार को नानक के घर तहकीकात करन के लिए भेजें त। आपका नानक ओर नानक के घर की हालत मालूम होगी। अस्तु अब आपका रोहतासगढ़ में रहना ठीक नहीं है आप कैदियों और किशोरी कामिनी कमलिनी और लक्ष्मीदेवी इत्यादि सभी का लेकर चुगर चले जायें। में गह गात इस ख्याल पनहीं कहता कि यहा आपको दुश्माों का डर है नहीं नहीं औवल तो अब आपका कोई एमा दुरमन ही नहीं रहा जा रोहतासगढ तहखाने का रत्ती बरावर भी हाल जानता हो दूसर उस तस्याने के कुल दर्वाज (दीवानखाने वाला एक मदर दर्वाज को छोड कर ) जर गिनती में ग्यारह थ मैने अच्छी तरह बन्द कर दिये और उनका हाल तेजसिह का बता दिया है। मैं समझता हूँ इनस ज्यादे रास्ते तहखान में आने-जाने के लिए नहीं हैं इतन रारतों का हाल यहा का राजा दिग्विजयसिह मी न जानता हागा हा कमलिनी जरुर जानती होगी क्योंकि वह रिक्तग्रन्थ पढ़ चुकी है। यदि आप तहखान की सर किया चाहते है तो इस इरादे का अभी राक दीजिये कुँअर इन्द्रजीतसिह और आनन्दसिह के आने पर यह काम कीजियेगा ग्योंकि यहा का सक्स ज्यादे हाल उन्हीं दोनों भाइयों को मालूम होगा हा बलभद्रसिह का पता लगान का उद्योग करना चाहिए आप यहा के तहखाने की भी अच्छी तरह सफाई हो जानी चाहिए जिसमें एक भी मुर्दा इसक अन्दर रहन जाय। यदि इन्द्रदेव चाहें तो नकली बलभद्रसिह का आप इन्द्रदेव के हवाले कर दीजिएगा और उसकी बलभदसिह तथा इन्दिरा का पता लगान का बोझ इन्द्रदेव ही के ऊपर डालियगा। भूतनाथ को भी चाहिये कि इन्द्रदेव के साथ रहकर अपनी खैरख्वाही दिखाये और पुरानी कालिख अपने चेहरे से अच्छी तरह धो डाले नहीं तो उसके हक में अच्छानहोगा और आप अपने एक एयार को हरामखोर नाक की तरफ रवाना कीजिये। मै आपका ध्यान पुन मनोरमा की तरफ दिलाता हूँ और कहता हूं कि तिलिस्मी खजर का उसके हाथ लग जाना बहुत ही बुरा हुआ। मनोरमा साधारण औरत नहीं है उसकी तारीफ आप सुन ही चुके होंगे। तिलिस्मी खजर पाकर अब वह जो न कर डाले वही आश्चर्य है। उसक कणा से खजर निकालने का शीघ उद्योग कीजिय और इस काम का सबसे ज्यादे जलरी समझिये। इसके अतिरिक्त तेजसिह की जुबानी जो कुछ मैने कहला भजा है उस पर भी ध्यान दीजिये। इस धीटी का सुनकर सभी को ताज्जुब हुआ। राजा वीरन्द्रसिह तो चुप ही रह सिर्फ इन्द्रदेव के हाथ से चीठी लेकर तसिह को दे दी और बोल दि सब काम इसी के मुताबिक होना चाहिए । इसके बाद एक एक के चेहरे को गोर से देखने लगे। भूतनाथ का चेहरा मारे क्रोध के लाल हो रहा था नानक की अवस्था और नालायकी पर उसे बडा हीरज हुआ था। लक्ष्मीदेवी के चहरे पर भी हद्द से ज्यादै उदासी छाई हुई थी, बाप की फिक्र के साथ ही साथ उसे इस बात का बडा रज और ताज्जुब था कि राजा गोपालसिह ने सब हाल सुनकर भी उसकी कुछ खबर न ली न तो मिलने के लिए आय और न कोई चीठी ही भेजी। वह हजार सोचती और गौर करती थी मगर इसका सबब कुछ भी उसके ध्यान में न आता था और न उसका दिल इसी बात को कबूल करता था कि राजा गोपालसिह उसे इसी अवस्था में छोड़ देंगे। ज्याद ताज्जुब तो उसे इस बात का था कि राजा गोपालसिह ने मायारानी के बारे में भी कोई हुक्म नहीं लगाया जिसकी बदौलत वह हद्द से ज्यादं तकलीफ उठा चुके थे। अब इस ख्याल ने उसे और सताना शुरू किया हम लोगों को चुनार जाना होगा जहाँ गोपालसिह का पहुचना और भी कठिन है इत्यादि तरह तरह की बातें वह सोच रही थी और न रुकने वाले आसुओं को रोकन में जी जान स उद्योग कर रही थी। कमलिनी का चेहरा भी उदास था राजा गोपालसिह के विषय में वह भी तरह तरह की बातें सोच रही थी और उनसे तथा नानक से स्वय मिला चाहती थी मगर राजा वीरेन्द्रसिह की मर्जी के खिलाफ कुछ करना भी उचित नहीं समझती थी। राजा वीरेन्द्रसिह न इन्द्रदेव की तरफ देख कर कहा आप क्या सोच रहे हैं ? कृष्णाजिन्न पर मुझ बहुत बडा विश्वास है और उसन जो कुंछ लिखा मै उसे करने के लिए तैयार हू। इन्द्रदेव--आप मालिक हैं आपको हर तरह पर अख्तियार हे जो चाहे करे और मुझ भी जो आज्ञा दे करन के लिए तैयार है। कृष्णाजिन्न की तो मैंने सूरत भी नहीं देखी है इसलिय उनके विषय में कुछ भी नहीं कह सकता मगर मुझे अफसास इस बात का है कि मैं यहा आकर कुछ भी न कर सका न तो बलभदसिह ही का पता लगा और न इन्दिरा के विषय में ही कुछ मालूम हुआ। वीरेन्द-नकली बलभद्रसिह जव तुम्हार कब्ज में हो जाएगा तो मैं उम्मीद करता हूं कि तुम इन दोनों ही का पता लगा सकाग और कृष्णाजिन्न के लिखे मुताबिक मैं नकली वलभदसिह को तुम्हारे हवाले करने के लिए तैयार हू। मैं तुम पर भी पहुन विश्वास रखता ई ओर तुम्हें अपना समझता है। अगर कृष्णाजिन्न ने न भी लिखा हाता और तुम नकली वलसिंह को मागत ता भी मैं तुम्हें दे दता अब भी अगर तुम मायारानी या दारोगा को लिया चाहो तो मैं देने को तैयार देवकीनन्दन खत्री समग्र