पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६९३

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केवल इतना हा नहीं इसक अनिरिक्त तुन अगर और भग कोई बात कही तो करने के लिए नगर हू। रजा परन्द्रसिह की पान सुनाकर इन्द्रदेव उठ र एक और झुप र सलाम करावाद हाथ जोड़ कर बोला यह जान कर कुन हो प्रस-पहुआ कि महाराज मुझ पर विश्वास रखत ह ओर नवली बलभदासह का मर हवाले करने के लिए तैयार है नया और मालिमम चाइस जान की प्राथना कर सकता हू! यदि महाराज की मुझ पर इतना ही कृपा है तामें कह सकता हूगि सिवाय नक्ली बलमदारह के जार किसी रदा का ले जाना नहीं चाहता भगर लक्ष्मीदपी मालिनी गर लाउली का अपन मायल जान की पाथना करता हु अपनी धर्म की प्यारी लइकी लक्ष्मीदेवी पर बहुत स्नर रखता ह और भी बहुत कुछ उनके हाथ म (कर) हा ला गदि महाराज मुझ पर विश्वास कर सकते है तो इन लोग का और सलमान की मुझदद जिस पर 'दिरा लिखा हुआ है। भूतनाथ के कागजात सपन स्मथ लेने ' ने असली बलाह का 4 लगाकर सेवा में उपस्थित हाऊगा और उस समय सपना सामन भूतनाथ का मुकद्दमा का फैसला कराऊमा । आप भूतनाथ को आज्ञा दे कि कृष्णाजिव ने उसके विषय में जो कुछ लिखा है उसे कनीयती के साथ पूरा करे। इददेव पायात सुन कर रासा गरेन्दसिह गार गड गय। वे लक्ष्मीदेवा कमालनी और लाइली को अपने साथ हुशार ले जा चाहते थे और जिन्न न भी ऐसा करन को लिखा था मगर इन्द्रदेव की अर्जी भी नामजूर नहीं कर तपयक दयानादया पर हर था और उसी । लादियो को रक्षा की थीं। कलिन और लाडिली पर राजा वी सिह का कोई अधिकार नया क्याफियाबल्कुल नत्र थी। बग्न्द्रसिह ने कुछ दर तक गार करन बाद इन्द्रदेव हा मुद्दा कुछ नहीं है लेदमोदी कपलिन और लाडेली यदि आपके साथ रहने में प्रसन्न हे तो आप उन्हें ले जाय और वह कलमदान भी आपको मिल जागा। इन्ददव और राजा वीरन्द्रसिह की याने सुनकर लक्ष्मीदवी कमलिना और लाडिली बहुत प्रसन्न हुई और हाथ जाड कर राजा वीर सिह स बाली हला अपन धम के पिता इन्द्रदेव के घर जाने में बहुत प्रसन्न है वहा हमें अपने याप का पता लगाने का हाल बहुत जल्द मिलगा। वीरेन्द्र-बहुत अच्छा (नेजसिहर) यह कलमदान इन्द्रदय को ददा और इस लागों के तथा नकली बलभदसिह के जाने का धन्दाबस्त करा! हम भी आज चुनारगद की तरफ पूर्व करेंगे। भैरासिह को मनोरमा की गिरफ्तारी के लिए रवाना करा और मारसिह को नान के घर भेजा। (दवीसिंह की तरफ दख के) एक बहुत नाजुक काम तुम्हारे सुपुर्द करने की इच्छा है जो तुम्हारे कान में कहेंगे। देवीसिह राजा वारन्द्रसिह के पास चले गए और उनकी तरफ सिर झुका दिया। बीरन्द्रसिह न दवासिह के कान में कहा 'लक्ष्मीदेवी कमलिनी और लाडिली की निगहबानी तुम्हारे जिम्म मगर गुप्त । देवीसिह सलाम करके पीछे हट गए और दरबार बरखास्त हो गया। तीसरा बयान शेरअलीखॉ बड़ी इज्जत आर आवक क साथ घर भेजे गये उनके सेनापति महबूबखा को भी छुट्टी मिली भैरोसिह मनोरमा की फिक्र में गए नारासिह नानक के घर चल और कुछ फौजी सिपाहियों के साथ नकली बलभद्रसिह लक्ष्मीदेवी, कमलिनी और लाडिली को लिए हुए इन्ददेव ने अपने गुप्त स्थान की तरफ प्रस्थान किया। भूतनाथ बातें करता हुआ उन्हीं के माथ चल पडा और थोड़ी दूर जाने के बाद आज्ञा लेकर अपने अड्ड की तरफ रवाना हुआ जो बरावर की पहाडी पर था और देवीसिह न न मालूम किधर का रास्ता लिया। राजा वीरेन्द्रसिह की सवारी भी उसी दिन चुनारगढ की तरफ चली और तेजसिह राजा साहब क साथ गये। हम सब के पहिले तारासिह के साथ चल कर नानक के घर पहुंचते हैं और उसकी जगतप्रिय स्त्री की अवस्था पर ध्यान दते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि लडकपन में नानक उत्साही था और उसे नाम पैदा करने की बड़ी लालसा थी परन्तु रामभोली के प्रेम ने उसका खयाल बदल दिया और उसमें खुदार्जी का हिस्सा कुछ ज्यादे हा गया। आखीर में जब उसने श्यामा नामी एक स्त्री से शादी कर ली जिसका जिक्र कई दफे लिखा जा चुका है तवसे तो उसकी बुद्धि बिल्कुल ही भ्रष्ट हो गई। नानक की स्त्री श्यामा बड़ी चतुर लालची और कुलटा थी मगर नानक उसे पतिव्रता और साध्वी जान कर माता के समान उसकी इज्जत करता था। नानक ले नातदार ओर दोस्तो की आमदरफ्त उसके घर में विशेष थी। श्यामा का रुपये पेस की कमी न थी और वह अपनी दौलत जमीन के अन्दर गाड कर रक्खा करती थी जिसका हाल निवाय एक नौजवान खिदमतगार के जिसका नाम हनुमान था और काई भी नहीं जानता था। हनुमान चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १५