पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६९५

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२ तारासिह का आना इस शहर में हुआ था। बहुत दर तक बातचीत करने के बाद तारासिह का नौकर उठ खडा हुआ और हनुमान के हाथ में कुछ देकर घर का रास्ता लिया जहाँ तारासिह उसके आने का इन्तजार कर रहा था। जर तारासिंह ने नौकर को आते देखा तो तारा-कहा क्या हुआ? नौकर-सब ठीक है वह तो आपको देख भी चुकी है। तारा-हॉ रात को जब मैं वहाँ पानी पी रहा था,टाट का पर्दा हिलते हुए देखा था, तो और भी कुछ हालचाल मालूम हुआ नौकर-जी हाँ बडी बातें हुई। वह तो पूरी खानगी है कल दोपहर के पहिले मै आपको उन लोगों के नाम भी बताऊँगा जिनसे उसका ताल्लुक है और उम्मीद है कि कल वह स्वय बन ठन कर आपके पास आव । तारा-ठीक है तो क्या तुम्हें उसका नाम भी मालूम हुआ? नौकर-जी हाँ उसका नाम श्यामा है और अपने पति अर्थात नानक के लिए तो वह रूपगर्विता नायिका है। तारा-बड अफसोस की बात है। नि सन्देह भूतनाथ के लिए यह एक कलक है। एसी औरत का पति इस योग्य 'नहीं कि हम लोग उस अपने पास बैठावे या उसका छूआ पानी भी पीएँ । खैर अब तुम घर में वैतो मैं गस्त लगाने के लिए जाता है। दूसरे दिन दापहर के समय तारासिह का वही नकिर नानक के घर निकला तथा इधर उधर से घूमता फिरता तारासिह के पास आया और बोला आज श्यामा के कई प्रेमियों के नाम में लिख लाया हू। तारा-अच्छा यताआ ता सही शायद उन लोगों में से किसी को मैं जानता हाऊँ या किसी का नाम भी सुना हो। नौकर-श्यामा के एक प्रेमी का नाम जलशायी बाबू है। तारा-( गार करक ) जलशायी बाबू को तो में जानता हू, ये तो बडे नक और बुद्धिमान है। नौकर-जी हाँ वहीं लन्चे और गोरे से वे तरह-तरह के कपड़ राजधानी स लाकर उसे दिया करते हैं दूसरे प्रेमी का नाम त्रिभुवन नायक है और उन्हें महत्व की पदवी भी है और तीसरे पेमी का नाम मायाप्रसाद है जो राजा साहब के कोषाध्यक्ष है और चौथ प्रेमी का नाम आनन्दवन बिहारी है और पाँच तारा--बस बस बस में विशेष नाम सुनना पसन्द नहीं करता। नौकर-जो हुक्म (एक कागज दिखाकर ) में तो पचीसों नाम लिख लाया हू। तारा-ठीक है तुम इस फिहरिस्त को अपने पास रक्खो आवश्यकता पड़ने पर महाराज को दिखाई जायगी, हमारा काम तो उसके आज यहाँ आ जाने से ही निकल जायेगा। नौकर-जी हाँ आज वह यहाँ जरूर आवगी हनुमान मेरे साथ आकर घर देख गया है। चौथा बयान रात लगभग घण्टे भर के जा चुकी है। नानक के घर में उसकी स्त्री श्रृगार कर चुकी है और कपड़े बदलने की तैयारी कर रही है। वह एक खुले हुए सन्दूक के पास खडी तरह तरह की सानि पर नजर दौडा रही है और उनमें से एक साडी इस समय पहिरने के लिए चुना चाहती है। हाथ में चिराग लिए हुए हनुमान उसके पास खड़ा है। हनुमान-मेरी प्यारी भावज यह काली साडी बड़ी मजेदार है बस इसी को निकाल लो और यह चोली भी अच्छी है। श्यामा नहीं यह मुझे पसन्द नहीं मगर तू घडी-घड़ी मुझे मावज क्यों कहता है ? हनुमान-क्या तुम मेरी भावज नहीं हो। श्यामा-भावज तो जरुर हू, यदि तू दूसरी मॉ का बेटा होता तो हमारी आधी दौलत बटवा लेता और ऐसा न हाने पर भी मैं तुझे देवर समझती हू, मगर भावज पुकारन की आदत अच्छी नहीं अगर कोई सुन लेगा तो क्या कहेगा । हनुमान-यहाँ इस समय सुनने वाला कौन है ? श्यामा--इस समय यहाँ चाहे कोई न हो मगर पुकारने की आदत पड़ी रहने से कभी न कभी किसी के सामने हनुमान-नहीं नहीं मैं ऐसा बेवकूफ नहीं है। देखो इतने दिनों से मुझसे तुमसे गुप्त प्रेम है मगर आज तक किसी को मालूम न हुआ। अच्छा देखो यह साडी बदिया है इसको जरूर पहिनो। श्यामा-अरे वावा, इस साडी को तो देखते ही मुझे क्रोध चढ आता है। उस दिन यह साडी पहिर कर मै विरादरी में उनके यहाँ गई थी बस एक ने झट स टाक ही तो दिया कहने लगी कि यह साडी फलाने की दी हुई है। इतना सुनतेही चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १५ ६५७