पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/६९८

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उसने सलाम करने के बाद राजा वीरेन्द्रसिह को दे दी। राजा साहब ने चीठी खोल कर पड गौर से पढ़ी और तेजसिह के हाथ में दे दी। तजसिह ने भी उसे पढा और राजा साहब की तरफ देख कर कहा नि रान्दह ऐसा ही है।' वीरेन्द्र-तुमने तो इस विषय में मुझसे कुछ भी नहीं कहा था। तेज-कुछ कहने की आवश्यकता न थी और अभी में इन बातों का निश्चय ही कर रहा था। वीरेन्द-इस राय को ता में पसन्द करता हूँ । तेजसिंह-राय पसन्द करने योग्य है और इसका जवाब भी लिख देना चाहिए। धीरेन्द-हॉ इसका जवाब लिख दो। वहुत अच्छा कह कर तेजसिह ने अपने जेब से जस की एक कन्नम निकाली और उस चीठी की पीठ पर जवाब लिखकर वीरेन्द्रसिह को दिखाया राजा साहब ने उस पसन्द किया और धीठी उसी सवार के हाथ में दे दी गई सवार सलाम करके टीले से नीचे उतर आया और घाडे पर सवार होकर उसी तरफ चला गया जिधर से आया था। सवार के चले जाने बाद राजा धीरेन्दसिह और तेजसिह भी टीले स नीचे उतरे और गुप्त विषय पर बातें करत हुए लश्कर की नरफ रवाना हा कर थोड़ी ही देर में अपने खमे के अन्दर जा पहुध । इस सफर में राजा वीरेन्द्र सिह का कायदा था कि दिनरात में एक दफ किसी समय किशारी और कामिनी के घर में जरूर जात थोडी देर धैठत और हर तरह के जपनीय रामझा-बुझा कर तथा दिलासा देकर अप। डरे में लोट आत। इसी तरह उन दानों के पास दो दफ तजसिह के जान का भी मामूल था। जिस समय किशारी और कामिया के पारा राजा साहय या तेजसिह जाते उस समय प्राय सब लौडियाँ अलग कर दी जाती फेवल कमला उनदी के पास रहे जाती थी। आज भी टीले पर से लौटने के बाद थोडी दर दम लकर राजा वीरन्दसिह किशारी और कामिनी को राम में गये और दा घडी तक वहाँ बैठे रहे, कुल लौडिया हटा दी गई थी केवल कमला मौजूद थी जा उन दोनों के दुख सुराकी साथी बन चुकी थी और थी। दो घडी तक यहाँ ठहरने के बाद राजा साहब अपने येम में लौट आये और तेजसिह के साथ रेठ कर तरह तरह की बातें करने लगे जब रात ज्यादे चली गई तो राजा साहब ने चारपाई की शरण ली। तेजसिह भी अपने खेमे में चले गये और खा पीकर सो रहे। तजसिह को चारपाई पर गये आधा घण्टा भी बीता था कि वारदार किशारी कीलोजियो के आनकी तिला की। तेजसिह तुरन्त उठ बैठे और इन लौडियों को अपने पास हाजिर करन की आ. दी। थोड़ी ही देर मे दो लोडिया तेजसिह क सामने आई जिनमें से एक वही दया थी जिस वास्तव ने मनारमा कहना चाहिए। तेज-( लौडियों से ) इस समय तुम लागों के आने से आश्चर्य मालूम होता है। दया-किशोरीजी ने हम लोगों को आपके पास भजा है और कहा है कि यहा से थोडी दूर पर कोई एसी इमारत! जिसके अन्दर तिलिस्म होने का शक है। जब में कैदियों की तरह रोहतासगा में रहती थी तो यह बात राजा दिग्विजयसिह की जुबानी सुनन में आई थी। यदि यह बात ठीक है तो आपकी कृपा से में उस इभारत हो देवा चाहती तेज-किशोरी का कहना तो ठीक है, नि सन्देह यहा से थाडीही दूर पर एक इमारत है जिसमें तरह-तरह की अद्भुत बातें देखने में आती है और में उस इमारत को देख चुका हूँ, मगर एक सास कई आदमियो का उस इमारत के अन्दर जाना बहुत कठिन है । (कुछ सोच कर ) अच्छा तुम लोग चलो मै महाराज से यहा जाने की आता लकर बहुत जल्द किशोरी के पास आता हू। दया--जो आज्ञा । दोनों लोडिया सलाम करके किशारी के पास चली गई और जा कुछ तजसिह ने उनसे कहा था वह किशारी के सामने अर्ज किया। इस समय वहा किशारी, कामिनी और कमला एक साथ बैठी हुई थी और कई लोडिया भी मौजूद थीं। थाडी देर बाद तेजसिह के आन की इत्तिला मिली और कमला उनको ले के लिए येमे के बाहर गई। जय तेजसिह खेमे के अन्दर आए तो उन्हें देख किशोरी और कामिनी उठ खड़ी हुई और जब तेजसिंह बैठ गय तो अदय के साथ उनक सामने बैठ गई। वेज-(किशारी से ) उस इमारत की याद यकायक कसे आ गई ? किशोरी--अकस्मात् उस इमारत की याद आ गई। कामिनी बहिन को भी उसके देखने का बहुत शौक है। मैंने रााया कि ऐसा मौका फिर काहे को मिलेगा। वह इमारत रास्ते ही में पड़ती है, यदि आपकी कृपा होगी तो हम लोग उसे देख लेंगी। देवकीनन्दन खत्री समग्र