पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७०

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cori १ और वह चुपचाप खड़ी रनबीरसिह का मुंह देखने लगे। कुछ देर बाद रनबीरसिह ने सामने की दीवार पर निगाह दौडाई ओर बोले, क्या आश्चर्य है जिधर देखो उधर ही मेरे मतलब की तस्वीरें दिखाई पड़ती है। प्यारी कुसुम, क्या तुम इन तस्वीरों का हाल और जो जो मैं पूडूं बता सकोगी? कुसुम-जी नहीं। रनबीर-सो क्यों? कुसुम-इसीलिये कि इनके बारे में मैं कुछ भी नहीं जानती। रनबीर-तब कौन जानता है? कुसुम--इस समय सबसे ज्यादे जानकार दीवान साहब है जिन्होंने मुझे अपने गोद में खिलाया है, मेरे पिता ने इस कमरे की ताली भी उन्हीं के सुपुर्द की थी और अब तक उन्हीं के पास थी , कल मैने मॅगा ली है। रनबीर-जब दीवान साहब ने तुम्हें गोद में खिलाया है तो उनसे पर्दा क्यों करती हो? कुसुम-केवल राज्य नियम निबाहने के लिये, नहीं तो मुझे कोई पर्दा नहीं है। रनवीर-तो मैं उन्हें यहाँ बुलवाऊँ । कुसुम-बुलवाइये। रनबीरसिह ने बीरसेन की तरफ देखा, वह मतलब समझ कर तुरन्त दीवान साहब को बुलाने के लिये चले गए। जब तक दीवानसाहब न आये तब तक रनबीरसिह चारो तरफ की तस्वीरों को बड़े गौर से देखते रहे जिससे उनके लड़कपन की बहुत सी बातें उन्हें इस तरह याद आ गई जैसे वे सब घटनाए आज ही गुजरी हो। थोड़ी ही देर में दीवान साहब भी आ मौजूद हुए। उन्हें देखते ही रनबीरसिह ने कहा, "दीवान साहय, इस कमरे में आने से आश्चर्य ने मुझे चारो तरफ से ऐसा घेर लिया है कि मेरी बुधि ठिकाने न रही। लड़कपन से होश सम्हालने तक की बातें मुझे इस तरह याद आ रही हैं जैसे मेरे सामने एक ही दिन में किसी दूसरे पर बीती हों, अब मेरी हैरानी और परेशानी सिवाय आपके कोई नहीं मिटा सकता।" दीवान-ठीक है इन तस्वीरों का हाल यहाँ मुझसे ज्यादे कोई दूसरा नहीं जानता, क्योंकि ये सब मेरे सामने बल्कि मेरी मुस्तैदी में बनवाई गई है और इसकी ताली भी बहुत दिनों तक बतौर मिल्कियत के मेरे ही अमानत रही है। रनबीर-तो आप मेहरबानी करके इन तस्वीरों का हाल ठीक ठीक मुझसे कहें। दीवान-बहुत खूब !(कुसुमकुमारी की तरफ देख कर) आप भी मेरी यातों को गौर से सुनें क्योंकि इनका जानना जितना जरूरी रनबीरसिह के लिये है उतना ही आपके लिये भी। कुसुम-वेशक ऐसा ही है और उनसे ज्यादे सुनने की चाह मुझे है क्योंकि इसके पहिले मैं एक दफे और भी इस कमरे में आ चुकी हू और तभी से हैरानी मेरा ऑचल पकडे हुए है। दीवान-(रनबीरसिह की तरफ देख कर) अच्छा तो इन तस्वीरों का हाल आप अलग अलग मुझसे पूछेगे या मै खुद कह चलूँ ? रनबीर-उत्तम तो यही होगा कि आप कहते जाय और मैं सुनता जाऊ । दीवान-बहुत अच्छा ऐसा ही होगा । (बीरसेन की तरफ देख कर) तुम भी ध्यान देकर सुनो। बीरसेन-जरूर सुनूँगा। दीगन साहब ने हाथ के इसारे से बता बताकर यों कहना शुरू किया 'पहिले इन दो बड़ी मूरतों पर ध्यान दीजिये जिनमें से एक को आप बखूबी जानते हैं क्योंकि वह आपके पिता इन्द्रनाथ की भूरत है और दूसरी मूरत जिसकी है उसे भी आप कई दफे देख चुके हैं वह कुसुमकुमारी के पिता कुबेरसिह की मूरत है। ये दोनों आपस में लड़कपन ही से सच्चे और दिली दोस्त थे मगर मैं इन दोनों का किस्सा पीछे कहूगा पहिले चारो तरफ दीवारों पर खिची हुई तस्वीरों का हाल कहता हू बल्कि इसके भी पहिले यह कह देना मुनासिब समझता हू (दोनों मूरतें दिखा कर) इन दोनों दोस्तों ने अपनी जिन्दगी ही में आपकी शादी कुसुमकुमारी के साथ कर दी थी। इस बात को कुसुमकुमारी बखूबी जानती है बल्कि यहाँ के सैकड़ों आदमी जानते हैं। आप भी अपनी शादी का हाल भूले न होंगे मगर आप खयाल करते होंगे कि आपकी शादी किसी दूसरी लड़की से हुई थी क्योंकि कुसुम की सूरत किसी कारण से आपको दिखाई नहीं गई थी। रनबीर-हॉ ठीक है मैं इस दूसरी मूरत को भी पहिचानता हू मेरे पिता से मिलने के लिये ये अक्सर आया करते थे और मुझ पर बहुत ही प्रेम रखते थे। उस समय मेरी अवस्था केवल सात वर्ष की थी तो भी मुझे शादी का दिन बखूबी याद है बाकी भूली हुई बातों की (हाथ के इशारे से बता कर) देखिये वह दीवार पर खिची तस्वीरे याद दिलाती है दीवार 5 देवकीनन्दन खत्री समग्र १०७८