पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७००

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€ रही घर मी समासिह उरो पहिचान नहीं सर्फ, मगर तेजसिंह का दिल इस बात का भी काल नहीं कर सकता कि मनोरमा इस लस्कर में नहीं है बल्कि मनारमा के मौजूदाने का विश्वास उन्हें उतना ही था जितना पढ़े लिख आदनी का एक और एका दा हान का विश्वास हाता है। आज तजसिंह न यह हुक्म जारी किया कि किशारी-कामिनी और कमला के खेम "उस समय काई लोडीन रहे और न जाने गर जाती निदा की अवस्था में हो अथात् जब यतीना जागती रहे तब तोलड़ियाँ जन पास और आना सकें परन्तु जन व तीनों सोने की इच्छा को तय गफ भी तोड़ी रयमे में न रहने पाव और जब तक कमला एण्टी बजा कर किसी लौडी को बुलान का इसारा न करें तब तक काइ लौडी खेमे के अन्दर न जाय, और उस खमे के धारा तरफ बडो मुस्तदी के साथ पहरा देन का इन्तजाम रह । इस आज्ञा को सुन कर ननौरमा बहुत ही चिटकी और मन में कहने लगी कि तेजसिर भाबडा बेवकूफ आदमी है मला ये सब बातें मनोरमा के होसले का कभी कम कर सकती है? पल्कि मनोरमा अपने काम में अब आर शीघ्रता करगी क्या मनोग्मा कपल इसी काम के लिए इस लश्कर में आई है कि किशारी का मार कर चली जाय? नहीं नहीं वह इसन भी बढकर काम करने के लिए आई है। अच्छा अच्छा तजमिह को इस चालाकी का मजा आज ही न चरवाया ता काई बात नहीं। किशोरो कामिनी और कमला को या इन तीनों में से किसी एक को आज ही न मार खपाया तामनारमा नाम नहीं रहा तो जा नालायक दखें तेरी हाशियारा कहा तक काम करती है एसीनऐसी बहुत सी बाते मनारमा न साची और अपनी प्रतिज्ञा पूरी करन का उद्योग करन लगी। सातवां बयान रात आधी से ज्यादा जा चुकी है। उस लम्ब चोड खेम के चारा तरफ बड़ी मुस्तैदी के साथ पहर! फिर रहा है जिसमें किशोरी कामिनी और कमला गहरी नींद में साई हुई है। उसके दोनों बगल और भी दो बडे-बडे डरे है जिने लौडिया है ओर उन दानों डरों के चारो तरफ भी दा फोजी सपाही घूम रह है। मनारमा चुपचाप अपने विछावन पर से उठी कनाल उठा कर चोरों को तरह खेमे के नीच से बाहर निकल गई ओर पर टवाती हुई किशारी के खमे की तर चली। दूर स उसन दखा कि यार फौजी सिपाही हाथ नगी तलवारें लिए हुए घूम-घूम कर पहरा द रहे है। वह हाथ में तिलिस्मी खजर लिए हुए खेमे क पीछे चली गई। जव पहरा देने वाले टहलते हुए कुछ आग निकल गए तब उसने कदन वढाया और तिलिस्मी खजर म्यान से निकाल कर उनके रास्त में रख दिया इसके बाद पीछे हटकर पुन आड में खड़ी हो गई तथा पहरा देन वाले की तरफ ध्यान देकर देखन लगी जब पहरा दन वाले लौट कर उस खजर के पास पहुंचे तो एक की निगाह उस खजर पर जा पडी जिसका लाहा तारों की रोशनी स चमक रहा था। उसन झुक कर खजर रठाना चाहा मगर छून के साथ ही वेहाश हाकर ओधे मुह जमीन पर गिर पड़ा। उसकी यह अवस्था देख उसके साथियों को भी आरचर्य हुआ। दूसर ने झुक कर उस उठाना चाहा और जब खजर पर उसका हाथ पडाता उसकी भी वही दशा जो पहिले सिपाही की हुई थी। तिलिस्मी खजर का हाल और गुण गिर्ने हुए आदमियों को मालूम था और जिन्हें मालूम था ये भी उस बहुत छिपा कर रखते थे। येचार फौजी सिपाहियों को इस बात की कुछ खवर न थी और धोखे में पड़ कर जैसा कि ऊपर लिख चुके हैं एक दूसरे के बाद चारों सिपाही खजर छूछू कर बहोश हो गये। उस समय मनोरमा पेड़ की आड़ से बाहर निकलकर चारों वेहोश सिपाहियों के पास पहुंची, अपना खजर उठा लिया और उसी खजर से खेमे के पीछे कनात में बड़ा सा छेद करने के बाद बडी होशियारी से खेमे के अन्दर घुस गई। उस समय किशोरी,कामिनी और कमला गहरी नींद में खुर्राटे ले रही थी जिन्हें एक दम दुनिया से उठा दने की फिक्र में मनोरमा लगी हुई थी। मनोरमा उनके सिर्हान की तरफ खड़ी हो गई और साचने लगी, निसन्देह इस समय मेरा बार खाली नहीं जा सकता, तिलिस्मी खजर के एक ही बार में सिर कटकर अलग हो जायगा मगर एक के सिर कटने की आहट पाकर बाकी दोनों जम जायगी, ऐसा न होना चाहिए, इस समय इन तीनों ही को मारना मरा काम हे, अच्छा पहिले इस तिलिस्मी खजर से इन तीनों को बेहोश कर देना चाहिए। इतना सोचकर मनारमा ने तिलिस्मी खजर बदन से लगाकर उन तीनों को बेहोश कर दिया और फिर सिर काटन के लिये तैयार हो गई। उसने तिलिस्मी खजर का एक भरपूर हाथ किशोरी की गर्दन पर जमाया जिससे सिर कटकर अलग हो गया दूसरा हाथ उसने कामिनी की गर्दन पर जमाया और उसका सिर काटने के बाद कमला का सिर भी घड से अलग कर दिया इसके बाद खुशी भरी निगाहों से तीनों लाशों की तरफ देखने लगी और बोली,"इन्हीं तीनों न

  • किशोरी,कामिनी और कमला एक खेमे में रहा करती थीं।

देवकीनन्दन खत्री समग्र ६९२