पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दुनिया में उधम मचा रक्या था। जिस तरह इस समय इन तीनों को मारकर मैं खुश हो रही हूँ उसी तरह बहुत जल्द वीरेन्द्र इन्द्रजीतसिह,मानन्द और गोणल क. भी मार कर सुशी भरी निगाहों से उनकी लाशों का दखूगी। तब दुनिया में मायारानी और ननोरमा के सिवाय कोई भी प्रताण दिखाई न देगा मनोरा सनाह हो चुकी थी कि पीछे की तरफ से आवाज आई-"नहीं नहीं, ऐसान हुआ है और न कभी गा" आठवां बयान अपहन थोड़ा सा हाल इन्द्रदेव का बयान करते हैं जो लक्ष्नीदेवी,कालिनी लाडिली और नकली बल नद्रसिह को साथ लेकर अपने घर की तरफ रवाना हुए थे और जिनके साथ कुछ दूर तक नृतनाथ भी गया था । नकली यलन्द्रसिह स्थकड़ी-बड़ी स जकड़ा हुआ एक डोली पर सवार कराया गया था और कुछ फौजी सिपाही उसे चारों तरफ घर हुए जा रहे थे। लक्ष्मीदेवी कमलिनी नधा लाडिली पालकियों पर सवार कराई गई थीं और उन तीनों पालकियों के आग-गछ बहुत स सिपाही जा रहे थे। इन्द्रदेव एक उम्दा घाडे पर सवार थे ओर भूतनाथ पंदल उनके साथ साथ जा रहा था। दोपहर दिन चढ बाद जब इन लोगों का डेरा एक सुहावने जगल में पड़ा तो भूतनाथ ने इन्द्रदेव स विदा मागी। इन्द्रदेव न कहा मुझ तो कोई उन नहीं है मगर लक्ष्मीददी और कमलिनी से पूछ लेना जरूरी है। तुम मर साथ उनक पास चतो मैं उन लोगों से तुम्हे छुट्टी दिला देता हूँ। लक्ष्मीदेवी कमलिनी और लाडिली की पालकी एक घने पेड के नीचे आमने सामने रक्खी हुई थी और उनके धारो तरफ कनात घिरी हुई थी। बीच में उम्दा फर्श बिछा हुआ था और तीनों बहिन उस पर बैठी बातें कर रही थीं। इन्द्रदव अपने साथ भूतनाथ को लिए हुए उन तीनों के पास गये और कमलिनी की तरफ देखकर बोल भूतनाथ विदा होने की आज्ञा मागता है। इन्द्रदव को दख कर तीनों बहिरें उठ खडी हुइ और कमलिनी ने भूतनाथ को भी अपने सामने फर्श पर बैठने का इशारा किया। भूतनाथ घेत गया तो बातें हाने ली- कमलिनी-(भूननाथ स) भूतनाथ तुम्हारे मामले ने तो हम लोगों को बहुत परशान कर रक्खा है। पहिले तो यही विश्वात हो गया था कि तुम ही मेरे पिता के घातक हा और यह जेपालसिह वास्तव में हमारा पिता है वह खयाल तो अव जाता रहा मगर तुम अभी तक बेकसूर सावित न हुए। भूत-कसूरवार तो मै जरूर हूँ, पहिले ही तुमस कह चुका हूँ कि मेर हाथ से कई युरे काम हो चुके हैं जिनके लिए मैं पछता रहा हूँ और अव नेक काम करके दुनिया में नेकनाम हुआ चाहता हूँ और तुमने मेरी सहायता करन की प्रतिज्ञा भी की थी। तब से तुम स्वय देख रही हो कि मैं कैसे कैसे काम कर रहा हूँ। यह सब कुछ है मगर मैंने तुम्हारे पिता-माता या तुम तीनों वहिनों के साथ कभी कोई बुराई नहीं की इसे तुम निश्चय समझो शायद यही सबब है कि एसे नाजुक समय में भी कृष्णाजिन्न न मेरी सहायता की मालूम होता है कि वह मेरा हाल अच्छी तरह जानता है। कमलिनी-खेर यह तो जब तुम्हारा भुकदमा होगा तव मालूम हो जायगा क्योंकि मैं बिल्कुल नहीं जानती कि कृष्णाजिम कौन है उसने तुम्हारा पक्ष क्यों लिया और राजा वीरेन्द्रसिह ने क्यों कृष्णाजिन्न की बात मान कर तुम्हें कैद से छुट्टी दे दी। लक्ष्मीदेवी-(भूतनाथ से ) मगर में जहा तक समझती हूँ यही जान पड़ता है कि तुम कृष्णाजिन्न को अच्छी तरह पहिचानते हो। भूत-नहीं नहीं कदापि नहीं। (खजर हाथ में लेकर )मै कसम खा कर कहता हूँ कि कृष्णाजिन्न को मिल्कुल नहीं पहिचानता मगर उसकी कुदरत देखकर आश्चर्य करता हूँ और उससे डरता हूँ। यद्यपि उसने मुझे कैद से छुडा दिया मगर तुम देखती हो कि भागकर जान बचाने की नीयत मेरी नहीं है। कई दफै स्वतन्त्र हो जाने पर भी मैंने तुम्हारे काम से मुह नहीं फेरा और समय पडन पर जान तक देने का तैयार हो गया। कमलिनी-ठीक है ठीक है और अबकी दफे राहतासगढ में पहुँचकर भी तुमने बडा काम किया मगर इस बारे में मुझ एक बात का आश्चर्य मालूम होता है। भूतनाथ-वह क्या ? कमलिनी-तुमने अपना हाल बयान करते समय कहा था कि मैंने तिलिस्मी खजर से शेरअलीखा की सहायता की थी। भूत-हा येशक कहा था। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १५ ६९३