पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७०४

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क विषय में भी में आशा करता हूँ कि जीती होगी। इन्ददेव-बल मालिट के जीत रहा का तो तुझे निश्चय है मगर इन्दिरा और उसकी मा के बारे में आया है से क्या मतलब । जेपाल-इन्दिरा और इन्दिरा की मा को दासगा न तिलिस्म म बन्द करना चाहा था, उस समय न मालूम किस सेशदरा ता कूट कर निकल गई मगर उसकी मा जमानिया तिलिग्मा के वोथे दर्जे में कैद कर दी गई इसी स उसक बारे में श्विय रूप से नहीं कह सकता मगर बलभद्रसिह अभी तक जमानिया में उस मकान के अन्दर कैद है जिसमें दारोगा रहता था। यदि आप मुझे छुट्टी द या मरे सराय पल ता में उसे बाहर निकाल दूं या आप खुद जाकर जिस ढग स चाहे,उसे छुडा लें। इन्ददेव-मुझे तेरी बात ही सच नहीं जान पड़ती। जैपाल-नहीं नहीं अबकी दफे मैंने सब ही सच बता दिया है। इन्द्रदेव-यदि में वहा जाऊँ और बलभदसिह न मिला तो। जैपाल-मिलने न मिला से मुझे कोई मतलब नहीं क्योंकि उस मकान में स दूढ निकालना आपका काम है. अगर आप ही पता लगाने में कसर कर जायेंगे तो मेरा क्या कसूर हा एक यात और है इधर ओडे दिन के अन्दर दारोगा किसी दूसरी जगह उन्हें रख दिया हो ता में नहीं जानता मगर दारोगा का रोजनामचा यदि आपको मिल जाय और उस पढ सके तो बरामदसिह के छूटने में कुछ कसर न रहे। इन्द्रदेव-क्या दारोगा रोजनामचा बरावर लिखा करता था ? जैपा-जी हा वह अपना रत्ती-रती हाल रोजनामचे में लिखा करता था। इन्द्रदेव-वह रोजनामचा क्योंकर मिलेगा? जैपाल- जमानिया के पक्के घाट के ऊपर है एक तली रहता है उसका मका बहुत बड़ा है और दारोगा की बदौलत वह भो अमीर हा गया है उसका नाम भी जोपाल है और उसी के पास दरोगा का रोजनामचा है यदि आप उससे • ले सकं तो अच्छी बात है नहीं तो कहिये में उसका नाम की एक चीठी लिय दूगा । इन्द्रदेव-(कुछ सोच कर ) वेशक तुझ उसके नाम की एक धीठी लिख देनी होगी मगर इतना याद रखिया कि यदि तेरी बात झूट निकली तो में बड़ी दुर्दशा के साथ तेरी जान लूगा जेपाल-ओर अगर सच निकली तो क्या में छोड़ दिया जाऊगा? इन्द्रदेव-(मुस्कुराकर) हा अगर तरी मदद से हम बलमदसिह को पा जायगे तो तरी जान मन दी जायगी मगर तर दोनों पैर काट डाल जायेग यह तेरी दूसरी आर भी बेकाम कर दी जायेगी। जैपाल-सोक्या? इन्ददेव-इसलिए कि तू फिर किसी काम लायक न रहे और न किसी के साथ बुराई कर सक। जैपाल फिर मुझे खान को कौन दगा? इन्द्रदेव-में दूगा। जैपाल-खेर जैसी मर्जी आपकी मुझे स्वीकार है मगर इस समय तोमरी आख में काई दवा डालिये। नहीं तो मै भर जाऊगा। इन्द्रदेव-हा हा तरी आख का इलाज भी किया जायगा, मगर परिल तू उस तेली के नाम की चीठी लिख दे। जैपाल-अच्छा मै लिय देता हूँ, हाथ खोल कर कलम दवात कागज मेरे आग रखो। यद्यपि रख की तकलीफ बहुत ज्याद थी मगर जैपाल भी बड़े हा कड़ दिल का आदमी था। उसका एक हाथ खोल दिया गया, कलम-दावाल-कारण उसके सामने रक्खा गया और उसने जयपाल तेली के नाम एक चीठी लिख कर अपनी निशानी कर दी। चीठी में यह लिखा हुआ था - मेरे प्यारे जपाल चक्री, दारोगा बाबा याला रोजनामचा इन्हें ददना नहीं तो मेरी और दारोगा की जान न बचेगी। हम दोनों आदमी इन्हीं के कब्जे में है। इन्द्रदव ने वह चीठी लेकर अपने जब में रक्थी ओर सऍसिड को जेपाल को दूसरी काठरी में ले जाकर कैद करने का हुक्म दिया तथा जैपाल की आँख में दवा लगाने के लिए भी कहा । धूर्तराज जैपाल ने नि सन्देह इन्द्रदेव को धोखा दिया। उसने जो तेली के नाम चीठी लिख कर दी उसके पढ़ने से . देवकीनन्दन खत्री समग्र