पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दानों मतलब निकलते हैं। हम दोनों आदमी इन्ही के कब्जे में है ये ही शब्द इन्द्रदेव का फसाने क लिए काफी थे अस्तु देखा चाहिए वहा जान पर इन्द्रदेव की क्ण हालत होती है। लक्ष्मीदेवी मलिनी और लाडिली का हर तरह से समझा-बुझा कर दूसरे दिन प्रात काल इन्द्रदेव जमानिया की तरफ रवाना हुए दसवां बयान अब हम अपन पाटकों को काटीपुरी में "क चौमजिल मकान के पर ल चलते हैं। यह निहायत सम्पन और मजबूत बना हुआ है। नीचे स ऊपर नक गेरू से रो हो के कारण रखने वाला तुरन्त कर देगा कि यह किसी गोसाई का मठ है। काशी क मठधारी गासाईं नाम ही के साया गोसाई कोन है पानाव में उको दोस्न उन5 PASTर उनका रहन सहन और बताद फ़िगी तरह गृहस्थों और बनियों से नहीं होता बल्कि दा हाथ ज्यादे ही हाना है। अगर किसी ने धर्म और शाल पर कृष्ण करक गुसाइपन को काउ निशानी रख भोला तो केवल इतना ही है कि एक टोपी गमए रग की सिर पर या गरुए गा का एक दुपट्टा कन्ध पर स्ख लिया मा भी भरसक रेरानी और शकीमत तो हाना ही चाहिए, उस । अस्तु इस समय जेम मकान " हम अपने पाठकों को ल चलत हैं दखन बाल उस मकान का भी किसी से हो साधु या गोसाई का मठ कहग र वास्तव में एसा नहीं है मकान के अन्दर कोई विचेत्र मनुष्य रहता है और उसके काम भी बडे ही अनूठे पर मकान कई मजिल का नीचे वाली नीनों मजिलो का छाडकर इस समय हा ऊपर वाली चौथी मजिल पर बनतई जहाँ ए. छाट से कमर मे तीन औरत बेठा हुई अकुत मंदात कर रही है। रात दो पहर से कुछ ज्याद जा चुकी है। कभर के अन्दर यी बहुत सीश सगे है मगर रोशना सिर्फ एक शमादान और एक दीवार पर की ही हो रही है। शमदान शक) ऊपर जल रहा है जहाँ तीता औरतें घटी है। उनमें एक औरत ता निहायत हीन र नाजुक है और यद्यपि उसको उम्र लगभग चालीस बजे पहुंच गई होगी मगर गजाब र सुलौली और चेहर का लोच अभी तक कायम है उसकी बड़ी-बडी आँखों में अभी तक गुलारी दारेया आर प्रस्तानापन मानूद ई मर के ऊपर और घ वालों में चादी वा तरह चभवन वाले बाल दिखाई नहीं देत और न अरग स देखन में ज्यादा उम्र की ही मालूम पड़ती है साथ ही इसक साली पत्त गोप सिकरी कडे न्द और अगट्रियों की तरफ जान देन र ठह साये माली भी मालूम पड़ती है। रिसके पास बेटा हुई दानों औरटे भी उसी को तरह कमाना और खूबसूरन नही तो बदसूरत भी नहीं हैं। जो बहुत हसीन और इम मकान को मालिक औरत है उसका नगम ब*है ओर याकी की दोनों भौरता का नाम नोरतन ओर जमालो है। बेगम -चाहे जेपालसिट गिरफ्तार हो गया मगर भूतनाथ उसका मुकाबला नहीं कर सकता और न भूतनाथ उस अपनी हिमपात ही में रख सकता है। जमाला-ठीक है मगर जव लक्ष्मीदवी और राजा वीरेन्दसिह को यह मालूम हो गया कि यह असली बलभद्रसिह नहीं और इसने बहुत बड़ा धोखा देना चाहा था तो उस जीता का छोड़ेंगे । वेग-तो क्या वह खाली इरने ही कसूर पर मारा जायगा कि उसन अपने को बलभद्रसिह जाहिर क्यिा? जमाला--क्या यह छाटा सा कसूर है । फिर असली दरभदसिह का पता लगान के लिए भी तो लोग उस टिक करेगा वेगम-अगर इन्साफ किया जायेगा तो जपालसिह गदाधरसिंह से ज्याद दाधी न ठहरगा एसी अवस्था में मुझे यह आशा नहीं हाती कि राजा वीरेन्द्रसिह उसे ग्राणदार देंग। नौरतन-राजा बीरन्द्रसिह चाहे उस प्राणदण्ड की पादान भी डे ग्गर इ ददव उस कदापि जीतान छोडगा और यह बात बहुत ही बुरी हुई कि राजा वीरन्द्रसिह ने उसे इशय के हवाले कर दिया। वेगम-जा हो मगर जिस समय में उन लागों क सामन जा खड़ी होऊँगी उस समय जैपाल को छुडा ही लाऊँगी क्याकि उसी क यदौलत अमीरी कर रही है और उसके लिय नील से नीच काम करन को भी तैयार हूँ। जमालो-सा कैस? क्या तुम असली बलभद्रसिंह के साथ उसल बदला कगगी। बेगम-हो में इन्द्रदय और लक्ष्मीदेवो से काही कि तुम जपालसिह को नर हवाले करो तो असली बलभद्रसिह को तुम्हार हवाल करगी। अफसोस तो इतना ही है कि गदाधरसिंह की तरह जैणल सिह दिलावर और जीवट का आदमी नहीं है। अगर जपालसिह के कब्ज में बलभदसिह होता तो वह थाडी ही नकलीफ में इन्द्रदव या लक्ष्मीदेवी को उसका गन नग्न म नुसलमान नमाना चाहिए। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १५ ६९७