पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७०६

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che हाल बना देता। जमालो-ठीक है मगर जब बलभद्रसिह तुम्हारे कर्ज स निकल जायेगा तय जपालसिह तुम्हारी इज्जत और कदर क्यों करेगा और क्यों दयेगा ? सिवाय इसके अब तो दारोगा भी स्वतन्त्र नहीं रहा जिसके भरोसे पर जैपालसिह कूदता था और तुम्हारा घर भरता था। वेगम-(कुछ साच कर) हा बहिन सो तो तुम सच कहती हो। और बलभद्रसिह को छोड़ने के पहिले ही मुझ अपना घर ठीक कर लेना चाहिये मगर एसा करने में भी दा यातों की कसर पड़ती है। जमालो-वह क्या ? वेगम-एक तो वीरेन्द्रसिह के पक्ष वाल मुद्दा पर यह दाप लगायेंगे कि तूने चलनदसिह का क्यों कैद कर रखा था दूसरे उज्य से मनोरमा क हाथ तिलिस्मी खजर लगा है तब से उसका दिमाग आसमान पर चढ़ गया है वह मुझस कत्तन खाकर कह गई है कि याडे ही दिना म राजा वीरेन्द्रसिंह और उनके पक्ष वालों को इस दुनियां से उटा दूंगी। अगर उसका कहना सच हुआ और उमने फिर मायारानी की जमानिया की गद्दी पर ला बैठाया तो मायारानी मुझ पर दोष लगागः कि तूने जैपाल को इतने दिनों तक क्यों छिपा रक्खा और दारागा स मिलकर मुझे धाये में क्यों डाला । नारतन--प्रेशक एमा ही होगा मगर इस बात का मैं कभी नहीं मान सकती कि अफली मनोरमा एक तिलिस्मी खजर पाकर राजा वीरेन्द्रसिह के एगारों का मुकाबला करगी और उनके पक्ष वालों को इस दुनिया स उठा देगी। क्या उन लोगों के पास तिलिस्मी खजर न होगा। जमालो-में भी यही कहन वाली थी मैंने इस विषय पर बहुत गौर किया मगर सिधा इसके मेरा दिल और कुछ भी न कहता कि राजा वीरन्द्रसिह उनके लडके और उनके ऐयारों का मुकाबला करने वाला आज दिन इस दुनियां में कोई भी नहीं है और एक बड़े भारी तिलिस्म के राजा गापालसिह भी प्रकट हो गये है। ऐसी अवस्था में मायारानी और उनके पक्ष वालों की जीत कदापि नहीं हो सकती। बेगम-ऐसा ही है और गदाधरसिह भी किसी न किसी तरह अपनी जान बचा ही लगा? देखा इतना बखडा हो जाने पर भी लोगों ने गदाधरसिह का जिसने अपना नाम अब भूतनाथ रख लिया है छोड दिया और अब वह चारो तरफ उपद्रव मचा रहा है। ताज्जुब नहीं कि वह जमीन की मिट्टी सूधता हुआ मेरे घर में भी आ पहुचे ! यद्यपि उस मेरा पता कुछ भी मालूम नहीं है मगर वह विचित्र आदमी है मिट्टी और हवा में मिल गई चीज का भी पता लगा लेता है। (ऊँची साँस लेकर) अगर मुझसे और उससे लडाई न हो गई होती तो आज में भी तीन हाथ की ऊँची गद्दी पर बैठने का साहस करती मगर अफसोस भूतनाथ ने मेरे साथ बहुत ही बुरा सलूक किया ।(कुछ सोचकर) यांदे बलभद्रसिह को लेकर मै राजा वीरेन्द्रसिह के पास चली जाऊँ और भूतनाथ के ऊपर नालिश करूं तो मै बहुत अच्छी रहूँ? मेरे मुकदमे की जवाबदही भूतनाथ कदापि नहीं कर सकता और राजा साहब उसे जरुर प्राणदण्ड की आज्ञा देंगे। बलभद्रसिह को छिपा रखने का यदि मुझ पर दाष लगाया जायेगा तो में कह सकूँगी कि जिस जमाने में जो राजा होता है प्रजा उसी का करती है अगर मैने मायारानी और दारागा के जमाने में उन लागों का पक्ष किया तो काई बुरा नहीं किया, मै इस बात को बिल्कुल नहीं जानती थी बल्कि दारोगा भी नहीं जानता था कि गोपालसिह को मायारानी न कैद कर रक्खा है अस्तु अव आपका राज्य हुआ है तो मैं आप की सेवा में उपस्थित हुइ हूँ। जमालो-बात तो बहुत अच्छी है, फिर इस बात में देर क्यों कर रही हो? इस काम को जहा तक जल्द करोगी तुम्हारा भला हाग। वेगम-(कुछ सोच कर ) अच्छी बात है ऐसा करने के लिए मैं कल ही यहा से रवाना हा जाऊगी। इतने ही में दर्वाजे के बाहर से यह आवाज आई मगर भूतनाथ को भी तो अपनी जान प्यारी है वह ऐसा करन के लिए तुम्हें जाने कर देगा? तीनों ने चौंक कर दरवाजे की तरफ निगाह की और भूतनाथ को कमरे के अन्द आते हुए देखा। बेगम-( भूतनाथ से ) आओ जी मेरे पुराने दोस्त भला तुमने मेरे सामने आने का साहस तो किया ! भूतनाथ साहस और जीवट तो हमारा असली काम है। वेगम-(अपनी वाई तरफ बैठने का इशारा करके ) मालूम होता है कि पुरानी बातों को तुम बिल्कुल ही भूल गये। भूतनाथ (वेगम की दाहिनी तरफ बैठ कर)हम दुनिया में आने से भी छ महीने पहले की बात याद रखने वाले आदमी हे आज वह दिन नहीं है जिस दिन तुम्हें और जैपाल को देखने के साथ ही डर से मेरे बदन का खून रगों के अन्दर ही जम जाता था बल्कि आज का दिन उसके बिल्कुल विपरीत है। देवकीनन्दन खत्री समग्र ६९८