पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७०७

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laget वेगम-अर्थात् आज तुम मुझे देख कर खुश होते हो ! भूतनाथ-बेशक । बेगम-क्या आज तुम मुझसे बिल्कुल नहीं डरते ? भूतनाथ-रत्ती भर नहीं। बेगम-क्या अब मै अगर राजा वीरेन्द्रसिह के यहा तुम पर नालिश करूँ तो मेरा मुकदमा सुना न जायेगा और तुम साफ छूट जाओगे? भूतनाथ-मगर अब तुम्हें राजा वीरेन्द्रसिह के सामने पहुँचने ही कौन देगा? बेगम-(क्रोध से ) राकेगा ही कौन ? भूतनाथ-गदाधरसिह जो तुम्हें अच्छी तरह सता चुका है और आज फिर सताने के लिए आया है । बेगम-(क्रोध को पचा कर और कुछ सोच कर) मगर यह तो बताओ कि तुम बिना इत्तिला कराये यहाँ चले क्यों आये और पहरे वाल सिपाहियों ने तुम्हें आने कैसे दिया ? भूतनाथ-तुम्हारे दरवाजे पर कौन है जिसकी जुबानी मैं इत्तला करताता या जो मुझे यहा आने से रोकता? बेगम क्या पहर के सिपाही सब मर गय? भूतनाथ-मर ही गये होंगे। बेगम क्या सदर दरवाजा खुला हुआ और सूनसान है ? भूतनाथ-सूनसान तो है मगर खुला हुआ नहीं है कोई चोर न घुस आये इस ख्याल से आती समय सदर दरवाजा मैं अन्दर से बन्द करता आया हूँ। डरो मत, कोई तुम्हारी रकम उठा कर न ले जायेगा। वेगम-(मन ही मन चिढ के) जमालो जरा नीचे जाकर देख तो सही कम्बख्त सिपाही सब क्या कर रहे हैं। भूतनाथ-(जमालो से) खवरदार यहाँ से उठना मत इस समय इस मकान में मेरी हुकूमत है बेगम या जैपाल की नहीं ! (बेगम से ) अच्छा अब सीधी तरह से बता दो कि बलभद्रसिह को कहाँ पर कैद कर रक्खा है। बेगम-मैं बलभदसिह को क्या जानूं? भूतनाथ-तो अभी किसको लेकर राजा बीरन्द्रसिंह के पास जाने के लिए तैयार हो गई थी। बेगम तेरे बाप को लेकर जाने वाली थी। इतना सुनते ही भूतनाथ ने कस के एक चपत बगम के गाल पर जमाई जिससे वह तिलमिला गई और कुछ ठहरने के बाद तकिये के नीचे से छूरा निकाल कर मूतनाथ पर झपटी। भूतनाथ ने बाएँ हाथ से उसकी कलाई पकड ली और दाहिने हाथ से तिलिस्मी खजर निकाल कर उसके बदन में लगा दिया. साथ ही इसके फुर्ती से नौरतन और जभालो के बदन में भी तिलिस्मी खनर लगा दिया जिससे बात ही बात में सभी बेहोश होकर जमीन पर लम्बी हो गई। इसके बाद भूतनाथ ने बडे गौर से चारो तरफ देखना शुरू किया। इस कमरे में दो आलमारिया थी जिनमें बडे बडे ताले लगे हुए थे, भूतनाथ ने तिलिस्मी खजर मार कर एक आलमारी का कब्जा काट डाला और आलमारी खोल कर उसके अन्दर की चीजें देख्न लगा। पहिल एक गठरी निकाली जिसमें बहुत से कागज बंधे हुए थे। शमादान के सामने वह गठरी खोली और एक एक करके कागज दखने ओर पढने लगा यहाँ तक कि सब कागज देख गया ओर शमादान में लगा लगा कर सब जला के खाक कर दिये। इसके बाद एक सन्दूकडी निकाली जिसमें ताला लगा हुआ था। इस सन्दूकडी में भी कागज भरे हुए थे। भूतनाथ ने उन कागजों को जला दिया। इसके बाद फिर आलमारी में ढूढना शुरु किया मगर और कोई चीज उसके काम की न निकली। मूतनाथ ने अब दूसरी आलमारी का कब्जा भी खजर से काट डाला और अन्दर की चीजों को ध्यान देकर देखना शुरु किया। इस आलमारी में यद्यपि बहुत सी चीजें भरी हुई थीं मगर भूतनाथ ने केवल तीन चीजें उसने से निकाल ली। एक तो दस-बारह पन्ने की छोटी सी किताब थी जिसे पाकर भूतनाथ बहुत खुश हुआ और चिराग के सामने जल्दी जल्दी उलट-पलट कर दो तीन पन्ने पढ गया. दूसरा एक ताली का गुच्छा था भूतनाथ ने उसे भी ले लिया और तीसरी चीज एक हीरे की अगूढी थी जिसके साथ एक पुर्जा भी बँधा हुआ था। यह अंगूठी एक डिबिया के अन्दर रक्खी हुई थी। भूतनाथ ने अगूठी में से पुरजा खोल कर पढ़ा और इसके पाने से बहुत प्रसन्न होकर धीरे से बोला 'बस और मुझे किसी चीज की जरूरत नहीं है। इन कार्मा से छुट्टी पाकर भूतनाथ बेगम के पास आया जो अभी तक बेहोश पड़ी हुई थी और उसकी तरफ देख कर बोला अब यह मैरा कुछ बिगाड नहीं सकती ऐसी अवस्था में एक औरत के खून से हाथ रगना व्यर्थ है।" चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १५