पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७०८

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ar भूतनाय हाथ में शमादान लिये निग्ल पण्ड में उतर गया जहा उनके साथी दो आदगी हाथ में नगी तलवार लिय हुए नौजूद था उसने अपने साथियों की तरफ देर कर कहा. वन हमारा काम हा गया। यल मडस्टि इस मकान में कैद है उस निकाल कर यहा स यश देना चाहिय। इतना कह कर भूत बनेन यालाया के हाथ नंदरिया और एक काठरी क दर्वाज पर जा खडा गजित दाहाला नम हुआ था। दनिया का गुच्छाजा ऊपर से लाया था उसी में स तालो लगा कर ताला बाल और अपन पदनिय फीलिये हुए कार से अदर घुसा व फोटरी खाली थी मगर उसमस एक दूसरी काठरी में जान कलरवाजा या जार ८जी जजीर में ताला लगा हुआ था। ताली लगा कर उस ताल का भी खाला और दूसरो कोटरी के अन्दर ली गया। इसी काटराम लक्ष्मीदेवी कमलिनी और लाडिली का उप वलभदासह कंद श्रीदिरवाजा खोला समय जजीर खटकन के साथ ही निद्रानेट चेतन्य हो गया था। जिस नमय उसकी निगाह यकायक मृताध पर पड़ी पर चौक उद्या और ताज्जुब मरो निगाहों से भूतनाम का देखन लगा। मूतनाय नी ताज्जुब की निगाह सबलभद्रांसदको दया और मनोर किया क्याकिबलभद्रसिह की अवस्था बहुत ही खराब हो रही थी। शरीर सूख का फॉटा हो गया या चेहर पर और बदन में झुर्रिया पडगई थी तर मूड ओर दाटी कराल और नाखून इतन बढ गय थे कि जगली मनुष्य और उसकाई मदन जात पडता था अधेर रहत रहते बदन पीला पड़ गया या सूरत-शल सभा रहुत ही डरावना मालूमपा एक काटन, मिट्टी की टिलिया ओर पीतल का लोटा यस यही उसकी विज्ञात थी कोठरी में और कुछ भी नशा । भूतनाथ व देख कर यह जिस ढग स चौका और कॉपा उसे देख भूतनाथ ने गर्दन नगो कर ली और तब धीरे से कहा आप उदिगे और निकल पलिय में आपको छुडान के लिए आया हू। बलभद--( आश्चर्य स ) क्या तू मुझे छुडान के लिए आया है । क्या यह वात सच है? भूतनाथ--जी हा। बलभद्र-मगर मुझे विश्वास नहीं होता। भूत-खैर इस समय आप यहास निकल चलिये किर ना कुछ सवाल-पाचाय या सोचविचार करना हा कीजियगा। बलभन्न-(खड़े होकर) कदाचित् यह बात सच हो । और अगर झूठ भी हो ला लाई जनही योदिम इस कैद में रहने के निस्वत जल्द मर जाना अच्छा समझता हूँ। भूतनाथ ने इस बात का कुछ जवाव न दिया और वलभद्रसिह को अपने पीछ -ौट आने का इशारा किया। बलभद्रासह इतना कमजोर हो गया था कि उसे मकान के नीच उतरना कठिन यउता था इसलिये भूतनाय न रसका हाय थाम लिया और नीचे उतार कर दर्वाज के बाहर लंगगा। मकाग के दवान के बाहर नाक गली भर में सन्नाटा छाया हुआ था क्योंकि यह मकान ऐसी अधेरी और सन्नाट की गली में था कि यहाशायद महीने में एक दफे किसी मला आदमी का गुजर नहीं होता होगा। पर्वाजे पर पहुँच कर भूतनाथ न बलभद्रसिदन पृ) पपाई पर सवार ह सकत है?' इसका जवाब में चलभदसिहन कहा, मुझ उचक कर सवार होन की ताकत तो नहीं । अभर घाडे पर पटा मागता गिरूगा नहीं, भूतनाथ नशमादान मकान के भीतर चोक में रख दिया और तब बलभदसिह को अग अढा लगा। थोड़ी ही दूर एक अगदीदा कसे काय घाड़ों की बागडार भाम बैदा हुआ था। भूतनाशक घाउ पर बलभदसिह का सवार करा के दूसरे चोडे पर आप जा बैठा और अपन तीनों आदम्न्यिा का कुछ कह कर वहां से रवाना हो गया। ग्यारहवां बयान - गन बहुत फन वाकी थी जब बेगम नौरतन और जमालों की बेहोशी दूर हुई। गम-(चारा तरफ देख पर) हैं यहाँ तो बिल्कुत उधकार हो रहा है ! जमाला तू ६हा है? भारतन-जमालो नी गई है। वेगम क्यों? गौर-जब हम दानों होश में आई तो यहाँ बिल्कुल अकार देख कर घराने लगी। नीव गौक में कुछ रोशनी गलूम हो थी जमाला ने झाक कर देखा तो यहाँ वाला मादान चौक मनलता पाया, आइट लन पर जब मालूम हुआ कि नीचे कोई भी नहीं है तो शमादान तेन के लिए नीच गई है। चेगम-हाय यह क्या हुआ 7 देवकीनन्दन खत्री सनम ७००