पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७०९

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नौरतन-पहिले राशनी आने दो तो कहूगो ला जमाला आ गई। वेगम--क्यों चहिन जमालो क्या नीचे बिल्कुल सन्नाटा हे? जमालो-शमादा जमीन पर रखकर) हा बिल्कुल सन्नाटा है तुम्हारे सर आदमी भी न मालूम कहॉ गायर हो गये। देगम-हाय हाय यहाँ तो दोनों आलभारिया टूटी पड़ी है हि है मालूम होता है कि कागज सभी जलाकर राख कर दिये गये !(एक आलमारी के पास जाकर और अच्छी तरह देखकर ) यस सर्वनाश हो गया ताज्जुब यह है कि उसने मुझ जीता क्यों छोड दिया ! दोनों आलमारिया आर उनकी चीजो की ख्राची देखकर बेगम की दशा पागलों जैसी हो गई। उसकी आखों में ऑसू जारी था और वह घबरा कर चारो तरफ घूम रही थी। थाड़ी ही देर में सवेरा हो गया और तब वह मकान के नीचे आई। एक कोठरी के अन्दर सक्ई आदमियों के चिल्लाने की आवाज सुनाई पड़ी। आवाज से वह पहिचान गई कि उसके सिपाही लोग उसम बन्द है। जब जजीर खोली तो देसम्याहा निकल और धवराहट के साथ चारा तरफ देखने लग। बेगम के पास जाने के पहिले है। भूतनाथ ने इन आदमियों को तिलिस्मी खजर की मदद से बेहोश करके इस कोठरी के अन्दर बन्द कर दिया था। बेगम ने सभों स बहशी का सवर पूछा जिसके जवाय में उन्होंने कहा कि 'एक आदमी ने आकर एक खजर यकायक हम लोगों के बदन स लगाया, हम लोग कुछ भी न साप सके कि वह पागल है या चोर बस एकदम बेहोश हो गये आर तनाबदन की सुघ जाती रही। फिर क्या हुआ यह हम नहीं जानते जब हाश में आय तो अपने को काठरी के अन्दर पाया। इसके बाद देगम न उन लोगा से कुछ भी न पूछा और नारतन नथा जमालो को साथ लकर ऊपर वाले उस खण्ड में चली गई जहाँ बलमद्रामिड कैद धा! जब बगम ने उस कोठरी को खुला पाया और बलभद्रसिह को उसमें न देखा तब और हताश हो गई और जमाला की तरपादख कर बोली, "बहिन तुमने सच कहा था कि राजा वीरन्द्रसिह के पक्षपातियों का मनोरमा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती /दखा भूतनाथ क पास भी वैसा ही तिलिस्मी खजर मौजूद है और उस खजर की चालत उस जा काम किया उसे भी तुम दध चुकी हो ? अगर में इसका बदला भूतनाथ से लिया भी हू तो नहीं लमकती क्योंकि अब न तो मेर कब्जे में वलभदासह रहा और न वे संबूत रह गये जिनकी बदोलत में भूतनाथ का दया सकती थीं। हाथ, एक दिन वह था कि मेरी सूरत दख कर भूतनाथ अधमा हो जाता था और एक आज का दिन है कि मैं भूतनाथ का शुरन भी नहीं कर सकती न मालून इस रकान का और मेरा पता उसे कैसे मालूम हुआ और इतना कर गुजरने पर भी उपन मेरी जान क्यों छोड दी नि सन्दह इसमें भी कोई भेद है। अगर उसने मुझ छोड दिया तो सुखी रहने के लिए नहीं बल्कि इसमें भी उसन कुछ अपना फायदा सोचा होगा।" ज्यालो---शक ऐसा ही शुक्र करो कि वह तु हारी दोलत नहीं ले गया नहीं तो बड़ा ही अन्धेर हो जाता और तुम्न दुकडे-टुकर को मोहताजो बालो किन्नर यो किणसिह की जान कदापि नहीं बच ली। अगर-पेशक एसा ही है, अब तुम्हारी क्या राय हे ? जमालो--परी राय तो यही है कि अब हुभ एक पल भी इस मकान में न ठहरो और अपनी जमा पूजी लेकर यहाँ से चल दा। तुम्हार पास इतनी दौलत है कि किसी दूसर शहर में आराम से रह कर अपनी जिन्दगी सिता सका जहा बीरेन्द्रसिह क ऐगारों को जाने की जरूरत न पडे ! देगम-तुम्हारी राय बहुत टीक है तो क्या तुम दानों मरा साथ दागी? जमाले-मैं जरूर तुम्हारा साथ दूगी। नौरतन-मैं मी एसी अवस्था तुम्हारा माथ नहीं घाउ सकती। जब सुख के दिनों में तुम्हारे साथ रही तो क्या अब दुख के जनान ने तुम्हारा साथ छाड दूगी' ऐसा नहीं हो सकता। वेगम- अच्छा तो अब निकल भागने की तयारी करनी चाहिय। जमाला--जरूस इतने ही में मकान के बाहर बहुत से आदनियां के शारगुल की आवाज इन तीनों का मालूम पड़ी। धेगम की आज्ञानुसार पता लगाने के लिए जमालानीचे उतर गई और थोड़ी ही देर मेलाट आफर बाली है, गजब हो गया। राज्य के सिपाहियो ननकान का पर लिया और तु ई गिरफ्तार करने क लिए आ रहे हैं । जमालो इससे ज्याद न कहनं पाई थी कि धडधडाते हुए बहुत से सरकारी सिपाही मकान के ऊपर चढ आए और उन्होंने बेगम नौरतन और जमाला को गिरफ्तार कर लिया। चन्द्रकान्ना सन्तातभान १५ ७०१