पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७१

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क के पास जाकर और एक तस्वीर पर उँगली रख कर) दुश्मनों के हाथ से सताये हुए मेरे पिता इसी मकान में मुझे लेकर । रहते थे, इस मकान के आगे यह छोटा सा बाग है जिसमें मै दुष्ट जसवन्त के साथ खेला करता था उस नालायक की तस्वीर भी यह देखिये मौजूद है। दीवान-जी हॉ और आगे यह देखिये आपके ब्याह के समय की तस्वीरे हे दोनों दोस्त यह पेड़ के नीचे बैठे है पण्डितजी आपकी शादी करा रहे है, चूंघट स मुंह छिपाय यह आपके बगल में कुसुम बैठी हुई है और यह दखिये आपके पिता के पीछे सिपाहियाना ठाठ से एक आदमी खडा है, आप पहिचानते है ? रनवीर-(गौर से देख कर) इसे तो मैं नहीं पहिचानता । दीवान-याद न होगा क्याफि बचपन में इसे आपने दो ही एक दफे देखा है नमाम फसाद इसी दुष्ट का मचाया हुआ है इसी की बदौलत आपके पिता रनवीर-हाँ हाँ कहिये----मेरे पिता क्या ? आप रुक क्यों गए ? दीवान--यह हाल पीछे कहेंगे पहिले इधर देखिये । रनवीर-नहीं पहिले मेरे पिता का हाल कह लीजिये। दीवान-(कुछ हुकूमत के दग पर) इसके लिये आपको जिद न करना चाहिये पहिले जो मैं कहता हू उस सुनिये। रनबीर-खैर जैसा मुनासिब समझिये। दीवान-इधर आइये पहिले इस तरह की तस्वीरों से शुरू कीजिये । चीरसन-(यकायक रोक कर) सुनिये तो !यह शोर गुल की आवाज कैसी आ रही है ? बीरसेन के टोकने से कुसुमकुमारी दीवान साहब और रनवीरसिह भी चौक पडे और कान लगा कर सुनने लगे। पहर रात से ज्यादे जा चुकी थी। तीनों आदमी दीवान साहब की बातें सुनने और तस्वीरों के देखने में ऐसा मग्न हो रहे थे कि तनोवदन की सुध भुला बैठे थे मगर इस शोर गुल की आवाज न उन लोगों को दीवान साहब की यातों और तस्वीरों का आनन्द नहीं लेन दिया लाचार चारो आदमी कमरे के बाहर निकल आये और उस तरफ देखने लगे जिधर से 'भार मार की आवाज आ रही थी। पाँच सात लौडियों बदहवास रोती और चिल्लाती हुई वहा पहुंची जहाँ ये चारों इस बात का पता लगाने के लिये खडे थे कि शोरगुल की आवाज कहॉस और क्यों आ रही है। ये लौडिया खून से तरबतर हो रही थी इनके पैर खौफ से कॉप रहे थे और इनकी आवाज घबराहट से लडखडा रही थी। दीवान-यह कैसा हगामा मचा हुआ है ? तुम लोगों की ऐसी दशा क्यों हो रही है ? एक लौडी-हमारे बहुत से दुश्मन हाथ में नगी तलवारे लिये महल में आ पहुचे हैं न मालूम कहाँ से और किस राह से आये है। यह कह कह कर लौडी गुलामों को मार रहे है कि यही कुसुम है यही रनवीर है कई लोडी और गुलामों की लाशें इधर उधर पड़ी तडप रही है और हम लोगों की यह दशा हो गई है। यह सुन कर दीवान साहब सोच में पड़ गए रनवीरसिह को बहादुरी का जोश चढ आया वीरसेन का बदन गुस्से के मारे कापने लगा और बेचारी कुसुमकुमारी रनवीरसिह को खाली हाथ देख अफसोस करने लगी। इस समय केवल बीरसेन की कमर से एक तलवार लटक रही थी जिसे रनवीरसिह ने फुर्ती से निकाल लिया और उस तरफ बढे जिधर से घबडाई हुई लौडियों आई थी। रनबीरसिह को इस तरह जाते देख बीरसेन और दीवान साहब खाली ही हाथ उनक पीछ दौडे मगर दूर जाने की नौबत न आईक्योंकि दुश्मनों का झुण्ड धूम और फसाद मचाता हुआ उसी जगह आ पहुधा जहाँ ये लोग थे। उन लोगों ने चारो तरफ से इनको घेर लिया। बवारे खाली हाथ दीवान साहय एक ही हाथ तलवार का खाकर जमीन पर गिर पडे। बीरसेन ने अपने पर वार करते हुए एक दुश्मन के हाथ से तलवार छीन ली और तीन चार दुष्टों को बात की बात में यमलोक पहुचा दिया। रनवीरसिह की तलवार ता इस समय कालरूप हा रही थी जिसकी गर्दन के साथ छू जाती उसका सर काट कर दूर फेक देती थी, जिसके माहे पर बैठ जाती उसका साफ जनेवा काट कर दो टुकडे कर देती थी जिसकी खोपड़ी पर पहुँच जाती उसकी कमर तक फकडी की तरह काटती हुई उतर जाती थी। स्नमीरसिह और बीरसेन के बदन पर भी छोटे छोटे कई जख्म लगे मगर इनकी बेतरह काटने वाली तलवारों ने थोड़ी ही देर में दुश्मनों को परेशान कर दिया और विश्वास दिला दिया कि जो थोड़ी देर भी वहाँ ठहरगा बेशक अपनी जान से हाथ धो बैठेगा। भागने की फिक्र में कोई तो छत के नीचे गिर कर हाथ पैर तोड़ बैठा, कोई सीदियो ही पर लुड़करतो.हुआ नीचे पहुच कर बदहवास हो गया, और कोई अपनी जान सलामत लेकर भाग निकला। कुसुम कुमारी १०७९