पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७१०

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बारहवां बयान काशीपुरी से निकल कर भूतनाथ ने सीधे चुनारगढ़ का रास्ता लिया । पहर दिन चढे तक भूतनाथ और घलभद्रसिह घोडे पर सवार बरावर चले गये और इस बीच में उन दोनों में किसी तरह की बातचीत न हुई। जब वे दोनों जगल के किनारे पहुचे ता बलभद्रसिह ने भूतनाथ से कहा, अव म थक गया हू, घोड़ पर मजबूती के साथ नहीं बैठ सकता। वर्षों की कैद ने मुझे बिल्कुल बेकार कर दिया। अब मुझमे दस कदम चलने की हिम्मत न रही, अगर कुछ देर तक कही ठहर कर आराम कर लेते तो अच्छा होता।' भूत-बहुत अच्छा थोड़ी दूर और चलिये, इसी जगल में किसी अच्छे ठिकाने जहाँ पानी भी मिल सकता हो,ठहर कर आराम कर लेंगे। बलभद्र-अच्छा तो अब घोडे को तेज मत चलाओ। भूतनाथ-( घोडे की तेजी कम करके ) बहुत खूब । यलमद-क्यों भूतनाथ, क्या वास्तव में तुमने मुझे कैद से छुडाया है या मुझे धोखा हा रहा है ? भूत-(मुस्कुराकर ) क्या आपको इस मैदान की हवा मालूम नहीं होती? या आप अपने को घोड़ पर सवार स्वतन्त्र नहीं देखते ? फिर ऐसा सवाल क्यों करते है? यलभद्र-यह सब कुछ ठीक है मगर अभी तक मुझे विश्वास नहीं होता कि भूतनाथ के हाथों से मुझ मदद पहुचेगी यदि तुम मेरी मदद किया ही चाहते तो क्या आज तक मै कैदखाने ही में पड़ा सडा करता क्या तुम नहीं जानत थे कि मैं कहा और किस अवस्था में हू? भूतनाथ-बेशक मैं नहीं जानता था कि आप कहाँ और कैसी अवस्था में है। उन पुरानी बातों को जाने दीजिय मगर इधर जब से मैंने आपकी लडकी श्यामा (कमलिनी) की तावेदारी की है तब से बल्कि इससे भी बरस डढ बरस पहिले ही से मुझे आपकी खबर न थी। मुझे अच्छी तरह विश्वास दिलायागयाकि अब आप इस दुनिया में नहीं रहे। यदि आज के दो महीने पहिले भी मुझे मालूम हो गया होता कि आप जीते है और कहीं कैद है तो में आपको कैद से छुड़ाकर कृतार्थ हा गया होता। बलभद्र-( आश्चर्य से ) क्या श्यामा जीती है? भूतनाथ हा जीती है। बलभद्र-तो लाडिली भी जीती होगी? भूत-हॉ वह भी जीती है। थल-ठीक है, क्योंकि वेदोनों मेरे साथ उस समय जमानिया में न आई थीं जब लक्ष्मीदेवी की शादी होने वाली थी। पहिले मुझ लक्ष्मीदेवी के भी जात रहने की आशा न थी, मगर कैद होने के थोडे ही दिन बाद मैने सुना कि लक्ष्मीदेवी जोती है और जमानिया की रानी तथा मायाराना कहलाती है। भूत-लक्ष्मीदेवी के बारे में जो कुछ आपने सुना सब झूठ है जमाने में बहुत बड़ा उलट फेर हो गया जिसकी आपको कुछ भी खबर नहीं। वास्तव में भायारानी कोई दूसरी ही औरत थी और लक्ष्मीदेवी ने भी बड़े बड़े दुख भोगे परन्तु ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए जिसने दु ख के अथाह समुद्र में डूबते हुए लक्ष्मीदेवी के बेड को पार कर दिया। अब आप अपनी तीनों लडकियों को अच्छी अपस्था में पावेंगे। मुझे यह बात पहिले मालूगन थी कि मायारानी वास्तव में लक्ष्मीदेवी नहीं है। बलभद्र-क्या वास्तवमें ऐसी ही बात है ? क्या सचमुच मै अपनी तीनों बेटियों को देखूगा ? क्या तुम मुझ पर किस तरह का जुल्म न करागे और मुझे छोड़ दोग? भूत-अव मै किस तरह अपनी बातों पर आपको विश्वास दिलाऊ क्या आपके पास कोई ऐसा सबूत है जिससे मालूम हो कि मैंने आपके साथ बुराई की? बलभद्र-सबूत तो मरे पास कोई भी नहीं मगर मायारानी के दारोगा और जैपाल की जुवानी मन तुम्हारे विषय में बड़ी-बड़ी बातें सुनी थी और कुछ दूसरे जरिये से भी मालूम हुआ है। भूत-तो वस या तो आप दुश्मनों की बातों को मानिए या मेरी इस खैरखाही को दखिए कि कितनी मुश्किल से आपका पता लगाया और किस तरह जान पर खेल कर आपको छुडा ले चला हूँ । बलभद-(लम्बी सास लेकर ) खैर जो हो आज तुम्हारी बदोलत में किसी तरह की तकलीफ न पाकर अपनी तीनो देवकीनन्दन खत्री समग्र ७०२