पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७११

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लड़कियों से मिलूगा तो तुम्हारा कसूर यदि कुछ हो तो भी मैं माफ करता हूँ। भूत-इसके लिए मै आपको धन्यवाद देता हू। लीजिए यह जगह बहुत अच्छी है घने पेड़ों की छाया है और पमडण्डी से बहुत हटकर भी है । बलभद्र-ठीक तो है अच्छा तुम उतरो और मुझे भी उतारी ! दोनों ने घोडा रोका, भूतनाथ घोडे से नीचे उतर पड़ा और उसकी बागडोर एक डाल से अडाने के बाद धीरे से बलभदसिह को भी नीचे उतारा जीनपोश बिछाकर उन्हें आराम करने के लिए कहा और तब दोनों घोड़ों की पीठ खाली करके लम्बी बागडोर के सहारे एक पेड के साथ बाध दिया जिसस वे भी लोट-पोट कर थकावट मिटालें और घास चरें। यहाँ पर भूतनाथ ने बलभदसिह की बड़ी खातिर की। ऐयारी के बटुए में से उस्तुरा निकाल कर अपने हाथ से इनकी हजामत बनाई. दाढी मूडी, कैची लगाकर सर के बाल दुरुस्त किए इसक बाद स्नान कराया और बदलने के लिए यद्योपवीत दिया आज बहुत दिनों के बाद बलभद्रसिह ने चश्मे के किनारे बेठकर सन्ध्यावन्दन किया और देर तक सुर्य भगवान की स्तुति करते रहे। जब सब तरह स दोनों आदमी निश्चिन्त हुए तो भूतनाथ न सुर्जी * में से कुछ मेवा निकाल कर खाने के लिए बलभद्रसिह को दिया और आप भी खाया। अब वलभद्रसिह को निश्चय हो गया कि भूतनाथ मरे साथ दुश्मनी नहीं करता और उसने नेकी की राह से मुझे भारी कैदखाने से छुड़ाया है। बलभद्र-गदाधरसिह शायद तुमने थोडे ही दिनों से अपना नाम भूतनाथ रक्खा है? भूतनाथ-जी हा, आज कल मैं इसी नाम से मशहूर हूँ। बलमद-अस्तु मै बडी खुशी से तुम्हें धन्यवाद देता हूक्योंकि अब मुझे निश्चय हो गया कि तुम मरे दुश्मन नहीं हो। भूत-(धन्यवाद के बदले सलाम करके ) मगर मेरे दुश्मनों ने मेरी तरफ से आपके कान बहुत भरे है और वे बातें एसी है कि यदि आप राजा वीरेन्दसिह के सामन उन्हें कहेंगे तो मैं उनकी आँखों से उतर जाऊगा! बलभद-नहीं नहीं में प्रतिज्ञापूर्वक कहता हूँ कि तुम्हारे विषय में कोई ऐसी बात किसी के सामने न कहूगा जिसस तुम्हारा नुकसान हो। भूतनाथ-(पुन सलाम करके) और मैं आशा करता हू कि समय पड़ने पर आप मेरी सहायता भी करेंगे? बलभद्र-मै सहायता करने योग्य तो नहीं हू मगर हा यदि कुछ कर सकूगा तो अवश्य करुगा। भूत-इत्तिफाक से राजा बीरेन्द्रसिह के ऐयारों ने जैपालसिह का गिरफ्तार कर लिया है जो आपकी सूरत बन कर लक्ष्मीदेवी को धोखा देने गया था। जब उसे अपने बचाव का कोई ढग न सूझा तो उसने आपके मार डालने का दोष मुझ पर लगाया । मैं स्वप्न में भी नहीं सोच सकता था कि आप जीते है परन्तु ईश्वर को ध्यान देना चाहिये कि यकायक आपके जीत रहने का शक मुझे हुआ और धीर-धीरे वह पक्का होता गया तथा मैं आपकी खोज करने लगा। अव आशा है कि आप स्वयम् मेरी तरफ से जैपालसिह का मुंह तोडगे। बलभद्र-( क्रोध से ) जैपाल मेरे मारने का दोष तुम पर लगा क आप बचा चाहता है ? भूतनाथ जी हाँ। बलभद्र-उसकी ऐसी की तैसी ! उसने तो मुझ ऐसी-ऐसी तकलीफें दी है कि मेरा ही जी जानता है। अच्छा यह बताओ इधर क्या-क्या मामले हुए और राजा वीरेन्द्रसिह को जमानिया तक पहुचने की नाक्त क्यों आई? भूतनाथ न जब से कमलिनी की तावेदारी कबूल की थी कुछ हाल कुँअर इन्द्रजीतसिह आनन्दसिह मायारानी दारोगा कमलिनी, दिग्विजयसिह और राजा गापालसिह वगैरह का बयान किया मगर अपने और जैपालमिह के मामले में कुछ घटा वढा कर कहा। बलभदसिह ने बर्ड गौर और ताज्जुब से सब बातें सुनी और भूतनाथ की खैरखाही तथा मर्दानगी की बड़ी तारीफ की। थोड़ी देर तक और बातचीत होती रही इसके बाद दोनों आदमी घोड़े पर सवार हो चुनारगढ की तरफ रवाना हुए और पहर भर के बाद उस तिलिस्म के पास पहुब जो चुनार गढ से थोड़ी दूरी पर था और जिसे राजा वीरेन्द्रसिह ने फतह किया (तोडा ) था। काशी से चुनारगढ़ बहुत दूर न होने पर भी इन दोनों को वहा पहुचने में दर हो गई। एक तो इसलिए कि दुश्मनों के डर से सदर राह छोड़ भूतनाथ चक्कर दता हुआ गया था दूसरे रारने में ये दोनों बहुत देर तक अटके रहे तीसरे कमजोरी के सबब स बलभदसिह घाडे को तेज चला भी नहीं सकने थे।

  • एक विशेष प्रकार का थैला।

चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १५ ७०३