पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७१३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दि चन्द्रकान्ता सन्तति सोलहवाँ भाग पहिला बयान 1 अब हम अपने पाठकों को पुन जमानिया के तिलिस्म में ले चलते है और इन्दिरा का बचा हुआ किस्सा उसी की जुबानी सुनवाते है जिसे छोड दिया गया था। इन्दिरा ने एक लम्बी सॉस लेकर अपना किस्सा यों कहना शुरू किया- इन्दिरा-जब मैं अपनी माँ की लिखी चीठी पढ़ चुकी तो जी में खुश होकर सोचने लगी कि ईश्वर चाहेगा तो अब मैं बहुत जल्द अपनी माँ से मिलूंगी और हम दोनों को इस कैद से छुटकारा मिलेगा, अब केवल इतनी ही कसर है कि दारोगा साहब मेरे पास आवें और जो कुछ वे कहें मैं उसे पूरा कर दू। थोड़ी देर तक सोच कर मैंने अन्ना से कहा, "अन्ना, जो कुछ दारोगा साहब कहें उसे तुरन्त करना चाहिये।' अन्ना-नहीं बेटी तू भूलती है, क्योंकि इन चालबाजियों को समझने लायक अभी तेरी उम्र नहीं है। अगर तू दारोगा के कहे मुताबिक काम कर देगी तो तेरी माँ और साथ ही इसके तू भी मार डाली जायेगी, क्योंकि इस में कोई सन्देह नहीं कि दारोगा ने तेरी मॉ से जबर्दस्ती यह चौती लिखवाई है। मैं-तब तुमने इस चीठी के बारे में यह कैसे कहा कि मैं तेरे लिये खुशखबरी लाई हू? अन्ना-'खुशखबरी से मेरा मतलब यह न था कि अगर तू दारोगा के कहे मुतायिक काम कर देगी तो तुझे और मेरी मॉ को कैद से छुट्टी मिल जायेगी बल्कि यह था कि तेरी माँ अभी तक जीती-जागती है इसका पता लग गया। क्या तुझे यह मालूम नहीं कि स्वयम् दारोगा ही ने तुझे कैद किया है ? मैं यह तो मैं खुद तुझ से कह चुकी है कि दारोगा ने मुझे धोखा देकर कैद कर लिया है। अन्ना-तो क्या तुझे छोड देने से दारोगा की जान बच जायगी? क्या दारोगा साहब इस बात को नहीं समझते कि अगर तू छूटेगी तो सीधे राजा गोपालसिह के पास चली जायगी और अपना तथा लक्ष्मीदेवी का भेद उनसे कह देगी? उस समय दारोगा का क्या हाल होगा। मै-ठीक है, दारोगा मुझे कभी न छोडेगा । अन्ना-बेशक कभी न छोडेगा। वह कम्बख्त तो अब तक तुझे मार डाले होता, मगर अब निश्चय हो गया कि उसे तुम दोनों से अपना कुछ मतलब निकालना है, इसीलिए अभी तक कैद किये हुए है, जिस दिन उसका काम हो जायगा उसी दिन तुम दोनों को मार डालेगा। जब तक उसका काम नहीं होता तभी तक तुम दोनों की जान बची है। (चीठी की तरफ इशारा करके ) यह चीठी उसने इसी चालाकी से लिखवाई है जिसे तू उसका काम जल्द कर दे। मैं-अन्ना तू सच कहती है. अब मैं दारोगा का काम कमी न कसेंगी चाहे जो हो। अन्ना-अगर तू मेरे कहे मुताबिक करेगी तो नि सन्देह तुम दोनों की जान बच रहेगी और किसी न किसी दिन तुम दोनों को कैद से छुट्टी भी मिल जायेगी। मैं-बेशक जो तू कहेगी वहीं मैं करूंगी। अन्ना-मगर मै डरती है कि अगर दारोगा तुझे धमाकाएगा या मारे पीटेगा तो तू मार खाने के डर से उसका काम जरुर कर देगी। मैं-नहीं नहीं कदापि नहीं, अगर वह मेरी बोटी-बोटी काट कर फेंक दे तो भी मै तेरे कहे बिना उसका कोई काम न करूगी। अन्ना-ठीक है, मगर साथ ही इसके यह भी कह न दीजियो कि अन्ना कहेगी तो मै तेरा काम कर दूगी। मैं-नहीं सो तो न कहूगी मगर कहूगी क्या सो तो बताओ? चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १६ ७०५