पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७१६

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R whe रुमाल इसमें फसकर रह गया शायद अधेरे में उसने इस बात का ख्याल न किया हो, और देख इस कपड़े के फस जाने के कारण दर्वाजा भी अच्छी तरह बैठा नहीं है ताज्जुब नहीं कि वह दर्वाजा खटके पर बन्द होता हो और तख्ता अच्छी तरह न बैठने के कारण खटका भी बन्द न हुआ हो। वास्तव में जो कुछ अन्ना ने कहा वही बात थी क्योंकि जब उसने उस रुमाल को अच्छी तरह पकडकर अपनी तरफ बँचा तो उसके साथ लकडी का तख्ता भी खिंच कर हम लोगों की तरफ चला आया और दूसरी तरफ जाने के लिये रास्ता निकल आया। हम दोनों आदमी उस तरफ चले गये और एक कमरे में पहुचे। उस लकडी के तख्ते में जो पेंच पर जड़ा हुआ था और जिसे हटा कर हम लोग उस पार चले गये थोदूसरी तरफ पीतल का एक मुट्ठा लगा हुआ था अन्ना ने उस पकड़ कर खैचा और वह दर्वाजा जहा का तहा खट से चैठ गया। अब हम दोनों आदमी जिस कमरे में पहुचे वह बहुत बड़ा था। सामने की तरफ एक छोटा सा दर्वाजा नजर आया और उसके पास जाने पर मालूम हुआ कि नीचे उतर जाने के लिए सीढिया बनी हुई है। दाहिनी और वाई तरफ की दीवार में छोटी छोटी कई खिडकियां बनी हुई थी दाहिनी तरफ की खिडकियों में से एक खिडकी कुछ खुली हुई थी मैने और अन्ना न उसमें झाककर देखा तो एक मरातिय नीचे छोटा सा चौक नजर आया जिसमें साफ सुथरा फर्श लगा हुआ था। ऊची गद्दी पर कख्यख्त दारोगा बैठा हुआ था उसके आगे एक शमादान जल रहा था और उसके पास ही में एक आदमी कलम-दवात और कागज लिये बैठा हुआ था। हम दोनों आदमी दारोगा की सूरत देखते ही चौके और डरकर पीछे हट गए। अन्ना ने धीरे से कहा, 'यहा भी वही बला नजर आती है कहीं ऐसा न हो कि वह कम्बख्त हम लोगें को देख ले या ऊपर चढ आवे। इतना कहकर अन्ना सीढो की तरफ चली गई और धीरे से सीडी का दर्वाजाखेच कर जञ्जीर चढा दी। वह चिराग जो अपने कमरे में से लेकर यहा तक आये थे एक कोने मे रखकर हम दोनों फिर उसी खिडकी के पास गये और नीचे की तरफ झाक कर देखने लगे कि दारोगा क्या कर रहा है। दारोगा के पास जो आदमी बैठा था उसने एक लिखा हुआ कागज हाथ में उठा कर दारोगा से कहा, जहा तक मुझसे बन पड़ा मैने इस चीठी के बनाने में बड़ी मेहनत की। दारोगा-इसमें कोई शक नहीं कि तुमने ये अक्षर बहुत अच्छे बनाये हैं और इन्हें देख कर कोई यकायक नहीं कह सकता कि यह सर्दू का लिखा हुआ नहीं है। जब मैने वह पत्र इन्दिरा को दिखाया तो उसे भी निश्चय हो गया कि यह उसकी मा के हाथ का लिखा हुआ है मगर जो गौर करके देखता हू तो सर्दू की लिखावट में और इसमें थोडा फर्क मालूम पड़ता है। इन्दिरा लडकी है, वह इस बात को नहीं समझ सकती मगर इन्द्रदेव जय इस पत्र को देखेगा तो जरूर पहिचान जायगा कि सर्दू के हाथ का लिखा नहीं है बल्कि जाल, बनाया गया है। आदमी-ठीक है अच्छा तो मै इसके बनाने में एक दर्फ और मेहनत करुंगा क्या करू सर्दू की लिखावट ही ऐसी टेढी-मेढी है कि ठीक नकल नहीं उतरती तिसमें इस चीठी में कई अक्षर ऐसे लिखने पड़ जो कि मरे देखे हुए नहीं है। केवल अन्दाज ही से लिखे हैं। दारोगा-ठीक है ठीक है इसमें शक नहीं कि तुमने बड़ी सफाई से इसे बनाया है, खैर एक दफे और मेहनत करो मुझे आशा है अबकी दफे बहुत ठीक हो जायगा। (लम्बी सास लेकर) क्या कहें कम्बख्त स! किसी तरह मानती ही नहीं। उसे मेरी बातों पर कुछ भी विश्वास नहीं होता यद्यपि कल मैं उसे फिर दिलासा दूंगा अगर उसने मेरे दम में आकर अपने हाथ से चीठी लिख दी तो इस काम को हो गया समझो,नहीं तो तुम्हें पुन मेहनत करनी पड़ेगी। स! और इन्दिरा ने मेरे कहे मुताबिक चीटी लिख दी तो मैं बहुत जल्द उन दोनों को मार कर बखेडा ते करूगा क्योंकि मुझे गदाधरसिह ( भूतनाथ) का डर बरावर बना रहता है, वह स! और इन्दिरा की खोज में लगा हुआ है और उसे घडी घडी मुझी पर शक होता है। यद्यपि मै उससे कसम खा कर कह चुका है कि मुझे दोनों का हाल कुछ भी मालूम नहीं है मगर उर्स विश्वास नहीं होता। क्या करु, लाखों रूपये दे देने पर भी मै उसकी मुट्ठी में फसा हुआ है, यदि उसे जरा भी मालूम हो जायगा कि सर्दू और इन्दिरा को मैंने केद कर रक्खा है तो वह बडा ही ऊधम मचावेगा और मुझे बर्बाद किये बिना न रहेगा। आदमी-गदाधरसिह तो आज भी मिला था। दारोगा-(चौक कर) क्या वह फिर इस शहर में आया है । मुझसे तो कह गया था कि मैं दो-तीन महीने के लिये जाता है, मगर वह तो दो-तीन दिन भी गैरहाजिर न रहा। आदमी-वह बडा शैतान है उसकी बातों का कुछ भी विश्वास नहीं हो सकता और इसका जानना तो बडा ही कठिन है कि वह क्या करता है क्या करेगा या किस धुन में लगा हुआ है। देवकीनन्दन खत्री समग्र 05