पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७१७

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दारोगा--अच्छा तो मुलाकात होने पर उससे क्या क्या बात हुई ? आदमी-मैं अपने घर की तरफ जा रहा था कि उसने पीछे से आवाज दी 'ओ रघुबरसिंह, ओ जैपालसिह ! * दारोगा-बड़ा ही बदमाश है किसी का अदब लेहाज करना तो जानता ही नहीं | अच्छा तब क्या हुआ रघुबर-उसकी आवाज सुनकर मै रुक गया, जब वह पास आया तो बोला, आज आधी रात के समय में दारोगा साहब से मिलने जाऊगा उस समय तुम्हें भी वहा मौजूद रहना चाहिये। बस इतना कहकर चला गया । दारोगान्तो इस समय वह आता ही होगा । रघुबर-जरूर आता होगा। दारोगा कम्बख्त ने नार्को दम कर दिया है। इतने ही में बाहर से घटी बजने की आवाज आई. जिसे सुन दारोगा ने रघुबरसिह स कहा 'देखो दरबान क्या कहता है मालूम होता है गदाधरसिह आ गया। रघुवरसिह उठकर बाहर गया और थोड़ी ही देर में गदाधरसिह को अपने साथ लिये हुए दारोगा के पास आया। गदाधरसिह को देखते ही दारोगा उठ खडा हुआ और बड़ी खातिरदारी और तपाक के साथ मिलकर उसे अपने पास बैठाया। दारोगा-(गदाधरसिह स ) आप कब आये । गदाधर--मैं गया कब और कहा था। दारोगा-आपही ने कहा था कि मैं दो-तीन महीने के लिये कहीं जा रहा हू ! गदाधर-हा कहा तो था मगर एक बहुत बड़ा सयब आ पड़ने से लाचार होकर रुक जाना पड़ा। दारोगा-क्या वह सबब मै भी सुन सकता है। गदाधर-हा हा आप ही के सुनने लायक तो वह सबब है क्योंकि उसके कर्ता-धर्ता भी आप ही हैं। दारोगा-तो जल्द कहिये। • गदाधर-जाते ही जाते एक आदमी ने मुझे निश्चय दिलाया कि सर्दू और इन्दिरा आपही के कब्जे में है अर्थात् आपही ने उन्हें कैद करके कहीं छिपा रक्खा है। - दारोगा-(अपने दानों कानों पर हाथ रख के ) राम राम 'किस कम्बख्त ने मुझ पर यह कलक लगाया? नारायण नारायण ! मेरे दोस्त, मै तुम्हें कई दफे कसमें खाकर कह चुका हू कि सर्दू और इन्दिरा के विषय में कुछ भी नहीं जानता मगर तुम्हें मेरी बातों का विश्वास ही नहीं होता। गदाघर-न मेरी बातों पर आपको विश्वास करना चाहिए और न आपकी कही हुई बातों को मैं ही ब्रह्मवाक्य समझ सकता हू। बात यह है कि इन्द्रदेव को मैं अपने सगे भाई से बढ के समझता हू, चाहे मैने आप से रिश्वत लेकर बुरा काम क्यों न किया हो मगर अपने दोस्त इन्द्रदेव को किसी तरह का नुकसान पहुचने न दूगा। आप स! और इन्दिरा के बारे में बार बार कसमें खाकर अपनी सफाई दिखाते हैं और मैं जब उन लोगों के बारे में तहकीकात करता हू तो बार-बार यही मालूम पड़ता है कि वे दोनों आपके कब्जे में हैं अस्तु आज मैं एक आखिरी बात आपसे कहने आया हू, अबकी दर्फ आप खूब अच्छी तरह समझ बूझ कर जवाब दें। दारोगा-कहो कहो क्या कहते हो? मैं सब तरह से तुम्हारी दिलजमई करा दूगा गदाघर-आज मैं इस बात का निश्चय कर के आया हू कि इन्दिरा और सर्दू का हाल आपको मालूम है अस्तु साफ साफ कहे देता है कि यदि वे दोनों आपके कब्जे में हो तो ठीक-टीक बता दीजिए उनको छोड़ देने पर इस काम के बदले में जो कुछ आप कहें मै करने को तैयार है लेकिन यदि आप इस बात से इनकार करेंगे और पीछे साबित होगा कि आप ही ने उन्हें कैद किया था तो मै कसम खाकर कहता हू कि सबसे बढकर बुरी भौत जो कही जाती है वही आपके लिए कायम की जायगी। दारोगा-जरा जुबान-सम्हाल कर बातें करो। मै तो दोस्ताना ढग पर नरमी के साथ तुमसे बातें करता हू और तुम तेज हुए जाते हो? गदाधर-जी मै आपके दोस्ताना ढग को अच्छी तरह समझता हू, अपनी कसमों का विश्वास तो उसे दिलाइए जो आपको केवल बाबाजी समझता हो ! मैं तो आपको पूरा झूठा-येईमान और विश्वासघाती समझता हू और आपका कोई हाल मुझसे छिपा हुआ नहीं है। जब मैंने कलमदान आपको वापस किया था तब भी आपने कसम खाई थी कि तुम्हारे

  • जैपालसिह बालासिह और रघुबरसिंह ये सब नाम उसी नकली बलमदसिह के है।

चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १६ ७०९