पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

Gege एक खुला हुआ दर्वाजा लाघ कर एक छाटी सी काडरी में पहुच जिसरे ऊपर चढ जान के लिए दस-बारह सीटिया बनी हुई थी। दोना भाई सीढियों पर चढकर ऊपर के कमर में पहुये जिसकी लम्बाई पचाभ हाय जोर चौडाइ गालीस हाथ म कम न होगी। यह कमरा काहे का था एक छोटा सा बनावटी बागीचा मन मोहने वाला या । यद्यपि इस फूल यूटों के जितो पेड लग हुए थ,सय वनावटी थे मगर फिर भा जान ण्डनता था कि फूलों की खुशबू से यह कमरा अच्छी तरह यसा हुआ है। इस कमर की त में बहुत मोट-भोट शीश लग हुए थ जिसमें मबराक-टोक पहुचन बानो रोशनी के कारण कभर भर में उजाला हो रहा था। व शीश याडे या चिपटे न थे बल्कि गोल गुम्यज की तरह दन हुए थे। इस घाट बनावटो बगीच में छाटी छाती बहुत खूबसूरत क्यारिया ची हुई थी और उन क्यारियो क बारा तरफ की जमीन पत्थर के छाटे छाट रग बिग्गे टुकड़ों से बनी हुई थी। बीच में एक गालाम्बर (चबूतर। ) बना हुआ था और उसके ऊपर एक ओरत खडी हुई मालूम पड़ती थी जिसके बाए हाथ में एक तलवार दाहिने में हाय भर लम्बी एक ताली थी। 2 कुअर इन्द्रजीतसिह न तिलिस्मी खजर की राशनी बन्द करके आनन्दसिह की तरफ देखा और कहा यह औरत नि सन्देह लोहे या पीतल की बनी हुई होगी और यह ताली भी यही होगी जिसकी हम लोगों को जरूरत है मगर तिलिस्मी वाजे ने ता यह कहा था कि 'ताली किमी चलती फिरतीस प्राप्त कराग यह औरत तो चलती फिरती नहीं है खडी है। आनन्द-उसके पास तो चलिए दखं वह ताती कैसी है। इन्द्रजीत-चलो। दोनों भाई उस गोलाम्बर की तरफ बढ मगर उसके पास न जा सका तीन चार हाथ इधर ही थे कि एक प्रकार की आवाज के साथ वहा की जमीन हिली और गोलाम्बर ( जिस पर पुतली थी) तेजी से चक्कर खाने लगा और उसी के साथ वह नकली औरत (पुतली) भी घूमने लगी जिसके हाथ में तलवार और ताली थी। घूमने के समय उसका ताली वाला हाथ ऊचा हो गया और तलवार वाला हाथ आग की तरफ बढ़ गया जो उसके चक्कर की तेजी में चक्र का काम कर रहा था। आनन्द-कहिए भाई जी अब यह औरत या पुतली चलती फिरती हो गई या नहीं ? इन्द्रजीत-हा हो तो गई। आनन्द--अव जिस तरह हो सके इसके हाथ से ताली ले लेनी चाहिये गोलाम्बर पर जाने वाला तो तुरन्त दो टुकडे हो जायगा। इन्दजीत-(पीछे हटने हुए) देखें हट जाने पर इसका घूमना वन्द होता है या नहीं। आनन्द-(पीछ हट कर) दखिये गालाम्वर का घूमना वन्द हो गया बम यही काला पत्थर चार हाथ के लगभग चौडा जो इस गोलाम्बर के चारो तरफ लगा है असल करामात है इस पर पैर रखने ही से गोलाम्बर घूमन लगता है। (काले पत्थर के ऊपर जाकर ) देखिये घूमने लग गया (हट कर ) अब बन्द हो गया। अब समझ गया इस पुतली के हाथ से ताली और तलवार ले लेना कोई बड़ी बात नहीं। इतना कह कर आनन्दसिह ने एक छलाग मारी और काले पत्थर पर पैर रक्खे बिना ही कूद कर गोलाम्बर के ऊपर चले गय। गोलाग्वर ज्यों का त्यों अपने ठिकान जमा रहा और आनन्दसिह पुतली के हाथ से ताली तथा तलवार लेकर जिस तरह वहा गए थे उसी तरह कूद कर अपने भाई के पास चले आये और बाले- 'कहिये क्या मज मे ताली ले आए इन्द्रजीत-बेशक (ताली हाथ में लकर ) यह अजब ढग की बनी हुई है। (गोर स दख कर) इस पर कुछ अलर भी खुदे मालूम पडते है। मगर विना तेज रोशनी के इनका पढा जाना मुश्किल है । आनन्द-में तिलिस्मी खञ्जर की रोशनी करता हूँ आप पढिये । इन्द्रजीतसिह ने तिलिस्मी खञ्जर की राशनी में उसे पढा और आनन्दसिह को समझाया इसके बाद दानों भाई कूद कर उस गोलाम्बर पर चले गये जिस पर हाथ में ताली लिए हुए वह पुतनी खडी थी · ढूँढन और गौर से दजन पर दानों भाइयों का मालूम हुआ कि उसी पुतली के दाहिने पैर में एक छद ऐसा है जिसमें वः तलवार जो पुतली के हाथ से ली गई थी बखूबी घुस जाय। भाई की आज्ञानुसार आनन्दसिह ते वही पुराली वाली तलवार उस छेद में डात दो यहा तक कि पूरी तलवार छद के अन्दर चली गई और केवल उसका कब्जा बाहर रह गया। उस सग्य दोनों भाइयन मजबूती के साथ उस पुतली को पकड़ लिया। थोडी दर बाद गोलाम्बर के नीचे से आवाज आई और पहिले की तरह पुन वह गोलाम्बर पुतली सहित चूमने लगा। पहिल धीरे धीर मार फिर क श तेजी के माय पद मोल, पर घूमने लगा। उस समय दोनों भाइयों के हाथ उस पुाली के साथ ऐसे चिपक गये कि भालून होता या डाने से भो नहीं छूटेंगे। वह 1 1 चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १६ ७१९