पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७३

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दि ८ मर्द-कुसुम को तो हमारा एक दोस्त लेकर दूर निकल गया मगर फिर भी हम अपने को तब तक बचा हुआ नहीं समझ सकते जब तक यह न सुन लें कि चचलसिह पर कोई आफत न आई। (हाथ का इशारा करक) देखो उसी पेड के नीचे वे दोनों घोडे मौजूद है जिन पर सवार होकर हम और तुम भागेंगे और जहॉ तक जल्द हो सकेगा पटने पहुच कर अपनी जान बचावेंगे मगर देखो कालिन्दी, अब पटने पहुच कर कुसुम को अपने हाथ से मार कर अपनी प्रतिज्ञा जल्द पूरी कर लो जब तक वह जीती रहेगी हम लोग निश्चिन्त नहीं हो सकते। कालिन्दी-घर पहुचते ही मैं अपनी प्रतिज्ञा पूरी करूगी! अब तो पाठक समझ ही गए होंगे कि यह औरत कालिन्दी है और यह बिल्कुल बखेडा इसी का मचाया हुआ है, मगर यह मर्द कौन है ? इसका हाल आगे मालूम होगा। जब तक ये दोनों उस पीपल के नीचे पहुच कर घोडों पर सवार हों तब तक आइये हमलोग वीरसेन की खबर लें और मालूम करें कि बेहोश रनवीरसिंह और जख्मी दीवान साहव को उसी तरह छोडावे कहाँ गए या किस काम में उलझे । शहर के पिछली तरफ शहर से बाहर निकल जाने के लिये एक छोटा सा दर्वाजा था जो चोर दर्वाज के नाम से मशहूर था। इस दर्वाजे के बाहर निकलते ही जल से भरी हुईखाई मिलती थी और समय पर काम देने के लिये एक छोटी सी किश्ती भी बरावर इस जगह रहा करती थी। इस छोटे मगर मजबूत दर्वाजे की चौकसी बीस सिपाहियों के साथ चचलसिह नामी एक राजपूत करता था। वीरसेन ने यह सोच कर कि महारानी को ले जाने वाले दुश्मनो को किले से बाहर हो जाने का सुचीता इस चोरदाजे के और कोई नहीं हो सक्ता सीधे इसी तरफ का रास्ता लिया। रास्ते ही में बीरसेन का मकान भी था । यह फौज के सेनापति थे इसलिये इनका मकान आलीशान था और उसके चारो तरफ सैकड़ों फौजी सिपाही रहा करते थे मगर इस समय इन्होंने अपने मकान की तरफ कुछ ध्यान न दिया. और सीधे चोरदर्वाजे की तरफ बढते चले गए। अपने मकान से कुछ ही आगे बढ़े थे कि सामने से एक आदमी आता हुआ दिखाई पड़ा जो इनकोअपनी तरफलपकता आता देख सहमकर अपने का छिपाने की नीयत से एक मकान की आड़ में खडा हो गया ! बीरसेन ने तो उसे देख ही लिया था उसे दीवार की आड में हो जाते देख इनको शक पैदा हुआ और इन्होंन उसके पास पहुच कर ललकारा। बीरसेन को पहिचानते ही डर के मारे उसकी अजब हालत हो गई. थर थर कॉपने लगा और कुछ बोल न सका। उसके पास एक गठरी थी जिसे उसी जगह फेंक कर भागा मगर वीरसेन के हाथ से बच कर न जा सका। इन्होंन लपक कर उसे पकड लिया और गठरी समेत अपने मकान की तरफ लौटे तथा फाटक पर पहुच कर खड़े हो गए जहाँ कई सिपाही नगी तलवार लिये पहरा दे रहे थे और कई भीतर की तरफ पहरा बदलने के लिये तैयार हो रहे थे। वीरसेन ने उस चोर का एक सिपाही के हवाले किया और दूसरे को गठरी खोल कर देखने का हुक्म दिया। सिपाही ने चौंक कर कहा 'हुजूर इसमें तो जड़ाऊ गहने है ।" वीरसेन है जिड़ाऊ गहने । सिपाही-जी हॉ। 'वीरसेन-इधर तो लाओ देखें । फाटक पर रोशनी बखूबी हो रही थी बीरसेन ने उन गहनों को देखते ही पहिचान लिया कि ये कालिन्दी के हैं। इसके बाद उस चोर पर गौर किया तो मालूम हुआ कि यह उन सिपाहियों में से है जो चोर फाटक के पहरेदार चचलसिह के मातहत है। बहुत थोडी देर खडे रह कर वीरसेन कुछ सोचते रहे इसके याद गठरी और चोर को हिफाजत से रखने के लिये ताकीद कर दस सिपाहियों को अपने साथ ले चोर फाटक की तरफ रवाना हुए और अपने पहरे वालों से कहते गए कि बहुत जल्द और वीस सिपाहियों को चोर फाटक पर भेजो। वीरसेन ने चोर फाटक पर पहुच कर दस बारह सिपाहियों को वैठे और चचलसिह को टहलते पाया ललकार कर पूछा "क्यों जी चचलसिह क्या हो रहा है? चचल-जी कुछ नहीं देखिये पहरे पर मुस्तैद हू । वीरसिह-तुम्हारे मातहल के सिपाही कहाँ है ? चचल-जी इसी जगह तो है दो चार कहीं इधर उधर गए होंगे। बीरसेन-अच्छा इधर आओ तुमसे कुछ बात करना है। इस तरह यकायक बीरसेन का पहुचते देख चचलसिह घबडा गया और ठीक तरह से बातचीत न कर सका। वीरसेन ने थोडी देर तक उसे वातों में लगाया तब तक वे वीस सिपाही भी वहाँ पहुच गए जिन्हें जल्द भेजने के लिये वे कुसुम कुमारी १०८१