पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७३०

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इसक बाद यह बातचीत की आवाज वन्द हर गई और यकायक सामने वाल आइने में कुअर इदजीतसिंह और गन दसिह . HAP प्यार एयार भरासिह और तागसिह का सूरत दखी मा भी इरागस कि दानों एयार अपडत हुए एक तरफ र आये और दृस्ण तरफ का चल गय। इसके बाद दा ओरतो की सूरत नजर आई। पहिल ता पहिचानन में कुछ शक हुआ नगर तुरारी मालम हा गया कि व दोना कमलिना और लाडिली है। उन दाना की कमर में लाह की अनीरे दबी हुई थी और एक मजबूत अदमी उन्हें अपने हाथ में लिए हुए उन दाना को पीट-पीछ जा रहा था। यही दखा कि कमलिनी आर लाडली बलत-चलत सकी और उसी समय पिछले आदमीन उन दोनों का धक्का दिया जिससे ५ झुक गई और सर हिला कर आन यडती हुई नजरों से अट हो गई। भरानिह और तारासिह यहाँ कैसे आ पहुचे? और कमलिनी तथा साडिली का कदिया की तरह ल जान वाला यह कोन था? इत्त शीश के अन्दर उन सभा की सूरत कैसे दिखाई पड़ी चारो तरफ स बन्द रहन पर भी यहाँ आवाज कैस आइ इन बाता का सोचते हुए दानां कुमार बहुत ही दुखी हुए। आनन्द-भैया यह ता बडे आश्चर्य की बात मालूम पडती है। यह लाग (अगर वास्तव में काई हो ला ) कहत है कि अजगर कुमारों का निगल जायेगा। मगर हम लाग तो खुद ही अजगर के मुह में लाने के लिए तैयार है क्योकि सिलिनी चाज की यही आज्ञा है। अब कहिए तिलिस्मी बाज की बात झूठी है या व लाग काई धाखा दना चाहते है ? इन्द्रजीत--में भी इन्हीं वात! का सोच रहा हू। तिलिस्मी बाजे की आवाज का झूठा समझना ला युद्धिमानी की बात नहीं हागी क्योंकि उसी आवाज के भरोसे पर हम लाग तिलिस्म ताडन के लिए तैयार हुए है मगर हाँ इस बात का पता लगाए विना अजगर के मुह में जान की इच्छा नहीं हाली कि यह आवाज आखिर थी कसी और इस आइने में जिन लोगों के बातचीत की आवाज सुनाई दी है व वास्तव में काई है भी या सव विल्कुल तिलिस्मी वेल ही है ? कलई किए हुए आइन में किसी एस आदमी की सूरत भला क्योंकर दिखाई दे सकती है जो उसक सामन न हा। आनन्द-वेशक यह एक नई बात है। अगर किसी के सामने हम यह किस्मा बयान करें तो वह यहो कहा कि तुमका धाखा हुआ। जिन लोगों का तुमन आइन में दखा था वे तुम्हार पीछ की तरफ से निकल गय होंग और तुमने उस वात का खयाल न किया होगा। मगर नहीं अगर वास्तव म एसा होता तो आइन में भी हम उन्हें अपने पीछे की तरफ से जात हुए देखत । जरुर इसका सवय कोई दूसरा ही है जा हम लोगों का समझ में नहीं आ रहा है। इन्द्र-खेर फिर अब किया क्या जाथ? इस मजिल सनीच उतर जान या किसी और तरफ जान को लिए गन्ता भी ता दिखाई नहीं दता। ( उगली का इशारा करके) सिर्फ वह एक निशान है जहा स अपन आप एक दजा पैदा होगा या हम लाग दवाजा पैदा कर सकत है मगर वह दर्वाजा उसी अजगर वाली कोठरी का है जिसने जाने के लिए हम लाग यहा आए है। आनन्द-ठीक है भगर क्या हम लाग तिलिस्मी खजर से इस शीश का ताड या काट नहीं सकत? इन्द्रजीत-जकर काट सकते है मगर यह कारवाई अपन गन की हागी। आनन्द-तो क्या हर्ज है आज्ञा दीजिय ता में एक हाथ शीशे पर लगाऊ । इन्द्रजीत--रग ही कर दखा मगर कहीं कोई वखडा न पेदा हा? 'अय जो होना हो सो होइतना कहकर आनन्दसिह तिलिस्मी खजर लिए हुए आइन की तरफ बढे। उसी वक्त एक आवाज हुई और याए तरफ की शीशे वाली दीवार में ठीक उसी जगह एक छोटा सा दर्वाजा निकल आया जहाँ कुमार ने हाथ का इशारा करके आनन्दसिह को बताया था मगर दोनों कुमारों के उसके अन्दर जान का ख्याल भी न किया और आनन्दसिह ने तिलिस्मी खजर का एक भरपूर हाथ अपने सामने वाले शीशे पर लगाया, जिसका नतीजा यह हुआ कि शीशे का एक बहुत बड़ा टुकडा भारी आवाज देकर पीछे की तरफ हट गया और मानन्दसिह इस तरह उसके अन्दर घुस गये जैसे हवा के किसी खिचाव या ववन्डर ने उन्हें अपनी तरफ खींच लिया हो इसके बाद वह शीशे का टुकडा फिर ज्यों का त्यों बराक मालूम होने लगा। हवा क खिचाव का असर कुछ-कुछ इन्दजीतसिह पर भी पडा मगर वे दूर खडे थे इसलिए खिचकर वहा तक न जा सके पर आनन्दसिह उसके पास हान के कारण खिच कर अन्दर चले गये। आनन्दसिंह का यकायक इस तरह आफत में फस जाना बहुत ही बुरा हुआ इस बात का जितना रज इन्द्रजीतसिह को हुआ सो वे ही जान सकते हैं। उनकी आखों में आसू भर आया और वे वेचैन होकर धीरे से बोले--- अब जब तक कि में इस शीशे के अन्दर न चला जाऊगा अपन भाई को छुडा न सकूँगा और न इस बात का ही पता लगा सक्गा कि उस पर क्या मुसीयत आई! इतना कह वे तिलिस्मी खजर लिए हुए शीशे की तरफ बढे मगर दो ही कदम जाकर रुक गये और फिर सोचने लगे 'कहीं ऐसा न हो कि जिस मुसीबत में आनन्द पड़ गया है उसी मुसीबत में मैं भी फस जाऊ। यादे देवकीनन्दन खत्री समग्र ७२२