पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७३३

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खबर हुई तो वे दर्वाजे तक आकर वडी मुहय्यत से इन्द्रदेव को घर के अन्दर ले गये और गले से मिल कर अपने पास बैठाया तथा इन्दिरा को बुलवा भेजा। जव इन्दिरा को अपने पिता के आने की खबर मिली. दौड़ती हुई राजा गोपालसिंह के पास आई और अपने पिता के पैरों पर गिरकर रोने लगी। इस समय कमरे के अन्दर राजा गोपालसिह इन्ददेव और इन्दिरा के सिवाय और कोई भी न था। कगरा एकान्त कर दिया गया था, यहा तक कि जो लौडी इन्दिरा को बुला कर लाई थी वह भी बाहर कर दी गई थी। इन्दिरा के रोने ने राजा गोपालसिह और इन्ददेव का कलेजा भी हिला दिया और वे दोनों भी रोने से अपने को बचा न सके। आखिर उन्होंने बड़ी मुश्किल से अपने को सम्हाला और इन्दिरा को दिलासा देने लगे। थाडी देर बाद जब इन्दिरा का जी ठिकाने हुआ तो इन्द्रदेव ने उसका हाल पूछा और उसने अपना दर्दनाक किस्सा कहना शुरु किया । इन्दिरा का हाल जो कुछ ऊपर के बयान में लिख चुके है वह और उसके बाद का अपना तथा अपनी मां का बचा हुआ किस्सा भी इन्दिरा ने बयान किया जिसे सुनकर इन्द्रदेव की आँखें खुल गई और उन्होंने एक लम्बी सास लेकर कहा- अफसोस, हरदम साथ रहने वालों की जब यह दशा है तो किस पर विश्वास किया जाय ! खैर कोई चिन्ता नहीं।" गोपाल मेरे प्यारे दोस्त, जो कुछ होना था सो हो गया. अब अफसोस करना वृथा है। क्या मैं उन राक्षसों से कुछ कम सताया गया है? नहीं ईश्वर न्याय करने वाला है और तुम देखोगे कि उनका पाप उन्हें किस तरह खाता है। रात बीत जाने पर मै इन्दिरा की मा से भी तुम्हारी मुलाकात कराऊगा। अफसोस दुष्ट दारोगा ने उसे ऐसी जगह पहुचा दिया है कि जहा से वह स्वयम् तो निकल ही नहीं सकती मैं खुद तिलिस्म का राजा कहला कर भी उसे छुड़ा नहीं सकता। लेकिन अब कुअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह वह तिलिस्म तोड रहे है आशा है कि वह बेचारी भी बहुत जल्द इस मुसीबत से छूट जायेगी। इन्ददेव-क्या इस समय मैं उसे नहीं देख सकता? गोपाल-नहीं, यदि दोनों कुमार तिलिस्म तोडने में हाथ न लगा चुके होते तो शायद मै ले भी चलता मगर अब रात के वक्त वहा जाना असम्भव है! जिस समय इन्द्रदेव और गोपालसिह की मुलाकात हुई थी चिराग जल चुका था। यद्यपि इन्दिरा ने अपना किस्सा सक्षेप में बयान किया था मगर फिर भी इस काम में डेढ पहर का समय बीत गया था। इसके बाद राजा गोपालसिह ने अपने सामने इन्द्रदेव को खिलाया और इन्द्रदेव ने अपना तथा रोहतासगढ का हाल कहना शुरू किया तथा इस समय तक जो मामले हो चुके थे सब खुलासा बयान किया। तमाम रात बातचीत में बीत गई और सवेरा होने पर जरूरी कामों से छुट्टी पाकर तीनों आदमी तिलिस्म के अन्दर जाने के लिए तैयार हुए। इस जगह हमें यह कह देना चाहिए कि इन्दिरा को तिलिस्म के अन्दर से निकाल कर अपने घर में ले आना राजा गोपालसिह ने बहुत गुप्त रक्खा था और ऐयारी के ढग पर उसकी सूरत भी बदलवा दी थी। आठवां बयान आनन्दसिह की आवाज सुनने पर इन्द्रजीतसिंह का शक जाता रहा और वे आनन्दसिह के आने का इन्तजार करते हुए नीचे उतर आए जहा थोड़ी ही देर बाद उन्होंने अपने छोटे भाई को उसी राह से आते देखा जिस राह से वे स्वय इस मकान में आये थे। इन्द्रजीतसिह अपने भाई के लिए बहुत ही दु थे। उन्हें विश्वास हो गया था कि आनन्दसिह किसी आफत में फस गये और बिना तरवुद के उनका छूटना कठिन है मगर थोड़ी ही देर में बिना झझट के उनके आ मिलने से उन्हें कम ताज्जुब न हुआ। उन्होंने आनन्दसिह को गले से लगा लिया और कहा- इन्द्र-मै तो समझता था कि तुम किसी आफन में फस गए और तुम्हारे छुडाने के लिए बहुत ज्यादातरदुद करना पड़ेगा। आनन्द-जी नहीं, वह मामला तो बिल्कुल खेल ही निकला। सच तो यह है कि इस तिलिस्म में दिल्लगी और मसखरेपन का भाग भी मिला हुआ है। इन्द्र-ता तुम्हें किसी तरह की तकलीफ नहीं हुई ? आनन्द-कुछ भी नहीं, हवा के खिचाव के कारण जय मैं शीशे के अन्दर चला गया तो वह शीशे का टुकडा जिसे चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १६ ७२५