पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७४०

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ari तेज-अस्तु कृष्णाजिन्न तो ज्यादे दिनों तक उस मकान में रह नहीं सकता जिसमें किशोरी कामिनी और कमला है। वह अपने ठिकाने चला गया होगा। मगर उन तीनों की हिफाजत का पूरा पूरा वन्दोवस्त कर गया होगा। अब तुम भी इसी समय उस मकान की तरफ चले जाओ और जब तक हमारा दूसरा हुक्म न पहुंचे या कोई आवश्यक काम न आ पडे तब तक उन तीनों के साथ रहो हम उस मकान का पता तथा उसके अन्दर जाने की तीव तुम्हें बता देते है। भैरो-जो आज्ञा, मैं अभी जाने के लिए तैयार हू | तेजसिह ने उस मकान का पूरा पूरा हाल भैरोसिह को बता दिया और भैरोसिह उसी समय अपने बाप का चरण हुए भैरोसिह के जाने के बाद सवेरा होने पर एक ब्राह्मण द्वारानकली किशोरी कामिनी और कमला के मृत दह की दाह-- क्रिया कर दी गई। इसके पहिले ही लश्कर में जितने पढ़े लिखे ग्राहमण थे सभी को स्टोर कर तेजसिह ने यह व्यवस्था करा ली थी कि इन तीनों का काई नातदार यहा मौजूद नहीं है. इस लिए किसी ब्राहमण द्वारा इनकी क्रिया करा देनी चाहिए। इस काम से छुट्टी पाने के बाद लश्कर कूच कर दिया गया और सर कोई धीरे-धीरे चुगरगढ की तरफ रवाना छूकर बिदा 1 ग्यारहवां बयान दोनों कुमार यद्यपि सर्दू को पहिचानते न थे मगर इन्दिरा की जुबानी उसका हाल सुन चुफे थे, इसलिए उन्हें शक हो गया कि यह स! है। दूसरे राजा गोपालसिह ने भी पुकार कर दानो कुमारों से कहा कि इन्दिरा की ग स! यही है और इन्द्रदल ने कुमारों की तरफ बता कर सप्रू से कहा कि राजा वीरेन्द्रसिह के दोनों लडके यही कुअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिह है जो तिलिस्म तोडने के लिए यहा आए हैं इन्हीं की बदौलत तुम आफत से छूटोगी। दोनों कुमारों को देखत ही स! दौड़फर पास चली आई और कुअर इन्दजीतसिह के पैरों पर गिर पड़ी। स! उम्र में कुअर इन्द्रजीतसिह से बहुत बड़ी थी मगर इज्जत और मर्तवे के खयाल से दोनों को अपना-अपना हक अदा करना पड़ा। कुमार ने उसे पैर से उढाया ओर दिलासा देकर कहा, सर्प, इन्दिरा की जुबानी मै तुम्हारा हाल पूरा पूरा तो नहीं मगर बहुत कुछ सुन चुका है और हम लोगों का तुम्हारी अवस्था पर बहुत ही रज है। परन्तु अब तुम्हें चाहिए कि अपने दिल से दुख को दूर कर के ईश्वर को धन्यवाद दो क्योंकि तुम्हारी मुसीवत का जमाना अप बीत गया और ईश्वर तुम्हें इस कैद से बहुत जल्द छुड़ाने वाला है। जब तक हम इस तिलिस्म में है तुम्हें बराबर अपने साथ रक्खेंगे और जिस दिन हम दोनों भाई तिलिस्म के बाहर निकलेंगे उस दिन तुम भी इस दुनिया की हवा खाती हुई मालूम करोगी कि तुम्हें सताने वालों में से अब कोई भी स्वतन्त्र नहीं रह गया और न अब तुम्हें किसी तरह का दुख भोगना पड़ेगा। तुम्हें ईश्वर को बहुत-बहुत धन्यवाद देना चाहिए कि दुष्टों के इतना ऊधम मचाने पर भी तुम अपने पति और अपनी प्यारी लडकी को सिवाय अपनी जुदाई के और किसी तरह के रज और दुख से खाली पाती हो। ईश्वर तुम लोगों का कल्याण करें। इसके बाद कुमार ने कमरे की तरफ सर उठा कर देखा। राजा गोपालसिह ने इन्ददेव की तरफ इशारा करके कहा, 'इन्दिरा के पिता इन्द्रदेव को हमने युलवा भेजा है। शायद आज के पहिले आपने इन्हें न देखा होगा। उस समय पुन इन्द्रदेव ने झुक कर कुमार को सलाम किया और कुअर इन्द्रजीतसिंह ने सलाम का जवाब देकर कहा 'आपका आना बहुत अच्छा हुआ। आप इन दोनों को अपनी आखों से देख कर प्रसन्न हुए होंगे। कहिए रोहतासगढ का क्या हाल है?' इन्द्रदेव-सब कुशल है। मायारानी और दारोगा तथा और कैदियों को साथ लेकर राजा बीरेन्द्रसिह चुनारगढ़ की तरफ रवाना हो गये, किशोरी,कामिनी और कमला को अपने साथ लेते गए। लक्ष्मीदेवी कमलिनी और लाडिली तथा नकली बलभदसिह को उनसे माग कर मैं अपने घर ले गया और उन्हें उसी जगह छोड कर राजा गोपालसिह की आज्ञानुसार यहा चला आया है। यह हाल सक्षेप में मैंने इस लिए बयान किया कि राजा गोपालसिह की जुबानी वहा का कुछ हाल आपको मालूम हो गया है यह मैं सुन चुका है। इन्द्रजीत-लक्ष्मीदेवी कमलिनी और लाडिली को आप यहा क्यों न ले आए? इसका जवाब इन्द्रदेव ने तो कुछ भी न दिया मगर राजा गोपालसिह ने कहा "ये असली बलभद्रसिह का पता लगाने के लिए अपने मकान से रवाना हो चुके थे,जब रास्ते में मेरा पत्र इन्हें मिला। परसों एक पत्र मुझे कृष्णाजिन्न का भेजा देवकीनन्दन खत्री समग्र ७३२