पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७४३

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18 de आ जायगे तय तो यही दुनिया हम लोगों के लिए स्वर्ग हो जायगी। बहुत दर तक इन चारों में पाराचीत होती रही। इसके बाद भरोसिह ने वहा की अच्छी तरह सेर की और खा-पीकर निश्चिन्त हाने बाद इधर-उधर की बातों से उन तीनों का दिल बहनार लगे और जब तक वहा रह उन लगा को उदास हान न दिया। तेरहवां बयान सध्या होने में अभी दो घट स ज्यादे देर हे मगर सूर्य भगवान पहाड की आड में हो गए इसलिए उम स्थान में जिसमें किशारी-कामिनी आर कनला हे पूरय तरफ वाली पहाडी फ ऊपरी हिस्से क सिवाय और कहीं धूप नहीं है। समय अच्छा और स्थान बहुत ही रमणीफ मालूम पड़ता है। भैरोसिह एक प क नोच लेटे हुए कुछ बना रहे है और किशोरी, कामिनी नथा कमला गले से कछ दूर पर एक स्थर को घान पर बेटी बात कर रही है । कमला न कहा "बैठे-बैठ मरा जी घबडाया । कामिनी-ता तुम भी राम्हि के पास जा बैठा और पड़ की छाल छील छील कर रस्सी बटो। कमला--जो में ऐसे गन्द काम नहीं करता। मश मतसार यह था कि अगर हुक्म हो तो में इस पहाडी के बाहर जाकर इधर-उपर की कुछ खबर ले आऊँ या मानिया मे जाकर इसी बात का पत्ता लगाऊक राजा गोपालसिह के दिल में लक्ष्मीदवी की मुहव्यत एक दणक्या जाती रही जा जा तक उस बेचारी को घूछने के लिए एका चिडिया या यध्या भी नहीं भेजा। फिशारी-वहिन इस बात काना मुझ नापजा रज है। में सब कहती है कि हम लोगों में से कोई भी एसा नहीं है जो उमझदुख की बगी करे। राजा गोपालसिह ही की बदौला उसने जो-जो तकलीफें उठाई उसे सुनने ओर याद करने र कलजा कर जाता है। मगर अफसोस राजा गोफलसिह ने उपकी कुछ भी कदर न को। छामिनी-मुझ सम्स पद कोवल इस बात का ध्यान रहता है कि बचा लक्ष्मीदेवी ने जो-जो काट मई है उन सभी से बढकर उत्तज लिए यह दुख है कि राजा गापालन्ति नाताल जाने पर भी उसकी कुछ सुध न लो। स्वदुःखो को तो वह तह गई मार वह दुख रसस सहन सहा जागा। हाय हाय गोपालसिह का भी कमा परपर का कलेजा है। किशारी-ऐसी मुनीवत कही मुझे सहनी पडसी तो गरज भर भी इरा दुरिया में न रहती। क्या जमाने से मुहब्बत एक दम जारी? या रजा गापालासह ने लक्ष्मीदेवी में कोई ऐद देख लिया है ? कमला-रा राम दह बंचारी ऐसी नहीं है कि किसी एव को अपन पास आने दे। देखो अपनी छाटी यहित की लाडी कर मुसीवत के दिन विस उग ने निताए । मगर उसके पतिव्रत धम का नतीजा कुछ न निकला। निशारी-इस दुग्न से बढकर दुनिया में कोई भी दुरा नहीं है। (पड पर फ्ठ हुए एक काले फोय की तरफ इशारा करक। देखो बहिन यड़का गहमी लोगों की तरफ मुह करके वास्बा बोल रहा है। (जमीन पर स एक तिनका उठाकर) यह कहता है कि तुम्हारा काई प्रमें, यहा चला आ रहा है। कामिनी (ताज्जुब से सो तुम्हें करसगलूम? क्या कोय की काली तुम पहिचानती हो या इस तिनके में कुछ लिखा है पायो ही दिल्लीवरती हो? किशोरी में दिल्लगी नहीं करती सर कहती है. इसका पहिरानना कोई मुश्किल पात नहीं है। कामिनी-बहिन गुझ भी पता। तुह इसकी जद किसने सिखाई थी ? किशारी-मेरी मा न मुझे एक श्लाक याद करा दिया था। उसका मतला यह है कि जब काले कौदे (काग) की पाली सुन ता एक बड़ा ग साफ तिनका जमीन पर से उठा ले और अपनी उगलियों से नाप के देख कि के आल का है जै अगुल हो उसमें तेरह और मिला सात-सात फरक जहा तक उसमें से निकल सके और जो कुछ बचे उसका हिसाब लगाय! एक बचं तो लाभ हागा, दो बध तो कुछ नुकसान होगा तीन बचे तो सुख मिलेगा चार बचे तो भोजन की कोई बीज मेलेगी पाच वर तो किसी मिन का दर्शन होगा छ दर तो कलह होगी सात रचे या यों कहो कि कुछ भी न बचे तो समझो कि अपना अपने किसी प्रमो का मरना होगा बस इतना ही ता हिसाब है। कामिनी-तुम तो इतना कह गई लेकिन मरी समझ में कुछ भी न आरा। यह तितका जा तुमनं उगली से नापा है इसका हिसाब करव समझा दाता साझ जाती। चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १६ ७३५