पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७४४

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18 किशोरी-अच्छा देखो यह तिनका जो मैने नापा था छ अगुल का है, इसमें तेरह मिला दिया ता कितना हुआ। कामिनी-उन्नीस हुआ। किशोरी-अच्छा इसमें से कै सात निकल सकते हैं? कामिनी-(सोचकर ) सात और सात चौदह दो सात निकल गए और पाच वचे। अच्छा अब मैं समझ गई. तुम अभी कह चुकी हो कि अगर पाच बचे तो किसी मित्र का दर्शन हो। अच्छा अब वह श्लोक सुना दो क्योंकि श्लोक बडी जल्दी याद हो जाया करता है। किश्योरी-सुनो- काकस्य वचन श्रुत्वा ग्रहीत्वा तृणमुत्तमम् त्रयोदश समायुक्ता मुनिभि भागमाचरेत् २ लाभ कष्ट महासौख्य भोजन प्रियदर्शनम ६ 19 कलहो मरण चैव काकौ वदति नान्यथा कमला-( हस कर ) श्लोक तो अशुद्ध है । किशोरी-अच्छा अच्छा रहने दीजिये अशुद्ध है तो तुम्हारी बला से. तुम बडी पण्डित बनकर आई हो तो अपना १ ३ 8 शुदध करा लेना। कामिनी-(कमला से ) खैर तुम्हारे कहने से मान लिया जाय कि श्लोक अशुद्ध है मगर उसका मतलब तो अशुद्ध नहीं है। कमला नहीं नहीं मतलब को कौन अशुद्ध कहता है, मतलब तो ठीक और सच है। कामिनी-तो बस फिर हा चुका । यीवी दुनिया में श्लोक की वसी कदर होती है पण्डित लोग अगर कोई झूठी बात भी समझाना चाहते है तो झट श्लोक बना कर पढ देते हैं सुनने वाले को विश्वास हो जाता है और यह तो वास्तव में सच्चा श्लोक है। कामिनी ने इतना कहाही था कि सामने से किसी को आते देख चौक पड़ी और बोली, आहा हा देखो किशोरी यहिन की बात कैसी सच निकलीं । लो कमला रानी देख लो और अपना कान पकड़ो। जिस जगह किशोरी-कामिनी और कमला बैठी बातें कर रही थी उसकेसामने ही की तरफ इस स्थान में आने का रास्ता था। यकायक जिस पर निगाह पड़ने से कामिनी चौकी वह लक्ष्मीदेवी थी उसके बाद कमलिनी और लाडिली दिखाई पडी और सबके बाद इन्द्रदेव पर नजर पड़ी। किशोरी-देखो बहिन हमारी बात कैसी सच निकली। कामिनी-बेशक बेशक । कमला-कृष्णाजिन्न सच ही कह गये थे कि उन तीनों को भी यहीं भेजवा दूंगा । किशोरी-(खडी होकर ) चलो हम लोग आगे चल कर उन्हें ले आवे। ये तीनों लक्ष्मीदेवी,कमलिनी और लाडिली को देख कर बहुत ही खुश हुई और वहा से उठकर कदम बढाती हुई उनकी तरफ चली। वे तीनों बीच वाले मकान के पास पहुचने न पाई थी कि ये सब उनके पास जा पहुंची और इन्द्रदेव को प्रणाम करने के बाद आपुस में बारीबारी से एक दूसरे के गले मिलीं। भैरोसिंह भी उसी जगह आ पहुंचे और कुशलक्षेम पूछकर बहुत प्रसन्न हुए इसके बाद सब कोई मिलकर उसी चॅगले में आए जिसमें किशोरी,कामिनी और कमला रहती थीं और इन्द्रदेव बीच वाले दोमजिले मकान में चले गये जिसमें भैरासिंह का डेरा था। यद्यपि वहा खिदमत करने के लिए लौडियों की कमी न थी तथापि कमला ने अपने हाथ से तरह-तरह की खाने की चीजें तैयार करके सभों को खिलाया-पिलाया और मोहव्यत भरी हँसी-दिल्लगी की बातों से सभों का दिल बहलाया। रात के समय जब हर एक काम से निश्चिन्त होकर एक कमरे में सब बैठी तो यातचीत होने लगी। किशोरी-( लक्ष्मीदेवी से ) जमाने ने तो हम लोगों को जुदा कर दिया था मगर ईश्वर ने कृपा करके बहुत जल्द मिला दिया। देवकीनन्दन खत्री समग्र