पृष्ठ:देवकीनंदन समग्र.pdf/७४५

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६ लक्ष्मीदेवी-हा बहिन इसके लिए मै इश्वर का धन्यवाद दनी दू। मगर मेरी समझ में अभी तक नहीं आता कि कृष्णाजिन्न कोन है जिसके हुक्म सफाई भी मुह नहीं मोड़ता । देखा तुम भी उसी की आज्ञानुसार यहा पहुंचाई गई और रमलाग भी उसी की आडा से यहा लाच गए। जो हो मगर इसमें कोई शक नहीं कि कृष्णाजिन्न बहुत ही मुद्धिमान और दूरदर्शी है। यह सुनकर एमलोगों को बडी खुशी हुई कि काजिन्न की चालाकियों ने तुम लोगों की जान बचा ली। कामिनी-गह सवर तुम्ह कब मिली ? लक्ष्मोदेवी-इन्ददवजी जमानिया गये थे। उसो जगह कृष्णाजिन्न को चोठी पहुंची जिसस सब हाल मालूम हुआ और उसी चीटी के मुताविक हम लोग यहा पहुँचाये गए । किशोरी-जमानिया गए थे। राजा गापालसिह ने गुलाया होगा? लक्ष्मीदेवी-(ऊँची सास लकर ३ क्या मुलाने लग थे उन्हें क्या गर्ज पडी यी हा हमारे पिता का पता लगाने गए थे सो यहा जाने पर कृष्णाजिन्न की धीठो ही म यह भी मालूम हुआ कि भूतनाथ उन्हें छुडा कर चुनारगढ़ ले गया। ईश्वर उसका मला करे भूतनाथ बात का धनी निकला। किशोरी-(खुश होकर) भूतनाथ न यह बहुत बड़ा काम किया। फिर भी उसके मुकदमें में बड़ी उलझन निकलेगी। कामिनी-इसमें क्या शक ई? किशोरी अच्छा का जमानिया में जाने से और भी किसी का हाल मानूम हुआ 2 कमलिनी-हा दानो कुमारों से दूर की मुलाकात और बातचीत हुई क्योंकि वे तिलिस्म लाडने की कार्रवाई कर रहे थे और वही इन्टदव ने अपनी लडकी इन्दिरा का पाया और अपनी स्त्री सर्दू को भी देखा। किशोरी-(वोककर और खुश होकर ) यह बड़ा काम हुआ | वदोनों इतने दिनों तक कहा थीं और कैसे मिली? लक्ष्मी-वे दोनों तिलिस्म में फरी हुई थी दोनों कुमारों की बदौलत उनकी जान बची। इस जगह लक्ष्मीदेवी न सर्रा और इन्दिरा का किस्सा पूर पूरा बयान किया जिसे सुन कर वे लीनो बहुत प्रसन्न हुई और कमला ने कहा विश्वासघातियों और दुष्टों के लिए उस समय जमानिया वैकुण्ठ हो रहा था } लक्ष्मी-तभी तो मुझे ऐसे-ऐस दुख भोगने पड़े जिनसे अभी तक छुटकारा नहीं मिला. मगर मै नहीं कह सकती कि अब मरी क्या गनि हागा अर नुझ क्या करना होगा। किशोरी-क्या जमानिया म इन्द्रदय से राजा गापालसिह ने तुम्हार विषय में कोई बातचीत नहीं की? लक्ष्मी-कुछ भी नहीं सिर्फ इतना कहा कि तुम उन तीनों बहिनों को कृष्णाजिन की आज्ञानुसार वहा पहुंचा दो जहा किशारी,कामिनी और कमला है, वहा स्वय कृष्णाजिन्न जायगे उसो समय जो कुछ व कहें सा करना । शायद कृष्णाजिन्न उन रार्भा को यहा ले आये। कामिनी--( हाथ मल कर ) यस । लक्ष्मी-बस और कुछ भी नहीं पूछा और न इन्द्रदवजी ही न कुछ कहा क्योंकि उन्हें भी इस बात का रज है। किशारी-रज टुआ ही चाहे जो कोई सुनेगा उसी को इस बात का रज होगा वे नो बेचारे तुम्हारे पिता ही के बराबर ठहरे क्यों न रज करंगे । (कमलिनी स ) तुम ता अपने जीजाजी क मिजाज की बड़ी तारीफ करती थी ! कम-वेशक वे तारीफ के लायक है मगर इस मामले में तो मैं आप हैरान हा रही हूँ कि उन्होन ऐसा क्यों किया ! उनके सामने ही दोनों कुमारों ने बड़ शौक से तुम लोगों का हाल इन्ददय से पूछा और समों को जमानिया में बुलालेने के लिए कहा भगर उस पर भी राजा साहब ने हमारी दुखिया बहिन को याद न किया आशा है कि कल तक कृष्णाजिन्न भो यहा आ जायगे देखें वह क्या करते है? लक्ष्मी करेंग क्या ? अगर वह मुझे जमानिया चलने के लिए कहेगे भी तो ने इस वेइज्जती क साथ जाने वाली नही है। अब मेरा मालिक मुझे पूछता ही नहीं तो मैं कौन सा मुह लकर उसके पास जाऊ और किस सुख के लिए या किम आशा पर इस शरीर का रक्बू! कमला-नहीं नहीं, तुम्हे इतना रज न करना चाहिए कामिनी-(यात काट कर) रज क्यों न करना चाहिए ! गला इससे बढ़कर भी कोई रज दुनिया में है ! जिसके सवय से और जिसके ख्याल से इस बेचारी न इतने दुख भागे और एसी अवस्था में रही,वही जब एक थात न पूछे तो कहो रज हो कि नहो? और नहीं तो इस बात का ख्याल करते कि इसी की बहिन या उनकी साली की बदौलत उनकी जान यची नहीं तो दुनिया से उनका नाम-निशान ही उठ गया था । लाडिली-यहिन, ताज्जुब ता यह कि इनकी खबर न ली तो न सही अपनी उस अनोखी मायागनी की सूरत तो चन्द्रकान्ता सन्तति भाग १६